विमुद्रीकरण - अन्तर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में
केवल कृष्ण सेठी
मार्च 2019
भारत में विमुद्रीकरण एक विवादग्र्रस्त शब्द बन गया है। एक ओर इस के गुण बताये जा रहे हैं तो दूसरी ओर इस के दोष गिनाए जा रहे हैं। वास्तविकता देखा जाये तो गुण और दोष दोनों ही की अभिव्यक्ति में अतिश्योक्ति है, इस बात को सभी स्वीकार करें गे।
इस बात को ध्यान में रखना होगा कि विमुद्रीकरण एक सोची समझी योजना थी और हड़बड़ी में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस की पूर्व तैयारी कुछ समय से चल रही थी। इस का पहला कदम जन धन योजना के नाम से सामने आया था जब पूरे देश में विशेषतः ग्रामीण अंचल में शून्य आधारित खाता खुलवाने का अभियान चलाया गया और इस में बड़ी सफलता भी मिली। इसी सिलसिले में दूसरा कदम सरकार की अनुदान की योजनाओं को तथा अन्य योजनाओं से प्राप्त राशि को सीधे खाते से जोड़ने की थी। इस के तहत बिचैलियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया गया और उन के भ्रष्टाचार के रास्ते बंद करने का प्रयास किया गया।
इसी क्रम में तीसरा कदम विमुद्रीकरण का था। सरकार के इस प्रकार के कदम गोपनीय रखे जाते हैं इसलिए इस में पूर्व जानकारी दे कर समुचित तैयारी नहीं की जा सकती थी। कुछ समय तक काफी उथल-पुथल रही परंतु तीन चार महीने में सब व्यवस्थित रूप से चलने लगा। इसी सिलसिले में अगला कदम बेनामी संपत्ति कानून को लागू करने का था। यद्यपि यह कानून पूर्व सरकार ने पारित किया था किन्तु उन की यह हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि इसे लागू किया जाये। इसी क्रम में अगला कदम दिवालियेपन सम्बन्धी कानून को अमली जामा पहनाना था। यह कानून भी पूर्व से चला रहा था परंतु इस पर अमल करना वाँछनीय नहीं माना गया। .
नोटबन्दी के जो आधार थे वह भारत के लिये विशिष्ट नहीं हैं। इसी प्रकार की स्थिति अन्य देशों में भी पाई जाती है तथा उन के द्वारा भी समय समय पर इस सम्बन्ध में कार्रवाई की गई है या की जाना चाहिये। यह लेख इसी पृष्ठभूमि में लिखा गया है। इस बारे में कुछ विवरण कैनथ रोगोफ की पुस्तक ‘दि कर्स आफ कैश’ में दिया गया है। इस के आधार पर तथा इस बारे में अन्य कुछ स्रोतों से प्राप्त जानकारी नीचे दी जा रही है।
करंसी नोट को एक प्रकार का शून्यव्याजधारी वचनपत्र माना जा सकता है। इस में विशेष बात यह है कि यह गुमनाम रहता है चूंकि इस पर किसी व्यक्ति का नाम नहीं होता है। सरकार के नियमों के अनुसार यह जिस के पास भी हो, इसे मान्यता दी जाना अनिवार्य है। आम तौर पर मुद्रास्फीर्ति की दर शून्य से अधिक रहती है अतः समय के साथ करंसी नोट की क्रय शक्ति में कमी आना स्वाभाविक है। भारत में यह नोट दस, बीस, पचास, सौ, दो सौ, पाँच सौ तथा दो हज़ार रुपयों के रहते हैं। रिजर्व बैंक की सूचना के अनुसार 31 मार्च 2018 को जनता के पास जो करंसी थी उस का मूल्य ₹ 17,597 अरब रुपये था जो 1 फरवरी 2019 तक बढ़कर 19,842 अरब रुपये हो गया। यह सकल घेरलू उत्पादन का लगभग 6.4 प्रतिशत है। इन में 3.5 लाख करोड़ रुपए की राशि छोटी रकम के नोटों में थी और 13.3 लाख करोड़ की राशि ऊँचे मूल्य के नोटों (500 तथा 2000) में थी। देश में इस समय 1696 करोड़ नोट ₹500 के तथा 365 करोड़ नोट ₹2000 के है।
