सभ्याचार
दृश्य एक
- बेटा, गोपाल पहली बार सुसराल जा रहा है। तुम्हें साथ भेज रही हूॅं। ध्यान रखना।
- चाची, गोपाल मुझ से बड़ा है। वह मेरा ख्याल रखे गा कि मैं उस का।
- बेटा अमर, बात यह है कि यह थोड़ा छिछोरा है। तुम ठहरे हुये हो।
- तो मुझे क्या करना हो गा।
- एक तो खास तौर पर खाने के समय ध्यान रखना। यह नहीं कि खाने पर टूट पड़े, जैसे घर में खाना ही नहीं मिलता। गल्त धारणा बन जाती है।
- बस, इतना ही।
- मॉं, तुम मुझे गल्त ही समझती हो। मुझे भी इन बातों का ख्याल है।
- चाची, गोपाल ठीक कहता है। बस इसे एक बार समझा दो कि कैसे क्या करना है।
- कुछ नहीं। बस अगर कोई कहे, और क्या चाहिये तो रुक कर सोच कर जवाब देना।
- ठीक हे, चाची। आप बिल्कुल फिकर न करे। कही्ं बहक गया तो सम्भाल लूूं गा।
- इसी भरोसे तो तुम्हें साथ भेज रही हूॅं।
दृष्य दो
हृदयनाथ जी का घर
- अरे बेटा, यह मटर पनीर तो थोड़ा और ले सकते हो।
- नहीं पिता जी, मैं तो बस इतना ही खाता हूॅं।
- अरे जवान आदमी हो, खाना पीना ठीक रखना चाहिये। तभी तो काम कर पाओ गे।
- नहीं जी, ज़्यादा खाने से ही आदमी बीमार पड़ता है। हमारे गिडवानी जी कहते थे कि कम खाने वाले का पेट भी खराब नहीं होता।
- उन का पेट ज़रूर खराब ही रहता हो गा जो ऐसी बात बताये।
- नहीं नहीं, ऐसा नहीं है। वैसे आदत ही हो गई है कम खाने की
- अरे बेटा अमर, तुम्हें तो खाने से परहेज़ नहीं है न।
- जी, वह हमारे घर का असूल ही है कम खाने का। भैया की भी और मेरी भी वैसी ही आदत बन गई है।
- अच्छा अच्छा। अरे धनवा, खीर तो ले आ। कुछ मीठा हो जाये।
- यह खीर तो बहुत हल्की होती है, लीजिये।
- शुक्रिया। वाकई अच्छी दिख रही है।
- अरे, बस दो चम्मच। इस से तो स्वाद का पता भी नहीं चले गा।
- जी, वह बात यह है कि मैं चीनी ज़रा कम ही लेता हूॅ।
- क्यों कोई शूगर की प्राब्लम है क्या।
- जी नहीं। बस आदत सी बन गई। अभी से चीनी कम लें तो बाद में तकलीफ नहीं हो गी।
- क्यों, यह भी गिडवानी का कहना था। अमर, तुम्हारी भी यही आदत है क्या?
- जी, वह हमारे घर में ही यही रिवाज है।
- अच्छा चलो, थोड़ा आराम कर लो। शाम को वापस भी जाना है।
- क्यों भैया, थोड़ा टहल आयें कि आराम करना है।
- नहीं, टहलना ही ठीक रहे गा। सीधे भोजन कर लेटना ठीक नहीं हो गा।
- बहुत सुन्दर विचार हैं, आप दोनों के। ज़रूर टहल आईये। मैं थोड़ा दफतर का काम निपटा लूॅं।
दृश्य तीन
- भैया, तुम ने तो कमाल कर दिया। सुसर जी मॉं से मिलें गे तो तुम्हारी तो कितनी तारीफ करें गे। कितना सुशील लड़का है।
- मॉं का कहना तो मानना ही था न। पता नहीं, उन्हें मेरे बारे में इतना शक क्यों होता है। जाते ही पूछें गी तुम से, कैसा रहा।
- इतनी तारीफ करूॅं गा कि पूछो मत। पर एक बात है, तुम्हारी वजह से में भी कम खा पाया। पेट में चूहे कूद रहे हैं।
- भूख तो मुझे भी लगी है। पर मॉं तो मॉं है।
- वह सामने रैस्टोरैण्ट है। कुछ ले लें क्या।
- वाह, बात तो तुम ने अच्छी सोची। चलो।
- सुसर जी तो दफतर का कम निपटा रहे हों गे। हम टहल कर लौट चलें गे।
दृश्य चार
- वेटर, ज़रा मीनूू तो दिखाना।
- अरे, मीनु क्या देखना है। वह सामने लिखा है न, मिनी थाली। वही ले लेते है।
- वाह भैया, तुम ने मेरे मन की बात कह दी।
- वेटर, दो मिनी थाली ले आना।
- वेटर, दो नहीं, तीन ही ले आना। मैं भी इन के साथ हूॅ।
चौंक कर दोनों ने मुड़ कर देखा। हृदय नाथ खड़े मुस्करा रहे थे।
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