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kewal sethi

मैम्बर साहब की होली

i was commissioner of the division, a pivotal post. it attracted people. then got transferred to board of revenue, in the same city. this new post was in a loop line, what difference it made on the occassion of holi is described in this poem.


मैम्बर साहब की होली


होली के दिन बैठे रहे, मलते रहे हाथ

होली खेलने आया न कोई, बीत गई प्रभात

सोचते कल तक कैसी शान की होली थी

हंसी मज़ाक था भरपूर, टोली पर टोली थी

कहें कक्कू कवि, यह सब वक्त की है बोली

कल तक रंग बिरंगी थी आज सूखी है होली


आयुक्त थे जब हम, खूब था रंगा रंग

मिलने वाले अनेक थे, खेलें जिन के संग

खेलें जिन के संग, अब तो सूना सूना है

बोर्ड की मैम्बरी ने लगाया खूब चूना है

कहें कक्कू कवि, क्यों किया मैम्बर नियुक्त

शान से होली खेलते होते अगर आयुक्त


(होली - 1985)

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