इस से पहले कि हम और विश्लेषण करें, इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर ध्यान देना उचित हो गा। इस में बताया गया है कि 1948 में जनता के पास जो करंसी थी वह सकल घरेलू उत्पादन की 9.5 प्रतिशत थी जो कि 1981 में कम हो कर 4 प्रतिशत रह गई परन्तु पुनः 2014 तक बढ़कर 7 प्रतिशत हो गई थी। इस में 100 डालर के नोट जो 1948 में 2 प्रतिशत थे, वह बढ़ कर 6 प्रतिशत हो गए हैं। महंगाई की स्थिति देखते हुए कुछ वृद्धि तो समझ में आती है परंतु इतनी अधिक वृद्धि कुछ दूसरे संकेत देती है। इस समय संयुक्त राज्य अमरीका में प्रति व्यक्ति 4200 डालर बाजार में है। जापान में यही अनुपात प्रति व्यक्ति 6600 डालर तक पहुंच गया है। यहाँ पर जनता के पास उपलब्ध करंसी सकल घरेलू उत्पादन का 19 प्रतिशत है। दस हजार यैन के नोटों का अनुपात 16.5 प्रतिशत है। यह ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राज्य अमरीका की जो 1300 अरब डालर के नोट हैं, उन में से 600 अरब डालर की राशि दूसरे देशों द्वारा धारित की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में केवल 75 अरब डालर के नोट ही बैंक तथा ए टी एम में रहते हैं जिन में से 61 अरब डालर आरक्षित खाते में रहते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार एक व्यक्ति के पास लगभग 250 डालर जेब में और घर में मिला कर रहते हैं। बीस में से केवल एक व्यक्ति के पास 100 डालर का नोट पाया जाता है। छोटे नोटों का चलन ज्यादा है और 40 प्रतिशत सौदे छोटे नोटों में ही होता है जबकि सामग्री का मूल्य देखा जाये तो वह केवल 14 प्रतिशत ही रहता है। जो सौदे क्रेडिट और डेबिट कार्ड द्वारा होते हैं, वह कुल सौदों के 42 प्रतिशत हैं और इस में निहित राशि 34 प्रतिशत है। यहां ध्यान देने योग्य है कि यदि एक व्यक्ति के पास 250 डालर हों तथा यदि 4 व्यक्तियों का परिवार माना जाये तो परिवार के पास एक समय में केवल 1000 डालर के नोट ही रहते हैं और बैंकों में भी केवल 75 अरब के नोट ही हैं। यह सोचना हो गा कि शेष नोट कहां पर रहते हैं।
स्पष्टतः ही इन अनदेखे करंसी नोट का अधिकतर भाग समानांतर अर्थव्यवस्था के अंतर्गत है अथवा उसे प्रोत्साहित करते हैं। कितनी राशि समानांतर अर्थव्यवस्था में रहती है यह कहना मुश्किल है। अनुमान लगाया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह सकल घरेलू उत्पादन का 7.1 प्रतिशत, जापान में में 9.2 प्रतिशत, इंग्लैंड में 10.6 प्रतिशत, फ्रांस में 12 प्रतिशत है। फिर भी यह तुर्की के मुकाबले में यह कम है। तुर्की में इस का अनुमान 28.9 प्रतिशत लगाया गया है। भारत में तो कई लोग इसे 50 प्रतिशत के आसपास मानते हैं।
