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  • kewal sethi

स्वर्ग से वापसी

there is a news item saying about 15 to 16 thousands of migrants are returning daily to maharashtra. these lines are the consequent. स्वर्ग से वापसी बैठे थे अपने वतन से दूर, अपनों से अलग सवाल था रोटी रोज़ी का, इस में क्या शक और भी थे साथी संगी जो कि हमख्याल थे बसर रही थी यूॅं ज़िदगी चाहे थोड़े बदहाल थे अचानक इक वायरस ने रंग बदरंग कर दिया आसरा जीविका का उस ने पल में हर लिया काम धंधा देने वालों का भी तो बुरा हाल था उन्हें कहाॅं से सम्भालता खुद वह फटे हाल था सरकार ने आर्डर किया लाक डाउन करते वक्त हर शख्स रहे अपनी जगह पर न करे कोई सफर वादा किया सरकार ने कि साथ पूरा निभायें गे पर वायदा वफा कब हुआ जो अब कर पायें गे उस वक्त बेचैनी बहुत फैली थी उन बेवतनों में घर पर गुरबत में बेशक थे पर थे तो अपनों में अब घर से दूर, और न जीविका का ठिकाना था न कर सकें बात किसी से, न ही आना जाना था इधर उधर देखा, सब का बन रहा यही विचार था वतन था अपना भला हर कोई वहाॅं राज़दार था जनमभूमि स्वर्ग है पुरानी कहावत है चली आई चल कर वहीं रहें यह बात सब के मन में आई राह में तकलीफ हो गी बहुत, खतरे भी अनजाने अंजाम सुखद हो गा जब पहुॅंचे गे अपने ठिकाने अपनों से प्यार पायें गे, बाॅंटे गे दुख सुख हमारे आराम से मिल जुल कर रहें गे घर के बन्दे सारे कवारनटीन में रहे कुछ दिन पर घर तो पास था रहें गे सब सुख शॉंति से यह पूरा विश्वास था पहुॅंचे जब घर तो घर वालों ने शुक्र था मनाया आखिर हमारा प्रिय सही सलामत लौट आया बहुत सुख पाया उन्हों ने जब रहे सब साथ साथ सच है कि घर की रोटी का होता अलग ही स्वाद

वक्त के साथ बदल ही जाते हैं सब के ख्यालात कुछ दिन में नज़र आने लगे घर के असली हालात ज़मीन जो थी, कुछ बिस्वों में रह गई थी सिमट कर और कोई धंधा नहीं था जिस से कि हो अपना गुज़र जो कुछ भी था, शहर से भेजी हुई रकम का था उस के अतिरिक्त किसी और में कोई दम न था वही ज़रिया था जिस पर पूरे घर का दारोमदार था बनिये का कर्ज पहले की तरह ही मिलना दुश्वार था सरकार ने कुछ पैसे जमा करा दिये थे बैंक खाते में खर्च थे इतनेे, वह भी कितनी देर तक चल पाते थे सुख दुख बाॅंटें गे हम अपने, मन में यही विचार था क्या कहें सुख तो यहाॅं पर पूरी तरह ही नदारद था इधर खबर भी आ रही थी कि खुल रहा कारोबार है शहर वालों को फिर कर्मियों की मदद की दरकार है टाला बहुत दिनों तक विचार, कब तक यह टल पाता सच है गुरबत से, सिर्फ साथ रह कर नहीं लड़ा जाता कुछ आमदनी का ज़रिया हो तो ही अच्छा है सहारा खाली बैठ कर तो चले गा नहीं परिवार का गुज़ारा कुछ तो कुर्बानी दी जाये उस के लिये, यह ज़रूरी है अपनों के दुख दर्द को मिटाने का इलाज शायद दूरी है। दूर ही रहें सही पर कुछ तो दे सकें गे उन को आराम फिर चाहे अपने दिल पर जो बीते, जो भी हो अंजाम फिर किया शहर की तरफ अपना रुख यह सोच कर लौट आये वहीं, शुरू किया था जहाॅं से यह सफर स्वागत है आप का, आप से ही चलता देश हमारा कहें कक्कू कवि इसी चक्र में चल रहा संसार सारा

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