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सभ्याचार

  • kewal sethi
  • Mar 1
  • 3 min read

सभ्याचार


दृश्य एक

- बेटा, गोपाल पहली बार सुसराल जा रहा है। तुम्हें साथ भेज रही हूॅं। ध्यान रखना।

- चाची, गोपाल मुझ से बड़ा है। वह मेरा ख्याल रखे गा कि मैं उस का।

- बेटा अमर, बात यह है कि यह थोड़ा छिछोरा है। तुम ठहरे हुये हो।

- तो मुझे क्या करना हो गा।

- एक तो खास तौर पर खाने के समय ध्यान रखना। यह नहीं कि खाने पर टूट पड़े, जैसे घर में खाना ही नहीं मिलता। गल्त धारणा बन जाती है।

- बस, इतना ही।

- मॉं, तुम मुझे गल्त ही समझती हो। मुझे भी इन बातों का ख्याल है।

- चाची, गोपाल ठीक कहता है। बस इसे एक बार समझा दो कि कैसे क्या करना है।

- कुछ नहीं। बस अगर कोई कहे, और क्या चाहिये तो रुक कर सोच कर जवाब देना।

- ठीक हे, चाची। आप बिल्कुल फिकर न करे। कही्ं बहक गया तो सम्भाल लूूं गा।

- इसी भरोसे तो तुम्हें साथ भेज रही हूॅं।


दृष्य दो

हृदयनाथ जी का घर

- अरे बेटा, यह मटर पनीर तो थोड़ा और ले सकते हो।

- नहीं पिता जी, मैं तो बस इतना ही खाता हूॅं।

- अरे जवान आदमी हो, खाना पीना ठीक रखना चाहिये। तभी तो काम कर पाओ गे।

- नहीं जी, ज़्यादा खाने से ही आदमी बीमार पड़ता है। हमारे गिडवानी जी कहते थे कि कम खाने वाले का पेट भी खराब नहीं होता।

- उन का पेट ज़रूर खराब ही रहता हो गा जो ऐसी बात बताये।

- नहीं नहीं, ऐसा नहीं है। वैसे आदत ही हो गई है कम खाने की

- अरे बेटा अमर, तुम्हें तो खाने से परहेज़ नहीं है न।

- जी, वह हमारे घर का असूल ही है कम खाने का। भैया की भी और मेरी भी वैसी ही आदत बन गई है।

- अच्छा अच्छा। अरे धनवा, खीर तो ले आ। कुछ मीठा हो जाये।

- यह खीर तो बहुत हल्की होती है, लीजिये।

- शुक्रिया। वाकई अच्छी दिख रही है।

- अरे, बस दो चम्मच। इस से तो स्वाद का पता भी नहीं चले गा।

- जी, वह बात यह है कि मैं चीनी ज़रा कम ही लेता हूॅ।

- क्यों कोई शूगर की प्राब्लम है क्या।

- जी नहीं। बस आदत सी बन गई। अभी से चीनी कम लें तो बाद में तकलीफ नहीं हो गी।

- क्यों, यह भी गिडवानी का कहना था। अमर, तुम्हारी भी यही आदत है क्या?

- जी, वह हमारे घर में ही यही रिवाज है।

- अच्छा चलो, थोड़ा आराम कर लो। शाम को वापस भी जाना है।

- क्यों भैया, थोड़ा टहल आयें कि आराम करना है।

- नहीं, टहलना ही ठीक रहे गा। सीधे भोजन कर लेटना ठीक नहीं हो गा।

- बहुत सुन्दर विचार हैं, आप दोनों के। ज़रूर टहल आईये। मैं थोड़ा दफतर का काम निपटा लूॅं।


दृश्य तीन

- भैया, तुम ने तो कमाल कर दिया। सुसर जी मॉं से मिलें गे तो तुम्हारी तो कितनी तारीफ करें गे। कितना सुशील लड़का है।

- मॉं का कहना तो मानना ही था न। पता नहीं, उन्हें मेरे बारे में इतना शक क्यों होता है। जाते ही पूछें गी तुम से, कैसा रहा।

- इतनी तारीफ करूॅं गा कि पूछो मत। पर एक बात है, तुम्हारी वजह से में भी कम खा पाया। पेट में चूहे कूद रहे हैं।

- भूख तो मुझे भी लगी है। पर मॉं तो मॉं है।

- वह सामने रैस्टोरैण्ट है। कुछ ले लें क्या।

- वाह, बात तो तुम ने अच्छी सोची। चलो।

- सुसर जी तो दफतर का कम निपटा रहे हों गे। हम टहल कर लौट चलें गे।


दृश्य चार

- वेटर, ज़रा मीनूू तो दिखाना।

- अरे, मीनु क्या देखना है। वह सामने लिखा है न, मिनी थाली। वही ले लेते है।

- वाह भैया, तुम ने मेरे मन की बात कह दी।

- वेटर, दो मिनी थाली ले आना।

- वेटर, दो नहीं, तीन ही ले आना। मैं भी इन के साथ हूॅ।

चौंक कर दोनों ने मुड़ कर देखा। हृदय नाथ खड़े मुस्करा रहे थे।

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