समानान्तर व्यवस्था में दो तरह की कार्रवाई देखी जा सकती है। एक तो यह कि यह नोट अपराधी वर्ग द्वारा अपराधिक गतिविधि में इस्तेमाल किए जाते हैं। इन में मादक पदार्थों का व्यापार, अवैधानिक आव्रजन, रिश्वत इत्यादि शामिल है। यह लोग अपनी गतिविधि गुमनाम रह कर ही चलाते हैं और करंसी नोट ही इस के लिये उपयुक्त पाये जाते हैं। दूसरा रास्ता कर अपवंचन के लिए इस्तेमाल किया जाना है। व्यापारी अपना क्रय विक्रय कम दिखाता है ताकि कर देने से बचा जाये। इस का सरल तरीका यह है कि कई व्यापारी एवं व्यापारिक संस्थान दो तरह के लेखा पुस्तकें रखते हैं, एक कर अधिकारियों के लिए तथा दूसरा वास्तविक। कराधान अधिकारी इस तरीके से भिज्ञ हैं तथा व्यापारियों तथा कराधान अधिकारियों के बीच मुकाबला चलता रहता है। कुछ पकड़े जाते हैं पर अधिकतर बचे रहते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार कर वसूली अभिकरण का मत है कि संयुक्त राज्य अमरीका में 500 अरब डालर का कर अपवंचन किया जाता है। यदि राज्य द्वारा तथा स्थानीय निकायों द्वारा लगाए गए करों की राशि भी इस में शामिल की जाये तो यह राशि और 200 अरब डालर बढ़ जाये गी। यह भी स्वीकार किया जाता है कि इस का विस्तार अधिक है तथा बहुत जोर लगाया जाये तो भी इस में अधिक कमी होना मुश्किल हो गा।
अपराधिक कार्रवाई में मादक पदार्थों का चलन सब से अधिक खतरनाक हैं। मादक पदार्थों की तस्करी का धंधा बहुत व्यापक है। सभी देश इस के शिकार हैं। केवल संयुक्त राज्य अमरीका में ही अनुमान हैं कि चार बड़े मादक पदार्थ - कोकैन, हीरोइन, गाँजा तथा मेथ - का अवैधानिक कारोबार 100 अरब डालर का है। वर्ष 2003 में संयुक्त राष्ट्र के अनुसंधान के अनुसार पूरे विश्व का व्यापार 322 अरब डालर माना गया है। यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि अब इस का परिमाण 600 अरब डालर के आस पास हो गा। यह सारा धंधा केवल नकद भुगतान पर ही चलता है। मैक्सिको में जब मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले एल चापो के यहां छापा मारा गया तो 20 करोड़ डालर के नोट वहां पर पाये गए।
कर अपवंचन तथा समानांतर आर्थिक व्यवस्था चलाने का एक तरीका यह भी है कि जो माल निर्यात किया जाता है, उस का मूल्य कम कर के बताया जाता है और जो माल आयात किया जाता है, उस का मूल्य बढ़ा कर दिखाया जाता है और यह अंतर काले धन में परिवर्तित हो जाता है। इस के अतिरिक्त हवाला अंतरण का तरीका स्पष्ट है।
एक गम्भीर मुद्दा भ्रष्टाचार का है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार पुरे विश्व में वर्ष 2001 में भ्रष्टाचार में 1000 अरब डालर का लेन देन हुआ था। 18 वर्ष के अन्तराल में यह राशि लगभग दुगनी हो गई हो गी, ऐसा विचार किया जाता है। एक उदाहरण के तौर पर चीन में जनरल हो शिकार - जो फौजियों की पदोन्नति का कार्य देखते थे - के बारे में बताया जाता है कि उन के यहाँ जब छापा मारा गया तो उन के यहाँ पाई गई नकद राशि को ले जाने के लिए 12 ट्रकों का प्रयोग करना पड़ा। अमरीका में विलिसम जैफरसन नाम के काँग्रैस के सदस्य के यहाँ हज़ारों डालर पाये गये। 90,000 डालर तो केक रखने वाली फायल में केक के अन्दर पाये गये। नाइजीरिया में तानाशाह सोनी वाह की भ्रष्टाचार की राशि 2 अरब से 5 अरब डालर के बीच अनुमानित है। इंडोनेशिया के सुहारतो इस से काफी आगे थे जिन की भ्रष्टाचार से पाई गई राशि 15 और 35 अरब डालर के बीच की बताई जाती है। इसी में एक और बड़े कलाकार फिलीपींस के फर्निनैंड मारकोस थे जिन के भ्रष्टाचार की राशि 5 अरब से 10 अरब डालर के बीच आँकी गई थी।
