सहायक
यूॅं तो अमन भैया बहुत होशियार हैं। चुस्त चालाक, काम में भी आगे आगे और मदद करने में तो बहुत ही आगे। पर क्या करें, आजकल दुनिया इतनी बदल गई है कि पता ही नहीं चलता कि हम कहॉं हैं। साठ सत्तर साल में दुनिया कितनी बदल गई, पर अमन भैया नहीं बदले यानि कि उन की मदद करने की आदत नहीं बदली।
अब देखिये, उस दिन उन के घर के पास एक कार खराब हो गई। विदेशी कार। चमकती हुई जैसे कि एक दम नई हो। उस के चालक, जो मालिक भी थे, इन के पास पहुॅंचे। बोले - इतनी धुन्ध थी कि कल दिन में भी लाईट जलानी पड़ी। और इसी में कल रात को लगता है लाईट आन ही रह गई। होटल से यहॉं तक तो आ गई पर अब आगे जाने से इंकार कर रही है। लगता है कि बैटरी पूरी डिस्चार्ज हो गई है। आप के पास केबल हो तो उसे से जोड़ कर उसे चार्ज कर लें।
अमन भैया को और क्या चाहिये। वह तो जा कर मदद करने वालों में हैं, यहॉं तो मदद चाहने वाले आ गये। फौरन तैयार हो गये। अपनी कार स्टार्ट की और उन की कार की बगल में खड़ी कर दी। केबल भी उन के पास थी। वह भी निकाल लिये। दूसरी कार को बोनैट खोला और बोले - बैटरी तो है ही नहीं। यहॉं तक कैसे आ गई, आश्चर्य है। बैटरी दिख नहीं रही। वह साहब - कब तक साहब कहें गे, नाम दे देते हैं - वर्मा साहब बोले। यह कैसे हो सकता है। कल तो अच्छी भली कार चली थी। और आज भी चली। रुक गई तो सोचा, पहले चाय पी लें फिर किसी भले आदमी से मदद मॉंगते हैं। बस पंद्रह मिनट ही सामने के होटल में गये थे।
अब?
आगे की सीट पर श्रीमती वर्मा बैठी थीं। उन्हों ने एक बार अमन भैया की तरफ देखा औैर एक बार अपने पति की ओर। बोलीं - बैटरी कार के पीछे की तरफ है।
अब वहॉं कैसे चली गई, दोनों समझ नहीं पाये। खैर, सामान निकाला। कव्वर उठाया। वाकई बैटरी सीट के नीचे थी। बस केबल की प्रतीक्षा कर रही थी।
अब केबल लगाने की बात थी। श्रीमती वर्मा तो कार से उतर गईं। उन का दृढ़ मत था कि यह काम तो पुरुष वर्ग का है। अमन भैया ने घर से ला कर कुर्सी डाल दी। श्रीमती वर्मा अपनी पुस्तक में व्यस्त हो गईं।
दोनों ने केबल लगाने का काम शुरू किया। अब न तो अमन भैया ने कभी ऐसा काम पहले किया था और लगता था कि श्री वर्मा ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। अमन भैया सोच रहे थे, कार वर्मा जी की है तो उन्हें पता हो गा, कहॉं क्या है, क्या करना है, कैसे करना है। शायद वर्मा जी भी यही सोच रहे हों गे कि इन के पास कार है तो कार के बारे में सब कुछ जानते ही हों गे। अमन भैया भी क्यास से चल रहे थे, वर्मा जी भी। बैटरी देखी। एक लाल रंग का टर्मिनल था, एक काले रंग का। इस कार में भी उस कार में भी। दो दो रंग क्यों थे जब बैटरी एक थी, यह अमन भैया ने किसी से कभी पूछा नहीं था। चाबी घुमाई और कार चालू, यह सीखा था। दिक्कत हुई तो वर्कशाप में फोन कर दिया। शायद वर्मा जी का भी यही हाल था।
खैर साहब, दोनो बैटरी को आपस में केबल से जोड़ दिया गया। अमन भैया ने अपनी कार स्टार्ट की और एक ज़ोरदार धमाका हुआ। और इंजिन बन्द। अपनी कार का बौनेट खोला तो केबल बैटरी के साथ चिपक गया था।
अब आगे का हाल मत पूछिये।
एक महीने बाद श्रीमती वर्मा का कूरियर द्वारा भेजा गया पार्सल मिला। उस में नये केबल थे और उस विदेशी कार के बारे में एक मैन्युल। अमन भैया के पास वह मैन्युल अभी तक सुरक्षित है। उस का कव्वर भी अभी वैसा ही है, जैसा आया था।
और केबल?
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