सरिस्का में
(संभवत: भारत के इतिहास में पहली बार मंत्री मण्डल की बैठक दिल्ली से बाहर हुई।
यह हुई एक रमणीक स्थल सरिस्का, राजस्थान में। जैसा कि आम तौर पर होता है,
सोनिया गांधी भी साथ थीं।
तो इस मंत्री मण्डल की बैठक में क्या हुआ, इस की कल्पना मैं ने की है।)
सरिस्का में सब मिल बैठे, करने लगे विचार
कौन साधन अपनायें, करें देश का उद्धार
सब की सोच एक ही, बढ़ रही सुरसा सी महंगाई
हालत यही रही तो हो जाये गी कुर्सी से जुदाई
किसी को किसी भी हाल में था न यह गवारा
इसी लिये सिर खुजाने में लगा मंत्रीमण्डल सारा
किसी ने दी अपनी राय, दूसरे ने अलग बात सुझाई
पर राजीव को इन सब में कोई भी रास नहीं आई
तीन घंटे तक बैठक चली, निकला न कोई परिणाम
कल फिर सोचें गे कह कर उठ गये लोग तमाम
इसी सोच सोच में राजीव गैस्ट हाउस में आया
मुख पर थी उस के घनी परेशानी की छाया
देखा सोनिया ने तो बोली बात क्या है डियर
चाल ऐसी है जैसे डाल नहीं पा रहे हो गियर
बोला राजीव तुम्हें तो हर समय सूझती हंसी
यहां अजीब मुशिकल में है अपनी नैया फंसी
तुम तो हमेशा पिकनिक की ही सोचती रहती हो
जैसे इणिडया में नहीं अभी भी रिवीरिया पर रहती हो
मौज मस्ती तो ठीक है पर करना भी होगा कुछ काम
नहीं तो अगले चुनाव में हो जाये गी नींद हराम
महीने में अभी तो बीस दिन हम दौरा लगाते हैं
पहनते हैं नित नई टोपियां, दावतें उड़ाते हैं
रही न कुर्सी तो कौन पूछे गा कौन इस इण्डिया में
फिर से चलाना पड़े गा वही खटारा एअर इण्डिया में
चहक कर बोली सोनिया मत किव्ज़ तुम बुझवाओ
क्या है वर्री तुम्हारी यह भी तो कुछ बतलाओ
कहा राजीव ने चिन्ता यह है मुझ को भारी
दे रही दुहाई बढ़ती महंगाई की जनता सारी
नहीं किसी के पास खरीदने को कुछ भी पैसे
अगर हाल यही रहा तो दें गे हम को वोट कैसे
सुन कर सोनिया ने मन में सोच की दौड़ लगाई
दो मिनट के बाद ही हंस कर उस ने ताली बजाई
बस इतनी से बात क्या डियर तुम को करती हैरान
अरे इस प्राबलम का हल तो है बहुत ही आसान
पैसे नहीं है। उन के पास तो पैसे उन के बचवाओ
सीधा सा मैथड है तुरन्त चीज़ों के दाम बढ़ाओ
सुन कर बेचारे राजीव का घूम गया था सर
दाम बढ़ाने से भला कैसे होगी समस्या हल
तब सोनिया ने इस तरह साल्यूशन समझाया
इतनी से बात इणिडयन माईंड समझ न पाया
कीमतें गर बढ़ें गी तो लोग कैसे चीज़े खरीद सकें गे
चीज़ें न खरीदें गे तो उन के पैसे ही तो बचें गे
मान लो पैट्रोल की कीमत सात रुपये से हो गई आठ
चलें गे मजबूरी में पैदल तो क्या बचें गे न सात
सुन कर राजीव का बुझा हुआ मन फिर हरशाया
रात को आर्डर निकाल कर पैट्रोल का दाम बढ़ाया
पैट्रोल ही क्यों, महंगे हो गये लोहा कोयला चीनी
यूं महंगाई को कर दिया दूर अपना कर अनोखी नीति
कैसा दिया हल सरिस्का में सोनिया की सोच ने अनमोल
कहें कक्कू कवि अब तो जय राजीव, जय सोनिया बोल
(1986)
Comments