समानांतर अर्थव्यवस्था में एक बड़ा भूमिका मानव तस्करी की भी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार विश्व में लगभग 2 करोड व्यक्ति बंधुआ मज़दूर हैं। इन में 45 लाख वे भी शामिल है जिन का यौन शोषण किया जाता है। उन के अनुसार यौन व्यापार से प्रति व्यक्ति 21,800 डालर की वार्षिक आमदनी रहती है। स्पष्टत: ही यह धन्धा अपराधियों के लिये काफी आकर्षक है। मानव तस्करी की दरें अलग अलग हैं जैसे मैक्सिको से अमेरिका ले जाने के लिए 1000 से 3500 डालर के बीच खर्च करना पड़ता है। मध्य एशिया से यूरोपीय देशों में मानव तस्करी के लिए 7,000 से 10,000 डालर का खर्च आता है। संयुक्त राज्य अमरीका का अनुमान है कि उन के यहां 1 करोड़ व्यकित अवैध रूप से रह रहे हैं जो कुल जनसंख्या के पाँच प्रतिशत के लगभग हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प का दीवार बनाने का इरादा इसी का परिचायक है।
आतंकवाद का पोषण करने के लिये एक बड़ी राशि इस्तेमाल की जाती है जो अधिकतर हवाला माध्यम से आती है। एक अनुमान है कि दायश - इस्लामिक आतंकवादी संगठन - अपनी चरम अवधि में एक अरब से दो अरब डालर के बीच वार्षिक व्यय कर रहे थे। इस में काफी पैसा उन स्थानों से लूट का भी शामिल है जो उन के कब्ज़े में आये थे तथा वह भी जो हवाले के माध्यम से अन्य स्थानों से प्राप्त हुये थे। इसी प्रकार पड़ोस का देश भी आतंकवदी कार्रवाई के लिये धन राशि मुहैया कराता रहा है। यह अलग बात है किु अन्य गतिविधि जैसे मादक पदार्थ की तुलना से आतंकवाद पर व्यय की गई राशि बहुत कम है।
जहाँ तक नकली नोट बनाने का मुद्दा है, यह विश्व स्तर पर बहुत गंभीर समस्या नहीं है। वर्ष 2012 में इस का अनुमान संयुक्त राज्य अमरीका में केवल 0.01 प्रतिशत था किन्तु कुछ देशों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है विशेषतः जब दूसरे देश की सरकार स्वयं इस में शामिल हो। बताया जाता है कि उत्तर कोरिया ने अमरीका के जो 100 डालर के नकली नोट मुद्रित किये थे, वे सभी तरह से असली नोट के अनुरूप थे। भारत में यह शंका व्यक्त की जाती है कि एक पड़ोसी देश भी इस प्रकार की गतिविधि में शामिल है।
प्रश्न यह है कि इस स्थिति से निपटा कैसे जा सकता है। इस का एक ही तरीका है कि बड़े नोटों का चलन को समाप्त किया जाये अथवा न्यूनतम किया जाये। नकदी को पूर्णतः समाप्त तो नहीं किया जा सकता पर इसे कम करना लक्ष्य रहना चाहिये अर्थात कैशलैस के बजाये लैसकैश पर ध्यान दिय जाये। इस के लिये बेनामी सौदों को अधिक से अधिक कठिन इस सीमा तक बनाया जाये कि कोई सौदा बिना पहचान के न रह सके।
इस सम्बन्ध में आम आपत्ति यह ली जाती है कि इस से उन लोगों को बहुत कष्ठ हो गा जो निम्न श्रेणी में हैं। यह शंका निर्मूल है क्योंकि जैसे पूर्व में कहा गया है, इस श्रेणी में बड़े नोट बहुत ही कम होते हैं तथा छोटे नोट समाप्त नहीं किये जा रहे। इस के साथ ही इस बात का प्रयास भी करना हो गा कि बैंक खाता विहींन लोगों की संख्या कम से कम की जाये। इस का प्रबन्ध किया जाये कि इन लोगों के लिए आसान डैबिट तथा क्रैडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध हो। इस के लिए उन्हें स्मार्टफोन भी कम कीमत पर प्रदाय किए जा सकते हैं। इन पर होने वाले बैंक व्यय को आपूर्ति कर चोरी रोके जाने से अधिक आय होने से हो सके गी।
