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सुसराल

  • kewal sethi
  • Jan 11, 2024
  • 2 min read

सुसराल


- सुनो जी, अब मेरा इस घर में गुज़ारा नहीं होता।

- क्यों, क्या हो गया, सुबह तो चंगी भली थी।

- मैं काम कर कर के थक जाती हूूॅं। कोई देखने सुनने वाला भी नहीं है।

- अब इतना भी क्या काम आ गया अचानक।

- अचानक नहीं, यह रोज़ की ही बात है। पहले अप को नाश्ता कराऊॅं। फिर दफतर के लिये टिफिन तैयार करूॅं। फिर अम्मां जी की फरमाईश शरू। चाय, नाश्ता, दवाईयॉं। फिर दोपहर का खाना, फिर रात का खाना। तंग आ जाती हूॅं मैं।

- हॉं भई। यह तो बहुत काम है। थकों गी ही। पर रास्ता क्या है, यह भी सोच रखा हो गा।

- हमें यह घर छोडना हो गा।

- सही, बिल्कुल सही। घर छोडना ही ठीक हो गा। अम्मां को साथ ही ले चलें गे।

- दाद दूं गी, तुम्हारी समझ को। मुसीबत को साथ ही ले कर चलें गे।

- औह समझा, फिर तो सुसराल ही ठीक रहे गी।

- तुम हो कहॉं, किस दुनिया में। सुसराल की ही तो बात कर रही थी।

- अरे, तुम्हारी सुसराल नहीं, अपनी सुसराल की बात कर रहा हूॅं।

- क्या बात कर रहे हो। यह भी कोई करता है क्या। घर जमाई बनो गे क्या?

- इस में हर्ज ही क्या है। वैसे वहॉं आराम तो पूरा रहे गा। सासू मॉं बहुत अच्छा खाना बनाती हैं।

- दो चार दिन की बात हो तो खाना अच्छा बनता है। हमेशा ही रहो गे तो कोई घास के लिये नहीं पूछे गा।

- जो तुम खाओ गी, वही चले गा। घास ही सही पर तुम्हें तो आराम रहे गा।

- मेरे आराम की चिन्ता? यह कहो कि पैसा बचाना चाहते हो।

- पैसा कौन बचाना चाहता है। यहॉं मॉं को दे देता हूॅं और मॉं तुम को दे देती है। वहॉं मैं तुम को दूॅं गा, तुम मॉं को दे देना।

- क्या रोज़ रोज तुम्हें खाना खिलाने में दिक्कत नहीं हो गी।

- वहॉं तुम्हारी मदद करने के लिये तुम्हारी प्यारी बहन जो है।

- सब समझती हॅॅं, मैं क्या इतनी बूढ़ी हो गई हूॅं कि खाना बनाने के लिये मदद की ज़रूरत हो गी।

- मैं ने तो ऐसे ही कहा था।

- मुझे नहींं जाना तुम्हारी सुसराल। मैं अपनी सुसराल मेंं ही खुश हूॅं।

- पर वह मॉं को चाय पिलाना पडती है, उस का क्या?

- उस में कोई बात नहीं। अपने लिये बनाती हूॅं तो एक कप पानी और डाल दिया, उस में परेशानी थोड़ी होती है।

- और खाना?

- अपने लिये नहीं बनाती क्या? तुम्हें भी तो खिालाती हूॅ।। दो रोटी और बनाने में क्या तकलीफ है।

- और बोरियत जो होती है।

- मॉं जी तो बड़ी अच्छी अच्दी बात बताती हैं। सच बताऊॅं तो एक तरह से हम अच्छी सहेलियॉं बन गई हैं। बात चीत में फुरसत हीं नहीं मिलती।

- तो मेरा सुसराल जाना कैंसिल।

- और सुसराल से मेरा जाना भी।



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