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kewal sethi

रावण लीला

याद आ गई एक पुरानी सी। जब रामलीला की टिकट नहीं लगती थी। रावण का डायलाग बीच में काट कर ही घोषणा होती थी - भाई अमीर चन्द ने रावण के डायलाग से खुश हो कर उस दो रुपया इनाम की घोषणा की है।

रावण उस गायब अमीरचन्द को नमस्कार कर अपना डायलाग फिर से दौराहता था।


तो पेश है राम लीला शुरू होने से कुछ पूर्व की बात --

रावण लीला

- सुनो आज शाम को राम लीला पर चल रहे हो न

- शायद हॉं, शायद न। पर आज होना क्या है

- आज रावण अंगद का संवाद है।

- पैर जमाने की बात है।

- वह तो होना ही है। इसी में तो आनन्द है। क्या गज़ब के डायलाग थे पिछली बार।

- वह सिंधी बना था अंगद, बोला - सीता डेवनी हे कि नाईं।

- और रावण ने तो अपना डायलाग ठीक से ही बोला

- अंगद फिर बोला - साईं, पैर का डिगा दे तो मानूॅं, चला जाऊॅं, सीता छोड़ के।

- और वह — क्या नाम था - इन्द्रजीत - अपनी जगह से उठ ही नहीं पाया।

- उस का कुर्ता फंस गया था कुर्सी के बीच में, क्या करता।

- और अंगद कैसे हंसा था उस की हालत पर, याद है।

- रामलीला के बाद अच्छी पिटाई हुई अंगद की। पैर पड़ता रहा, माफ करो, वह तो नाटक था।

- क्या वही बना है अंगद इस बार

- अरे नहीं, उस ने तो तौबा कर ली रामलीला से। कहें, लिखे कोई भरे कोई।

- तो फिर

- अब के नया अंगद हो गा

- कौन?

- सानू हलवाई का बेटा

- अरे वह, फूंक मारने से ही उड़ जाये गा। पैर उठाने की बात क्या, उस को ही उठा लिया जाये गा।

- पर सीता तो फिर भी नहीं मिल पाये गीं, राम हार नहीं मानें गे।

- रावण को कहॉं सीता की चाह है। भाभी है उस की। डर से बोल भी नहीं पाता घर में।

- डायलाग तो बोल ले गा न।

- यही देखने तो जाना है, चलो गे।

- कोशिश करता हूॅं।


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