एक और मुद्दा ध्यान देने योग्य है कि कई लोग अपने व्यय को अपने तक सीमित रखना चाहते हैं। कई बार परिवार के भीतर भी पति पत्नी एक दूसरे से अपने क्रय विकय के बारे में बताना नहीं चाहते। इन सब बातों में इस बात का ध्यान रखा जाना उचित है कि अन्य वाँछनीय बातों की तरह इस नोट कमी के लक्ष्य में भी पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती और कुछ समझौता करना अनिवार्य होता है।
व्यवहारिक रूप से क्या कदम उठाये जा सकते हैं। भारत में ₹2000 के नोट सब से बड़े नोट हैं। इन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया प्रतीत होता है क्योंकि रिजर्व बैंक नये नोट वितरित नहीं कर रहा है। इस के बाद ₹500 का नोट है। इस के बारे में विचार किया जा सकता है। 200 रुपये का नोट सब से बड़े हों तो अधिक नकद राशि का संग्रह करना कठिन हो जाये गा। अमेरिका में 100 डालर से अधिक का नोट नहीं होता है और कैनेथ रोगोैफ का सुझाव है कि इसे समाप्त कर करंसी नोट 20 डालर तक सीमित कर दिये जाना चाहिए। क्रय शक्ति के आधार पर भारत में भी ₹200 का नोट सब से बड़ा नोट हो सकता है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि इन नोटों को एक साथ समाप्त करने की घोषणा नहीं की जा सकती जैसा कि पूर्व में किया गया था क्योंकि इस से अफरा तफरी होने की अधिक सम्भावना रहती है परन्तु इन्हें धीरे-धीरे समाप्त किया जा सकता है। यूरोपीय संघ में यूरो का पदार्पण 1999 में हुआ था परन्तु स्थानीय करंसी भी साथ साथ चलती रही, जैसे फ्रांस का फ्रैंक को केवल 2002 में आम सौदों के लिये अयोग्य करार दे दिया गया था। इस के बाद भी बैंक में नोटों का बदला जाना चालू रहा। इसे दस वर्ष बाद 2012 में समाप्त किया गया। इसी प्रकार भारत में ₹2000 के नोट दो वर्ष तक तथा 500 के नोट 3 वर्ष के लिए चलाए जा सकते हैं और उस के बाद पांच सात वर्ष केवल बैंकों में जमा कराए जा सकते हैं। इस से यह बड़े नोट बिना किसी झंझट के कम हो जायें गे।
दूसरी कठिनाई की ओर ध्यान दिया जाये, डैबिट कार्ड तका क्रैडिट कार्ड उपलब्ध कराने के बारे में। विमुद्रकरण के बाद सरकार ने काफी समय तक इन पर लिये जाने वाले शुल्क से छूट दी थी। वही तरीका अपनाया जा सकता है। बैंकों को आवश्यक अनुदान दिया जा सकता है ताकि उन पर कोई आर्थिक भार न आये। एक दूसरा तरीका है जिस में पूर्व अधिकृत कार्ड जारी किए जा सकते हैं जिस में बैंक द्वारा सीमित राशि वाले कार्ड दिये जायें गे। यह उल्लेखनीय है कि डैनमार्क में पूर्व भुगतान कार्ड दिये जाते हैं जिन के लिये किसी पिन या कोड की आवश्यकता नहीं होती। यदि यह गुम हो जायें तो नकद नोट के गुम होने के ही समान है। इन को किसी अन्य को भुगतान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके गा। भारत में जन धन योजना के अंतर्गत बिना किसी न्यूनतम सीमा के बैंक खाता खोलने की अनुमति दी गई है और इस का विस्तार किया जाना उचित होगा। बैंकों का इस से जो व्यय आता है, उस को पूरा करने के लिए अनुदान दिया जाना आवश्यक हो गा। इन सब सुविधाओं के लिये रियल टाईम भुगतान की आवश्यकता रहे गी।
