top of page

मुसीबत

kewal sethi

मुसीबत


दिलेरी उस दिन दोपहर की महफिल में नहीं गया। उसे अपने पर तथा अपनी साई्रकल पर तथा सारी मानवता पर क्रोध आ रहा था। आखिर ऐसा क्यों होता है कि उसे कोई समस्या होती है तो दूसरों की चॉंदी बन जाती है।

हुआ यह था कि उस दिन दफतर जाते समय उस की साईकल पंकचर हो गई्र थी। और कमबख्त हुई भी ऐसी जगह थी कि कोई पंकचर बनाने वाला आस पास नहीं था। पहले तो उसे गुस्सा इस बात पर आया कि कार की, स्कूटर की स्टैपनी होती है। पंकचर हो तो टायर बदल लिया और जब चाहा तब ठीक करवा लिया। पर साईकल की स्टैपनी भी नहीं होती। वह थोड़ा बड़बड़ाया पर उसे ख्याल आया कि मोटर साईकल वाले भी तो है। उसे कुछ राहत हुई और वह पंकचर वाले की तलाश में निकल पड़ा। साईकल को घसीटते हुये पहुॅंचा, पंकचर लगवाया और चला।

पर वह कहते हैं न कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती। शायद उसे भी अकेले धूमने में डर लगता है। दिल्ली जैसी असुरक्षित जगह पर इस में कोई अनोखी बात नहीं है। साईकल की स्कूटर से टककर हो जाये तो स्कूटर वाला चाकू निकाल लेता है। एक तो साईकल का नुकसान, दूसरे जान का भी पता नहीं। और कार वाला तो घसीटता हुये ही चल देता है। इसी लिये मुसीबत भी साथी ले कर चलती हे। वह तो किस्मत अच्छी थी कि केवल पंकचर था, टक्कर नहीं थी।

आज दूसरी मुसीबत इस सूरत में आई कि उस दिन संयुक्त सचिव ने कार्यालय में घूमने का फैसला कर लिया। पता नहीं, बीवी से लड़ कर आया था या नाश्ते में नमक ज़्यादा हो गया था। जो भी हो कुर्सी पर टिक कर नहीं बैठ पाया। घूम कर दिल बहल जाये गा, यह सोच कर अवर सचिव को बुलाया और सारे मन्त्रालय का दौरा करने का फरमान जारी किया।

खबर एक दम चारों ओर फैल गई। जो सुबह की सुस्ती दूर करने कण्टीन की तरफ जा रहे थे, तुरन्त पलटे और अपनी सीट पर जा कर जम गये। कुछ ने अपनी सिगरेट बुझाई और फाईल खोल कर बैठ गये। अब किस्मत की मार देखिये, एक कर्ल्रक को इतना समय भी नहीं मिला कि वह फाईल को देख ले। जब संयुक्त सचिव आये तो सीधे उस के डैस्क पर। देखा फाईल उलटी खुली हुई है। खूब डॉंट पड़ी। अवर सचिव का नोटिस देने को कहा गया।

दिलेरी को यह सब तो नहीं झेलना पड़ा क्योंकि वह दफतर में था ही नहीं। पर जैसे ही आया, सैक्षन आफिसर ने एक मैमो थमा दिया। समय पर सीट पर न होने का नोटिस था। उस पर तुर्रा यह कि आने पर तुरनत संयुक्त सचिव के समाने हाज़िरी देनी थी।

डरते डरते वहॉं पहुॅंचे तो स्टैनो ने बताया, साहब सचिव के यहॉं गये हैं, इंतज़ार करें। बैठे रहे। बीस एक मिनट बाद संयुक्त सचिव आये। स्टैनो ने जा कर बताया। दिलेरी बाबू आये हैं। संयुक्त सचिव क्या जानें, दिालेरी कौन है। स्टैनो ने बताया। नोटिस की प्रति भी दिखाई। दिलेरी हाज़िर हुये।

‘‘आ गये साहब। दफतर आने का समय मालूम हे क्या,’’

‘‘ जी सर, वह साईकल पंकचर हो गई थी’’

‘‘और तुम घर वापस चले गये। दफतर का क्या है, कभी भी चले जायें गे’’।

‘‘नहीं सर, पंकचर लगवाया, उस में देर हो गई।’’

‘‘अब लग गया पंकचर। वाउचर लाये हो।’’

‘‘वाउचर, सर। वह तो पंकचर वाला देता नहीं है।’’

‘‘तो फिर साहब जी, आप के पास क्या प्रमाण है कि पंकचर लगवाया था’’।

दिलेरी क्या कहे। कल पंकचर वाले को साथ लेता आऊॅं गा गवाही के लिये। खामोश रहा।

तभी स्टैनो ने रिंग दी कि आप का फोन आया है। शायद घर से है।

साहब सकपकाये। कुछ बोलने लगे। फिर ध्यान आया, दिलेरी खड़ा है।

साहब ने दिलेरी को कहां - आधे दिन की कैज़्युल लीव की अर्ज़ी दे दो औा आगे ध्यान रखना।

और फोन सुनने लगे। कुछ बोले नहीं, सिर्फ सुना।

फिर देखा, दिलेरी दरवाज़े के पास था। बोले - रुको, अर्ज़ी देने की ज़रूरत नहीं। बस ध्यान रखना। अब जाओ।

Recent Posts

See All

unhappy?

i had an unhappy childhood. my father was an ips officer. we had a big bungalow, with lawns on all the sides. there was a swing in one of...

amusing fact

amusing fact i kept a count of money spent on my education. here are the figures for bachelor of arts (1954-56). all amounts are in paise...

सभ्याचार

सभ्याचार दृश्य एक - बेटा, गोपाल पहली बार सुसराल जा रहा है। तुम्हें साथ भेज रही हूॅं। ध्यान रखना। - चाची, गोपाल मुझ से बड़ा है। वह मेरा...

Comments


bottom of page