ललकार
- kewal sethi
- Aug 13, 2020
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ललकार
तुम मुझे जवानी दो, मैं तुम्हें नई रवानी दूॅं गा
भारत के सपूतों को फिर उस ने दिया उलाहना
जब तक न होम करो गे तुम जीवन अपना
जब तलक न हो गी एक बड़ी कुर्बानी
जब तक न छलक पड़े गा उत्साह का पानी
जब तक न ललक हो गी अपने में प्रगति की
जब तक न चाह पैदा हो गी मन में मंजि़ल की
जब तक न राह पलटे गी जीवन की रवानी
तब तक हम यूॅं ही घुलते रहें गे निष्प्राणि
तुम मुझे दो अपना सार, मैं तुम्हें नये मानी दूॅं गा
तुम मुझे जवानी दो, मैं तुम्हें नई रवानी दूॅं गा
पर पहले मुझे तुम एक बात तो समझाते जाओ
एक शुब्हा हो रहा है मुझे, तुम उसे मिटाते जाओ
क्या अभी कथा कहानियों का युग नहीं बीता
क्या अब भी परियों देवों के बिना दिन है रीता
क्या अब भी तुम्हें लोरी दे कर सुलाना हो गा
क्या दे कर फिर लुभावने नारे बहलाना हो गा
बदल दो अब अपना रस्ता, बदल दो अपना वाणी
छोड़ दो यह अपना राग, छोड़ो यह बात पुरानी
नहीं अब वक्त बहलाने का कहानियों से
सब्र नहीं है अब उतना उग्र जवानियों में
तोड़ दो यह सारे बन्धन, छोड़ दो पुराने किस्से
इस इंकलाबी जंग में डूॅंढ लो अपने हिस्से
घिसी पिटी है बात अब यह हम को लगती
अब अपनाओ तुम यह नई रण नीति
तुम मुझे अपनी जवानी दो मैं तुम्हें जि़ंदगानी दूॅं गा
तुम मुझे जवानी दो, मैं तुम्हें नई रवानी दूॅं गा
(समय व स्थान नामालूम, जय प्रकाश के अन्दोलन से प्रभावित हो कर)
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