इसी तारतम्य में भारत में कई कार्यक्रम आरम्भ किये गये है। डिजिटल साक्षरता अभियान नाम के कार्यक्रम का लक्ष्य है कि सभी परिवारों में कम से कम एक व्यक्ति कम्प्यूटर द्वारा भुगतान करने की विधि सीख ले। दिशा नामक कार्यक्रम में 6 करोड़ लोगों को वर्ष 2019 तक डिजिटल साक्षर बनाने का लक्ष्य था। परन्तु इस प्रकार के कार्यक्रम में समय लगना अवश्यंभावी है। आखिर हम शत प्रतिशात साक्षरता के प्रति भी सत्तर वर्ष से कटिबद्ध हैं किन्तु लक्ष्य आज भी दूर ही प्रतीत होता है। इतना ही संतोष किया जा सकता है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं।
क्रैडिट तथा डैबिट कार्ड के प्रचलन को बढ़ाने के लिए सब से महत्वपूर्ण बात निजत्व की सुरक्षा होगी। वैसे तो आज कल सामाजिक मीडिया - गूगल, फेसबुक, टिविट्टर तथा अन्य संगठनों — के पास सभी जानकारी व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से देता है। फिर भी यह शंका व्यक्त की जाती है कि प्रदत्त जानकारी का शासन द्वारा गल्त उपयोग किया जाये गा। सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल में ही आधार कार्ड के बारे में कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं जिन में निजत्व की रक्षा भी होती है तथा आधार कार्ड को सही शब्दों में आधार भी बनाया जा सकता है।
डैन्मार्क के बारे में बात की गई है, इस में पे मोबाइल के नाम से एक सुविधा प्रदान की गई है जिस में एक व्यक्ति दूसरे को कोई भी राशि अंतरित कर सकता है। दोनों का एक ही बैंक में खाता होना भी आवश्यक नहीं है। डैनमार्क में 50 लाख की आबादी में से 28 लाख के पास यह सुविधा उपलब्ध है। स्वीडन में बेनामी सौदों को रोकने के लिये तथा छोटे उद्योगों तथा दुकानों में कर अपवंचन रोकने के लिये प्रमाणित कैश रजिस्टर दिए गए हैं जिन में प्रत्येक सौदा अंकित हो जाता है। इस रजिस्टर को आडिट के लिये कर अधिकारी द्वारा देखा जा सको हैं। इस से कर अपवंचन में काफी कमी आई है।
एक और बड़ा मुद्दा डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड इत्यादि की सुरक्षा का है। साइबर अपराध तीव्र गति से बढ़ने वाले हैं। इस के लिये समुचित कानून बनाये जाना तथा उन्हें त्वरित गति से लागू करना आवश्यक हो गा ताकि यह दूसरे लोगों के लिए एक उदाहरण बन सके। सम्भवतः इस के लिये हमें न्यायिक व्यवस्था में भी आमूलचूल परिवर्तन करना हो गा क्योंकि न्याय में विलम्ब स्वयं में अन्याय है।
सारांश में कर अपवंचन एक सामाजिक अपराध है क्योंकि इस का फल समाज के अन्य वर्ग को भुगतना पड़ता है। इसी प्रकार बेनामी सम्पत्ति संग्रह एवं समानान्तर आर्थिक व्यवस्था असमानता का बढ़ाते हैं जो स्थिति न तो वाँछनीय है तथा न ही प्रजातन्त्र के मूल सिद्धाँतों के अनुरूप है। अपराधिक गतिविधियों को रोकने के बारे में तो यह बात स्वयं सिद्ध है। यदि हमें बड़े विकारों से छुटकारा पाना है तो थोड़ी कठिनाई तो उठाना पड़े गीं। देश में मोबाईल की व्यापकता देखते हुये यह इतना कठिन भी नहीं होना चाहिये। केवल मनोवृति परिवर्तन की आवश्यकता है। यह देर सवेर हो गी ही क्योंकि समानन्तर आर्थिक व्यवस्था सिवाये अपराधियों के किसी के लिये हितकर नहीं है।
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