this poem was written just after saddam hussain had lost the kuwait war. despite the universal anger against saddam hussain for being a threat to usa. this poem shows another aspect.
मेरा हीरो
(एम एफ हुसैन ने एक निर्वस्त्र नारी का चित्र बनाया और उसे देवी सरस्वती नाम दिया। इस पर विरोध होना ही था पर तथाकथित बुद्धिजीवी भी बचाव तथा समर्थन के लिये तैयार थे। उसी समय की यह कविता)
मेरा हीरो सद्दाम हुसैन है, एम एफ हुसैन नहीं
मैं नंगेपन पर नहीं उतरता, खेलता नहीं किसी की भावना से
मेरा संघर्ष सच के लिये है, नहीं सरोकार जीत और हार से
विजय की आशा से ही लड़ी जाती हैं लड़ाईयां संसार में
पार करने को नदी किश्ती उतारी जाती है न कि डूबने मंझधार में
पर मुझे मरने से खौफ नहीं, बिना हक के लिये लड़े चैन नहीं
मेरा हीरो सद्दाम हुसैन है, एम एफ हुसैन नहीं
कुछ करते हैं हरकतें ऊल झलूल प्रैस पर छा जाने के लिये
कुछ बनते हैं मसीहा गरीबों का सिर्फ वोट पा जाने के लिये
कुछ जुट जाते हैं नये भवन बनवाने में सिर्फ अपना हिस्सा पाने के लिये
बहुत कम हैं जो करते हैं काम दिल की गहराई में उतर जाने के लिये
किसी का असली रूप देखने के लिये हृदय चाहिये नैन नहीं
मेरा हीरो सद्दाम हुसैन है, एम एफ हुसैन नहीं
मत समझो किसी का हारना कमज़ोरी की है निशानी
इस पलायन में ही शायद छुपी हो सफलता की कहानी
केवल संघर्ष स्थल बदला है और अभी आगे है जीवन
अभी तय करनी हैं कई मंजि़लें, रुकना है मौत का लक्षण
शुरूआत है यह नये दिन की अभी हुई है रैन नहीं
मेरा हीरो सद्दाम हुसैन है, एम एफ हुसैन नहीं
जब किसी को साफ नज़र आने लनगती है अपनी हार
खीज उतारने को अपनी डूंढता है वह नये नये हथियार
ओछे हथकण्डे भी अपनाता है नंगाई पर उतर आता है
वीरता नहीं अपनी कमज़ोरी ही वह इस तरह दिखलाता है
ओछा पन है रिवाज नामर्दी का, दिलेरी का पैगाम नहीं
मेरा हीरो सद्दाम हुसैन है, एम एफ हुसैन नहीं
(31 अक्तूबर 1996 भोपाल से ग्वालियर स्थानान्तर पर जाते समय)
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