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kewal sethi

मुस्कराहट

मुस्कराहट


घर से थोड़ी दूर पर ही चौरसिया की पान की दुकान है। शाम को घूमने निकलें तो सप्ताह में तीन एक बार उस का पान हो ही जाता है, कभी किसी मित्र के संग, कभी अपने दम पर भी। चौरसिया के पान की तारीफ तो करना ही हो गी। चौरसिया की दो बाते बताने येग्य हैं - एक तो उस का पान और दूसरे उन की जानकारी। गॉंधी परिवार हो अथवा अमित शाह परिवार, उसे उन के अन्दर की सब बातें पता रहती हैं जैसे वह उसी घर में ही रहता हो। और फिर हर ग्राहक को बताने का ज़िम्मा भी उन्हों ने चौरसिया को ही दे रखा हो।

पर उस दिन वह खामोश था। जो कि असामान्य बात थी। मेरे पूछने पर भी उस ने कुछ कहा नहीं। खामोश ही रहा। क्या जाने क्या बात थी।

इस खामोशी को कारण मुझे एक डायलाग सुनने का अवसर मिला जो आप के साथ बॉंटना चाहता हूूं। मोबाईल का ज़माना है और हर हाथ में एक मोबाईल रहता है। तो इस लड़की के हाथ में भी था। और वह लड़की उस पर बात कर रही थी। पर इस आवाज़ में कि सब साफ सुनाई दे रहा था।

- कहा न, आ रही हूॅं।

- .....

- दस मिनट ही तो लेट हूॅं न।

- .....

- हॉं हॉं पता है कि एक एक मिनट भारी पड़ रहा है। पर अभी पॉंच सात मिनट और इस वज़न को उठाना हो गा।

तभी एक लड़का सामने से आ गया। मोबाईल बन्द।

उस लड़के ने कहा - क्या बात है, इतना क्यों मुस्करा रही हो।

- क्यों? मुस्कराने पर कोई पाबन्दी है क्या।

- पाबन्दी तो मेरे मुस्कराने पर है। जब से तुम ने मेरा दिल तोड़ा है, मुस्कराहट तो गायब ही हो गई है।

- देखो राजेश, जब मैं ने कह दिया तो जो बीत गया वह बीत गया। अब परेशान करना छोड़ दो।

- तो मेरी शकल भी अब अच्छी नहीं लगती। पर तुम्हारी मुस्कराहट कायम रहे, यही मैं चाहता हूॅं। मैं नहीं, कोई और इस कायम रखे, यही चाहता हूॅं।

- ज़्यादा सैण्टीमैण्टल न बनो। मैं ऐसे ही ठीक हूॅ।

- पर कोई तो हैं जिसे एक एक मिनट भारी पड़ रहा है।

- हो गा। तुम से मतलब। अपना रास्ता नापों।

इस के बाद तो लगा कि वह लड़का चला गया। मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं पलट कर देखता कि कौन है।

चौरसिया बोला - क्यों कैसा लगा डायलाग।

मैं क्या कहता।

अब वह इस डायलाग पर दो चार दिन तो बतियायें गा।

मैंने जवाब नहीं दिया। चलने लगा और वह लड़की आगे आगे जा रही थी।

तभी मोबाईल फिर बज उठा। अब मोबाईल का काम ही यही है। और प्रोटोकोल के हिसाब से उस का जवाब देना भी लाज़िमी है।

- हॉं हॉं। आ रही हूॅं।

- .......

- अरे वह राजेश मिल गया था। बक बक कर रहा था।

- .....

- हॉं हॉं, डॉट दिया उसे। बेकार परेशान करता रहता है।

- .....

- नहीं, तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। मैं ही काफी हूॅं उस के लिये।

सड़क का मोड़ आ गया। मैं रुक गया, वह आगेे बढ़ गई।


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