वापसी
‘‘कैसे हो?’
- ठीक हूूं
- पढ़ाई कैसे चल रही है
- ठीक है
- इम्तहान कब है
- पता नहीं
आर फिर फोन काट दिया गया। शायद मम्मी आ गई थी या फिर ...
कहने लायक कुछ था नहीं।
फोन को बन्द किया ही था कि दरवाज़े की धण्टी बज उठी।
अनमने ढंग से उठ कर दरवाज़ा खोला और रमेश दाखिल हुआ।
रमेश सहपाठी रह चुका था। अच्छी दोस्ती थी। साथ साथ पढ़े, खेले ओर फिर अपने अपने रस्ते चल दिये।
पर अब दोनों फिर पुराने शहर में थे। इस कारण रमेश मौके बे मौके आ जाता था। आज भी वही हुआ।
पर बात चीत का सिलसिला चल नहीं पाया। रमेश को कहना पड़ा -
- क्या बात है। बहुत उदास दिख रहे हो।
- नहीं तो
- कुछ बात तो है।
- नही, नहीं, कुछ भी नहीं
- देखो, दाई से पेट और दोस्त से उदासी छुप नहीं सकती। शायद कुछ गम हल्का कर सकूॅं।
पर नहीं, इस बात को इस तरह नहीं बता सकते। कुछ पृष्ठ भूमि बतानी पड़े गीं। पहले नाम भी तो देना पड़े गा।
जय था उस का नाम ।
पढ़ाई के बाद जय को मुम्बई में अच्छी नौकरी मिल गई और फिर कम्पनी ने ही उसे अफ्रीका भेज दिया।
बस यहीं गड़बड़ हो गई।
अफ्रीका जाना शायद कुदरत का मज़ाक था। बीवी को अफ्रीका पसन्द नहीं आया। करने को कुछ था नहीं। कोई सहेलियॉं थी नहीं। बच्चे तो थे पर जया केवल बच्चों को पालना ही काफी नही समझती थी। शादी से पहले उस ने एक पत्रिका में काम किया था। उसे उम्मीद थी कि वह फिर से वही कर सके गी। बच्चे जब तक स्कूल जाने लायक नहीं हुये, वह मन मार कर बैठी रही। ओर अब जब वक्त आया तो यह अफ्रीका बीच में आ गया।
नतीजा रोज़ रोज़ की चिक चिक।
फिर एक बार अवकाश में भारत आये तो बीवी ने मौका देखा और बच्चों के साथ मैके चल दीं और फिर आने से इंकार कर दिया।
जय को अकेले अफ्रीका जाना पड़ा पर उस का मन वहॉं नहीं लगा। बच्चों की याद सताती रही। उस ने नौकरी छोड़ दी अैर भारत लौट आया, इस उममीद के साथ कि जया लौट आये गी। पर जया को मायका रास आ गया और उस ने लौटने से इंकार कर दिया। बच्चों से उस के रवेये के कारण बातचीत भी कठिन हो गई।
जब रमेश ने ज़्यादा कुरेदा तो जय का पूरी बात बतानी पड़ी। पूरा डायलाग भी बता दिया।
रमेश सोच में पड़ गया। क्या किया जा सकता है। वह जनाता था कि जय बच्चों को कितना चाहता है। आखिर उस ने राय देना भी ज़रूरी समझा। दोस्त होते और किस लिये हैं। उस ने समझाया कि अगली बार जब वह बेटे को फोन करे तो कैसे बात करे।
जस को सलाह पसन्द तो नहीं आई पर वह कहावत है न डूबते को तिनके का सहारा। यह भी कर देखते हैं।
- कैसे हो
- ठीक हूॅं।
- कल मैं इंदौर गया था क्रिकेट का मैच देखने। गुजरात टाईटन और रात्जस्थान रायल का मैच था।ं मज़ा आ गया। आखिरी ओवर में तो 21 रन बनाने थे जीत के लिये। पहली बाल पर ही रधु ने छक्का लगाया तो पूरा मैदान तालियों से गूॅंज उठा। अभी तालियों का शोर कम भी नहीं हो पाया और रघु ने एक और छक्का जमा दियां।
उधर से फोन पर आवाज़ आई।
किस से बात कर रहे हो।
कुछ नहीं मम्मी, पापा का फोन था।
मैने कहा है न कि उन से बात करने की ज़रूरत नहीं है। जाने क्यों फोन करते रहते हैं।
मम्मी, वह बड़ी अच्छी बात बता रहे थे।
बन्द करो, मुझे नहीं सुनना है।
और फोन कट गया।
रमेश का नुस्खा काम कर गया।
जय को सिनेमा देखे हुये एक मुद्दत गुज़र गई थी। इच्छा ही नहीं करती थी। पर उस सप्ताह उस ने रमेश क कहने पर एक शो देख ही लिया। रमेश साथ ही ले गया था। कामेडी थी और बहुत सफल कामेडी थी।
अगले सप्ताह जब उस ने फोन किया तो बेटे को उस की कहानी सुनाने लगा।
पर कहानी पूरी नही हो पाई। बीच में उस के कोचिंग वाले मास्टर साहब आ गये।
दो एक रोज़ बाद फोन आया।
- हैलो
- पापा, फिर गुलू का क्या हुआ।
उस की बेटी थी फोन पर
गुलू, कौन गुलू, जय का सहसा याद नहीं आया। पर फिर याद आया कि वह जो कहानी सुना रहा था, उस में नायक गुलू एक बदमाश के कब्ज़े में था जब मास्टर साहब आ गये थे। बेटे ने कहानी बेटी को सुनाई हो गी और अब आगे की बात बतानी हो गी।
कहानी पूरी हो गई।
और फिर यह सिलसिला चल पड़ा। उस ने नहीं पूछा पर बेटे ने अपनी परीक्षा के बारे में बता दिया। उस की बेटी ने तो सहेलियों के नाम भी बता दिये।
- पापा, सुरभी से मेरे चार नम्बर अधिक हैं। रेवा के ज़रूर तीन अधिक हैं पर अगली बार तो मैं ही आगे रहूॅं गी।
और एक दिन फोन आया कि गर्मी की छुट्टियॉं आरम्भ होने वाली हैं। रेल की टिकट भिजवा दें। वह आना चाहते हैं।
रेल की टिकट भिजवा दी तो जया का फोन आया।
- यह क्या मज़ाक बना रखा है। टिकट भिजवाने का क्या मतलब है। कोई नहीं आ रहा है।
- बच्चों की इच्छा थी सो भिजवा दिया। नहीं हो तो फाड़ कर फैंक दो।
- वह तो मैं ने कर ही दिया था पर तुम ने इन्हें बिगाड़ दिया है। बहुत चण्ट हो गये हैं। नया प्रिण्ट कर लिये।
- तो तुम से सम्भल नहीं रहे अब। बड़े हो गये हैं न।
- मैं तो उन के हर वक्त के नखरों से तंग आ गई हूॅं। पता नही क्या हो गया है उन्हें।
- मैं ने तुम्हारे लिये एक कम्पयूटर अलग रख दिया है। नैट तो है ही। पत्रिका का काम नहीं रुके गा।
- गाड़ी ले कर स्टेशन पर आ जाना। पर मैं छुट्टियों के खत्म होने तक ही रुकूॅं गी। उस से एक दिन भी ज़्यादा नही।
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