मेरा नाम खान है
इरादा तो है की रोज़ कुछ न कुछ लिखें चाहे कितना छोटा ही क्यूँ न हो। लिखने के लिए इतनी बातें हैं। आज की बात ही लें, "मेरा नाम खान है" चल चित्र को अधिकतर अख़बारों ने पांच स्टार दिए हैं। पिक्चर अभी रिलीज़ होना है। पर जिस पिक्चर को शिव सेना ने गलत करार दिया है, उसे इस से कम क्या दें गे। हमें कहानी, एक्टिंग, फोटोग्राफी थोड़े ही देखनी है। उस के लिये तो रिलीज़ होने की प्रतीक्षा करना हो गी।
कोई भी पिक्चर हो जिस में या तो भारत को गलत तरीके ला पेश किया गया हो जैसे की स्लामदाग मिलेनेअर या वाटर या कोई और, उसे तो हमारे क्रिटिक को पसंद करना ही है। इसी तरह से यदि कोई पिक्चर मुस्लिम दृष्टिकोण को बताये तो उस को भी अच्छा बताना आवश्यक है। यही प्रगतिवाद है। पर यह तो रोज़ होता है इस लिए इस के बारे में अधिक लिखना बेकार है।
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