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kewal sethi

राजनीति और अर्थशास्त्र

राजनीति और अर्थशास्त्र


(जनवरी 1986 में पैट्रोल, डीज़ल, गैस की कीमतें एक दम बढ़ा दी गईं। जनता में हो हल्ला होना ही था। शासन को लगा ज़्यादती कर दी। सो एक नाटक खेला गया। कांग्रैस आईकी वर्किंग कमेटी - अध्यक्ष राजीव गांधी - ने शासन - प्रधान मंत्री राजीव गांधी - को अनुशंसा की कि कीमतें घटाई जायें। शासन ने अनुरोध स्वीकार कर कीमतें कम कर दीं।

इस निर्णय पर आधारित यह कविता)


पी एम को राजीव ने किया फोन

बोले राजीव कि आखिर तुम हो कौन

यह क्या तुम अपनी हरकतें दिखलाते हो

न समझते हो दुनिया को, न समझना चाहते हो

मालूम है तुम ने पैट्रोल की कीमत बढ़ा दी है

पहले थी इतनी, और आसमान पर चढ़ा दी है

पी एम ने कहा माफ कीजिये मुझे हज़ूर

लगता है कुछ गल्ती हो गई है ज़रूर

असल में बात यह है मैं अपनी उधेड़बुन में था

और उधर राहुल इक्नामिक सिद्धांत गुन रहा था

पूछा मैं ने अचानक क्या है आज का मज़मून

बोला वह पढ़ रहा हूं डिमाण्ड सप्लाई का कानून

इकनामिक्स की किताब हमें यह बताती है

बढ़ती है जब कीमत तो मांग घट जाती है

मुझे तभी वी पी सिंह का नोट याद आया

जो उस ने उसी सुबह को ही था भिजवाया

डेफीसिट की राशि इधर बजट में बढ़ रही है

उधर पैट्रोल डीज़ल की खपत भी बढ़ रही है

फौरन मुझे ख्याल आया क्यों न कीमत बढ़ा दें

डैफिसिट भी कम हो और खपत भी घटा दें

सो फौरन वी पी सिंह को फोन लगाया

और आर्डर इस बारे में तुरन्त निकलवाया

मुझे तो वी पी ने यह बात कभी नहीं बोली

इस से किसी को तकलीफ होगी थोड़ी

अब आप कहते हो तो फौरन पैगाम करता हूं

कीमतें कम करने का अभी इंतज़ाम करता हूं

इस से बढ़ कर तुम्हें विश्वास दिलाता हूं

अभी हंसराज भारद्वाज को फोन लगाता हूं

यह डिमाण्ड सप्लाई का कानून बिल्कुल वाहियात है

पास कर दिया इसे संसद ने पता नहीं क्या बात है

फौरन ऐसे गल्त कानून को वह बदल डालें

सैशन का न करें इंतज़ार आर्डिनैंस निकालें

नरसिंहराव को भी करता हूं मैं अभी से होशियार

नई शिक्षा नीति में ऐसे कानूनों का होने दें न प्रचार

कमाल की बात है किताबों में इस तरह बताते हैं

होगी तकलीफ इस से जनता को यह छुपाते हैं

मुझे लगता है यह अमरीका में छपी किताब थी

विकासशील देशों को बतलाई आधी बात थी

खैर बिगड़ा क्या है अभी भी बात बन जाती है

कीमतें हों गी कम तो अपनी धाक जम जाती है

वी पी सिंह भी खुश रहे गा कि उस की बात रह गई

कांग्रैसी भी खुश हों गे सारे कि उन की नाक रह गई

रहे आपोज़ीयान वाले तो वह व्यर्थ चिल्लाते हैं

हम कहां उन की बात रेडियो टी वी पर बताते हैं


गरज़ राजीव के कहने पर पी एम ने काम तगड़ा किया है

जला दी है राहुल की किताब जिस ने पैदा झगड़ा किया है

अब आगे कौम को डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं

तजरबे से जो न सीखें, राजीव ऐसे बेशहूरत नहीं


(जनवरी 1986)

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