मूर्ति विवाद
राजीव जी बंगलुरु से लौटे तो एक नई योजना ले कर।
आते ही उन्हों ने अध्यक्ष होने के नाते अपने संगठन की बैठक बुलाई। बैठक में बीस बाईस व्यक्ति आ गये जिन में महिलायें भी थीं।
राजीव जी ने अपनी योजना प्रस्तुत की। उन्हों ने कहा, ‘‘मैं ने बंगलृरु में देखा कि लोग टीपू सुल्तान की मूर्ति बनाने तथा इसे सार्वजनिक स्थान पर लगाने की मांग कर रहे हैं। उन का कहना है कि टीपू ण्क बहादुर व्यक्ति थे जिन्हों ने अंग्रेज़ों से लोहा लिया। वह लोहा ज़ंग भरा निकला पर लिया तो। बाकी तो वह भी नहीं कर पाये। इस महान स्वतन्त्रता सैनानी के लिये, जिस ने गुलाम होने से पहले ही आज़ादी के लिये ललकार दी, को स्मरण करना आवश्यक है। इसी से मुझे ख्याल आया कि हमें भी अपने आराध्य व्यक्ति की मूर्ति बनाना चाहिये। और इस के लिये आप सब की सहायता चाहिये’’।
पर मूर्ति किस की है, यह बताना तो आप भूल ही गये - एक व्यकित ने जिज्ञासा की।
- जब मैं ने आराध्य व्यक्ति की बात की तो क्या आप समझ नहीं पाये। खैर नहीं समझे तो न सही। वह महान व्यक्ति हैं जय चन्द।
- जय चन्द? जिन्हों ने पृथ्वी राज का साथ नहीं दिया। और देश गुलाम हो गया।
- गल्त। देश गुलाम नहीं हुआ। सिर्फ दिल्ली का राजा बदल गया।
- पर नया राजा विधर्मी था
- हमारे देश में हम ने कभी धर्म के नाम पर ध्यान नहीं दिया। जो भी धर्म हो, उसे मान्यता दी।
- पर जय चन्द क्यों? उसे आराध्य देव कैसे माना जा सकता है। उन का क्या विशेषता थी।
- किसी जाति की विशेषता क्या होती है। वह हर स्थिति में अपने को मज़बूत करती रहती है। आज हमारे देश में कितने जयचन्द हैं। कभी ध्यान दें तो उसे हर कोने में पायें गे। उन की संख्या बढ़ रही है। दूसरे बड़ा कारण है कि मूर्ति लगायें गे तो मन्दिर भी बनायें गे। पूजा पाठ हो गा तो चढ़ावा भी आये गा। हमारी संस्था अधिक प्रभावी तरीके से काम कर सके गी।
- पर मूर्ति बनाने का पैसा कहॉं से आये गा - एक ने जिज्ञासा की।
- कई जयचन्द भक्त दल बदल कर अपनी सरकार को गिरा कर मन्त्री बने हैं। वह ही असली भक्त हैं, पैसा उन की काली कमाई से ही आये गा। मैं आप को यकीन दिलाता हूॅं कि पैसे की कमी नहीं हो गी।
- पर मूर्ति बने गी कैसे। उन की शकल किसी को मालूम है क्या। यह न हो कि जयचन्द की मूर्ति का कहें और वह राम या बुद्ध से मिलती जुलती शकल की मूर्ति बन जाये। कुछ खासियत होना चाहिये।
- मैं ने सब सोच लिया है। मध्य प्रदेश के एक राज्यपाल थे। उन्हों ने एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिस में बताया गया था कि वह जयचन्द केी चालीसवीं पीढ़ी के हैं। उन्हीं की शकल की मूर्ति बने गी।
- अरे, मूर्ति मूर्ति होती है। किस भगवान की शकल किस ने देखी है। चाहे जैसी बना लें - एक और सदस्य ने अपनी राय व्यक्त की।
- तो यह सर्वसम्मति से निर्णय हो गया मान लिया जाये।
- मुझे इस पर आपत्ति है - एक युवा महिला ने कहा।
- क्यों? आप को क्या आपत्ति है।
- जयचन्द ने अपनी बेटी संजोगिता का विवाह पृथ्वी राज से करने से मना कर दिया जब कि वह उस से विवाह करना चाहती थी। जयचन्द महिला उत्थान के विरुद्ध था। वह दकियानूसी विचारों का था। ऐसे व्यक्ति की मूर्ति बनाना गल्त हो गा।
- आप बिल्कुल सही कहती हैं, महिला उत्थान हमारा पवित्र कर्तव्य है - एक साथ दो तीन व्यक्ति बोले।
वास्तव में वे हमेशा अध्यक्ष के विरोधी दल के थे पर अभी तक मन मारे बैठे थे। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि जितना चन्दा आये गा, उस से आधे में अध्यक्ष परिवार समेत सैर सपाटा करें गे। पर उन का विरोध का मुद्दा नहीं मिला था। मन ही मन उन्हों ने उस महिला का धन्यवाद दिया। एक सशक्त मुद्दा हाथ आ गया।
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इस के बाद तो बैठक में काफी हो हल्ला हुआ। कोई इधर तो कोई। हमारा संवाददाता यह सब नोट करने में असमर्थ रहा अतः रूकावट के लिय खेद है।
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पर अन्त में हुआ क्या?
संगठन के उपाध्यक्ष ने घोषणा कीं
- इस सभा में सभी की राय है कि संजोगिता की मूर्ति स्थापित की जाये। उस में जयचन्द की सुपुत्री होने का ज़िकर किया जाये। इस से दोनों बातें आ जायें गी।
तलियों में सभा की समाप्ति हुई।
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