सवेरे सवेरे
- kewal sethi
- Jul 5, 2024
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सवेरे सवेरे
- आज सण्डे है न?
- बिल्कुल, शनिवार के बाद आया है तो सण्डे ही हो गा।
- आज सर्दी है न?
- दिसम्बर में सर्दी नहीं हो गी तो और क्या हो गा।
- आज मैं रज़ाई से बाहर नहीं निकलने वाली।
- ऐसा क्या!
- कुछ समझे?
- नहीं तो
- आज चाय तुम्हें बनाना पड़े गी।
- चाय? मुझे? मैं ने कभी चाय बनाई है क्या?
- कभी न कभी तो शुरू करना ही हो गा। आज सही।
- अच्छा महारानी जी, जैसा हुकुम
- शाबाश
- कितना पानी रखना है पतीली में?
- दो कप चाहिये। एक मेरा, एक तुम्हारा
- लो हो गया। गैस भी जला दी।
- अरे, थोड़ा पानी और डाल दो।
- दो कप चाय पीना है क्या?
- नहीं, कुछ गर्म करने में, उबलने में उड़े गा न।
- ओ के। दुूध कितना डालूॅ।
- अन्दाज़ से डाल दो पर ज़्यादा नहीं डालना। स्वाद जाता रहे गा।
- और चाय पत्ती
- दो चमच
- कौन सा चमच? यहॉं तीन पड़े हैं अलग अलग साईज़ के।
- बीच वाला।
- ओ के। अखबार बाहर से उठा लूॅं न।
- ज़रूर।
- लीजिये श्रीमती जी, चाय तैयार है। पलंग पर ही बैठ कर पीजिये।
- थैंक यू। शुक्रिया, मेहरबानी। वाकई चाय का स्वाद आये गा।
- सुनो, यह तुम ने बूरा चीनी कब से लेना शुरू कर दी। अच्छी भली दानेदार चीनी होती थी।
- बूरा चीनी! वह कहॉं से मिल गई्र तुम को?
- चाय के डिब्बे के बगल में ही तो थी। पतंजली वाली शीशी में।
- वह डाली क्या?
- जी, बिल्कुल
- वह बूरा चीनी नहीं थी। नमक था।
- अरे! अब?
- तुम कुर्सी पर बैठ कर अखबार पढ़ो। मैं चाय बना कर लाती हूॅं।
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