संदर्भ — श्री विनोद कुमार का सन्देश दिनॉंक 27 जनवरी 2024
वाकई काम के सवाल हैं। इन का जवाब मुश्किल है पर फिर भी कोशिश है।
.1. बच्चे को स्कूल भेजन के पीछे क्या ख्याल होता है
एक यह कि कुछ देर धर से बाहर रहे गा तो अपना काम करने का समय मिल सके गा।
घर में लाडलेपन की वजह से बहुत सिरफिरा हो गया है। स्कूल में वह खास देखरेख नहीं मिल सके गी, जो घर में मिलती है। इस से शायद उस के व्यवहार में कुछ परिवर्तन आये।
आखिर बच्चे को घर में भी ध्यान देने के लिेय कुछ होना चाहिये। होमवर्क मिले गा तो उस में कुछ ध्यान लगे गा।
होम वर्क कराने में मदद करने के नाते आपसी भाई चारा व्यवहार बदले गा। वह माता पिता की उपयोगिता समझने लगे गा।
आखिर तो जाब में शिक्षा ही काम आती है इस लिये कभी तो शुरू करना ही हो गा। इस में विलम्ब क्यों किया जाये।
यदि दोनो की नौकरी है तो यह सिलसिला काफी पहले से आरम्भ हो सकता है। इस से नौकरी में या काम में ध्यान दे सकें ग।
.2. वह ऐसा क्या है जिस के लिये बच्चे को स्कूल भेजते हैं और जब वह मिल जाती है तो इस का क्या किया जाता है।
जिसे पाने के लिये भेजा जाता है, वह एक न समाप्त होने वाली बात है। इस लिये आगे की बात नहीं हो सकती है।
कुछ देर घर से बाहर रहे गा तो काम करने का समय मिले गा। अपना काम भी तो कभी खत्म नहीं होता इस लिये यह प्रयोजन भी पूरा नहीं हो पाये गा।
देखा हो गा कि जब गर्मी के अवकाश में या शरद ऋतु के अवकाश में कुछ दिन बीत जाते हैं तो दोनों ही पक्ष - बच्चा और माता पिता - कलैण्डर देखने लगते हैं कि स्कूल कब खुल रहे हैं।
अगर बच्चा स्कूल में अतिसक्रिय जीवन का आदी बन गया है तो माता पिता उतना समय भी नहीं दे पाते और उन की इतनी शक्ति भी नहीं होती कि वह साथ दे सकें। यदि वह सदैव कुछ अतिरिक्त जानने का प्रयास करता रहता है तो उस के प्रश्नों का जवाब डूॅंढने में मॉं बाप को पसीना आना शुरू हो जाता है। यदि वह अंतर्मुखी है और सदैव मोबाईल में व्यस्त रहता है तो दूसरी प्रकार की चिन्ता घेर लेती है। कौन से मित्र है, किस प्रकार के सन्देश एक दूसरे को भेजते है, यह चिन्ता सताने लगती है
उपराक्त कारणों से बच्चे का स्कूल में रहना ही सही प्रतीत होता है।
3. क्या बच्चे को पता होता है कि उन्हें स्कूल क्यों भेजा जा रह है। क्या माता पिता बच्चे को स्कूल भेजने से पहले यह बताते हें कि उन्हें स्कूल क्यों भेजा जा रहा है।
नहीं, बच्चे को इस का कोई ज्ञान नहीं होता बशर्ते कि उस का कोई बड़ा भाई बहन न हो जो स्कूल जा रहा हो अथवा जा रही हो।
कई शिक्षा विशेषज्ञ यह घोषित करते हैं कि किसी को शिक्षा दी नहीं जा सकती। यह अपने अन्दर से ही आती है। परन्तु मेरे विचार में यह ऑंशिक सत्य है या फिर अतिश्योक्ति है। यह सही है कि बच्चे के अन्दर सीखने की शक्ति है किन्तु पहले उस शक्ति को जगाना पड़ता है। यह काम या तो माता पिता कर सकते है या फिर अध्यापक। फिर शिक्षा में तथा सूचना में अन्तर होता है। सूचना दी जा सकती है और स्कूल ही प्रदाय ही एक माध्यम है। सूचना अािवा जानकारी भीेतर से नहीं आती है। एक के लिये चिन्ह है, यह तो बताना ही हो गा। यह बात अन्य बातों के लिये भी सही है।ै
स्कूल क्यों भेजा रहा है, यह सभी माता पिता अपने बच्चे को बताते हैं पर इस में उतना ही बताया जाता है जो उपयुक्त है। सभी कारण बताये जाना आवश्यक भी नहीं। अपनी कमी कौन बताना चाहे गा।
4. क्या वाकई ही मेहनत सफलता की कुंजी है या जो सफल हुआ उस ने ही मेहनत की, ऐसा है
मेहनत और सफलता दो अलग अलग बातेें हैं। यह साथ भी हो सकती है और अलग अलग भी। परन्तु यह एक दूसरे को पोषित करती है, यह ऑंशिक रूप से ही सत्य है।
कल तक आर जे डी के कारण नीतीश मुख्य मन्त्री थे। आज भाजपा के कारण मुख्य मन्त्री हैं। वह कल भी सफल थे, वह आज भी सफल हैं। पर इस सफलता में मेहनत का कोइ्र योगदान नज़र नहीं आता। इसे संयोग भी कहा जा सकता है, अनैतिकता भी, अवसरवादिता भी। श्रम मेहनत तो कतई नहीं।
न्यूटन ने सेब गिरते देख गुरूत्व का पता लगा लिया। वह सफल बन गया पर उस में मेहनत कहॉं थी। आर्चिमडिीस को अचानक घनत्व का तपा लगा। वह सफल कहलाया। भारतीय मनीशियों ने दशकों तक मेहनत कर विभिन्न जड़ी बुटियों का चिकित्सिा में लाभ का पता लगाया। परन्तु उच्च न्यायालय इस का दावा करने पर स्वामी रामदेव पर एक करोड़ रुपये जुर्माना लगाने का कह रही है। संक्षेप में भाग्य भी अपनी भूमिका निभाता है।
श्रम, संयोग, भाग्य के अतिरिक्त और भी कई्र वैरीएबल हैं जिन के बारे में हम जानते नहीं, परन्तु जो मनुष्य के जीवन का प्रभावित करते हैं।
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