सरकारी ऋण तथा इस का परिणाम
सरकार प्रति वर्ष बजट पेश करती है जिस में आने वाले वर्ष की आय तथा व्यय का लेखा रहता है। आम जनता के लिये यह आवश्यक है कि वह अपना व्यय आय के अनुरूप तय करे। सरकार के लिये ऐसा आवश्यक नहीं है। वह आय को व्यय के अनुरूप बढ़ाने के उपायों पर विचार कर सकती है। वह जनता से ऋण भी ले सकती है। सामान्य व्यक्ति भी ऋण लेता है जब उसे कोई बड़ी सम्पत्ति - कार, मकान, इत्यादि क्रय करना हो। सरकार भी ऋण लेती है तथा उस से भी अपेक्षा रहती है कि वह कुछ परिसम्पत्ति बनाये गी। इसे सरकारी भाषा में पूॅंजीगत व्यय कहा जाता हैं। इस का लक्ष्य है ऐसी परिसम्पत्ति बनाना जो आगे जा कर अधिक आय का स्रोत बन सके।
जब ऋण का प्रयोग शादी विवाह में अथवा सैर सपाटे में किया जाता है तो यह परिवार के लिये सुखमय स्थिति नहीं कही जाती है। इस से व्याज का भार बढ़ता है किन्तु आय में वृद्धि नहीं होती है। फिर भी ऐसा व्यय, विशेष रूप से विवाह इत्यादि में व्यय, लोगों को प्रसन्न रखने के लिये करना पड़ता है। यही हाल सरकार का भी है। कई बार उसे मतदाताओं को खुश करने के लिये ऐसी योजनायें चलाना पड़ती है जो आय का स्रोत्र नहीं बन सकतीं पर जिन्हें ऋण द्वारा पूरा किया जाता है। चुनाव वर्ष के समीप इस का विशेष ज़ोर होता है।
इस के लिये निम्न आंकड़ों पर विचार किया जाये -
ब्वर्ष कुल व्यय ऋण पूॅंजीगत व्यय . ऋण/व्यय ऋण/ पूॅंजीगत व्यय
अनुपात अनुपात
2007.8 पूर्वानुमान 712671 126871 118238 18 93
2007.08 पुनरीक्षित 750884 133287 92768 18 70
2008.9 पूर्वानुमान 900953 326515 97505 36 27
2008.9 पुनरीक्षित 883956 336992 90158 38 27
2009.10 पूर्वानुमान 1024487 418482 112678 40 27
2010.11 पूर्वानुमान 1197328 3737591 156605 31 42
2011.12 पूर्वानुमान 1304365 515990 158850 40 31
2012.13 पूर्वानुमान 1410367 490597 166858 35 32
2013.14 पूर्वानुमान 1559447 501858 187675 32 37
2014.15 पूर्वानुमान 1663673 510725 196681 31 39
2015.16 पुनरीक्षित 1785391 553090 237718 30 44
2016.17 पूर्वानुमान 1978060 533904 247023 27 46
उपरोक्त आंकड़े देखने से पता चले गा कि मनमोहन सरकार द्वारा 2007-08 में ऋण सीमित मात्र में लिया गया। पूर्वानुमान के अनुार 93 प्रतिशत राशि पूूंजीगत व्यय के लिये थी। 2007 के मध्य में इस नीति में अचानक मोड़ आया। चुनाव के मद्देनज़र अनेक मदों पर व्यय बढ़ाया गया जिस सं पूॅंजीगत व्यय का अनुपात कम हो गया। इस के भी लिये अधिक ऋण लेना पड़ा। परन्तु इस नीति के चलते अगले बजट में ऋण की राशि ढाई गुणा से अधिक बढ़ गई और उस के बाद यह अनुपात कुल व्यय के मुकाबले काफी अधिक रहा। यह क्रम अगले चुनाव तक चलता रहा। 2014-15 में सरकार बदलने के बाद इस में कमी आई है और 2016-17 में यह 27 प्रतिशत रह गया है। यु पी ए सरकार द्वारा आरम्भ किये गये कई कार्यक्रम तुरन्त बन्द नहीं किये जा सकते थे अतः यह पूर्व के अनुपात 18 की ओर नहीं लौटा जा सका।
इसी के साथ यह भी देखा जाये गा कि जो ऋण लिया जाता है वह व्यय कैसे किया जाता है। सामान्य तौर पर यह पूरी राशि विकास के कार्य पर व्यय करना चाहिये अर्थात पूूंजीगत व्यय में आना चाहिये तथा 2007-08 के पूर्वानुमान के अनुसार यह 93 प्रतिशत था। उस से अगले वर्ष में यह अनुपाल 27 रह गया अर्थात ऋण की राशि का उपयोग विकास के कार्य के लिये कम किया गया तथा सामान्य व्यय के लिये अधिक। यह अनुपात भी अब नई सरकार द्वारा बढ़ाया जा रहा है पर जैसे कि पहले कहा गया, दूसरे कार्यक्रमों के कारण इसे पूर्व की स्थिति में नहीं लाया जा सका।
कहने की आवश्यकता नहीं कि जब ऋण अधिक हो गा तो उस का व्याज भी बढ़े गा। इस का अर्थ यह हो गा कि शेष कार्य के लिये कम राशि बचे गी। उस के लिये अधिक ऋण लेना पड़े गा। इस प्रकार एक दुष्कर चक्कर आरम्भ हो जाता है। इस समय सरकार पर यह ऋण 70 लाख करोड़ रुपये हैं प्रति परिवार यह राशि 2,80,000 रुपये आती है। इस पर प्रति वर्ष 4,56,000 करोड़ रुपये व्याज देना पड़ता है अर्थात प्रति परिवार 18,500 रुपये।
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