राहगीर के नाम
- kewal sethi
- Jun 8, 2020
- 2 min read
ए राहगीर बता, क्यों चलता है तू इन सूनी राहों में
इक बोझ लिये सीने पर, ले इक मायूसी निगाहों में
था घर से तो दूर, मगर आसरा था कमाई में
गर अपनों से दूर था, पर खुश था तन्हाई में
थे तुम जैसे और भी, उन से राहो रस्म था
बहलती थी तबियत, बाॅंटता अपना गम था।
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद की मोहलत
तुझे अपनी रोटी से गर्ज़, मुबारक हो उन्हें दौलत
माना तेरी मेहनत पर होते जाते थी वह और अमीर
फिर भी उन से रश्क न था, अपनी अपनी तकदीर
हैं वह आसरे पर तेरे, तुझ को यह था यकीन
तेरे बिना न रह पायें गे, देता दिल को तस्कीन
पर इस वायरस ने आ कर सारा भ्रम तोड़ दिया
जिन को बनाया था तू ने, उन्हों ने छोड़ दिया
उन्हें गर्ज़ थी, था अपने फायदा बढ़ाने का जनून
अपने ऐशो आराम से ही मिलता था उन्हें सकून
जब देखी कमी आते, तुझ को वह भूल गये
पलट गये फौरन वह जो तेरे दम पर फूल गये
बंद हुई कमाई तेरी, बचत भी न कर पाया था
जो कमाया, वह खाया, बाकी घर भिजवाया था
मुफलिसी घेरे थी तुझ को, उस पर हुआ यह वार
रहने की जगह भी तो ठेकेदार को थी दरकार
साथी क्या मदद करते, उन का भी था यही हाल
सब तरफ हाहाकार, सब तरफ भूख का सवाल
क्यों खत्म होते हैं हम पर ही यह सारे सित्म
क्यों हम पर गिरती है यह बिजली बिलआखिर
सरकार ने वायदे किये बहुत, सब थे प्यारे
मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, सब तुझ पर वारे
फंस कर रह गई सब घोषनायें लाल फीताषाही में
पहुॅंच न सका कुछ, रह गया कागज़ की स्याही में
सिवाये इस के चारा क्या था, याद आया अपना घर
चाहे भूखे ही रहें पर रहें गे तो अपनों में हो कर
रेल बंद, बसें बन्द, मिलती न थी सवारी कोई
कब तक यह दौर चले गा, न खबर थी कोई
मायूसी ने सब तरफ से घेर लिया क्या हुआ असर
नामुमकिन को मुमकिन करता हर तरफ से घिरा बशर
सड़के कितनी भी लम्बी हों, नप जाती हैं आखिर
कब तक रोकती तुझ को दुश्वार रस्तों की फिकर
रोका पुलिस ने, डराया, चलाई लाठी भी अक्सर
पर और चारा क्या था सोच न पाया वह नासमझ
सकून देने वाला न कोई, वह अपने फर्ज़ से बंधे हैं
इस बेरहम दुनिया में सब अपनी गर्ज़ के बन्दे हैं
घड़ियाली आंसू बहाने वालों की, न थी कोई कमी
पर बन्दोबस्त कोई करें, इस की सोच न आई कभी
जब समाज ही हो बेहया, क्या करे कोई भी सरकार
चलना तेरी किस्मत थी, उसी पर जीवन का दारोमदार
है दुआ बस यही, मिले तुझे अपने ख्वाबों की ताबीर
इस के सिवा और क्या दे सकता हूॅं मैं, ए राहगीर
घर अपने पहुॅंचो सकुशल, मिलें सब अपने स्वस्थ
जितने गम उडाये हैं तू ने, सब डूब जायें उस दम
शायद फिर पड़े ज़रूरत बेगैरतो को, खोजें गे तेरा हुनर
कहें कक्कू कवि, है अभी सब को अपनी ही फिकर
Comentários