रिश्वत
शर्मा जी, आप की मदद चाहिये। मुझे ज़रूरी तौर पर लखनउ जाना है। अचानक प्रोग्राम बना है और रिज़र्वेशन का सवाल ही नहीं है।
- अरे, आप क्यों फिकर करते हैं। आखिर हमारी काबलियत और किस दिन काम आये गी। किस गाड़ी से जाना है।
- पुष्पक एक्सप्रैस
- अरे, उस में तो आज किशन मेहता की डयूटी है। समझो, काम हो गया। चलिये, उन से मिल लेते हैं।
श्री मेहता के समक्ष
- यह मेरे परम मित्र हैं और उन्हें आज ही लखनउ जाना है। आप को ही देखना है
- शर्मा जी, आजकल सिचुऐशन बहुत टाईट चल रही है। सभी लोग लखनउ जाना चाहते हैं पता नहीं क्या बात है।
- मेहता जी, आप को ही रास्ता निकालना है। यह ज़रूरी है। चाहे आप अपनी ही सीट दें।
- फिकर न करें। बंदा पूरी कोशिश करे गा।
प्लेटफार्म पर
- शर्मा जी, चार्ट तो मिल गया है। चैक करता हूॅ। लीजिये आप का काम बन गया। आप इन्हें 47 नम्बर की सीट पर बिठा दें। मैं थोड़ी देर में कागज़ बना दूॅं गा।
गाड़ी में
- लीजिये आप का रिज़रवेशन। आराम से जाइ्रये। पर पहले एक रुपया दीजिये।
- रिज़र्वेशन के पैसे तो दे दिये हैं। एक रुपया? वह किस लिये।
- रिशवत
- रिशवत? वह भी एक रुपया।
- अब ऐसा ही है खन्ना साहब।
- पर एक रुपया क्यों, इस से क्या बने गा।
- देखिये, मैं ने इस पोस्ट के लिये चालीस हज़ार की रिशवत दी है। रिशवत देते समय मैं ने यह प्रण किया था कि मैं बिना रिशवत के किसी का काम नहीं करूॅं गा। अब शर्मा जी की बात भी रखनी है पर अपना प्रण भी निभाना है। इस लिये एक रुपया।
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