(एक कविता थोड़ी हट कर)
मध्य प्रदेश की रथ यात्रायें
120 लाख के रथ पर हो कर सवार
निकलें गे दौरे पर मध्य प्रदेश के सरताज
द्वारे द्वारे जा कर वह अलख जगायें गे
वोट की भिक्षा लेने को झोली फैलयें गे
मिल जाये कुर्सी गर तो हो जाये बेड़ा पार
हे माॅंझियों मत डुबाना नैया बीच मंझदार
जो किया है गत चुनाव से, सो बतलायें गे
नहीं हुआ कुछ तो सब्ज़ बाग दिखलायें गे
घूम घम कर क्यों अपनी करनी आप बतायें
किया हो कुछ तो स्वयं ही नज़र आ जाये
प्रगति के आंकड़ों का ढेर लगे गा बेशुमार
कुछ झूटी, कुछ सच्ची उपलब्धियों का बखाान
दूसरी ओर .....
मत समझो कि विरोधी पार्टी को नहीं इस की खबर
तुम ढाक ढाक हम पात पात तय हो गा यह सफर
हम भी अपना रथ निकालें गे उसी राह पर
पीछे पीछे आयें गे हम भी हर नगर हर डगर
जाओं गे तुम जहाॅं हम वहीं पीछे पीछे आयें गे
हुआ असर गर तुम्हारी बात का तो उसे मिटायें गे
पोल खोल यात्रा हम ने रखा है इस का नाम
चुना यह नाम पूरी तरह प्रकट हो इस का काम
देखना है यह कि तुम्हारी यात्रा कितना रंग लाती है
या फिर हमारी बात ही मतदाताओं को भाती है
पर मुझे विचार आया ......
पुराने ज़माने में भी राजाओं की निकलती थी सवारी
पीछे उस के सैनिक, हाथी घोड़े ऊॅंट की फौज सारी
त्यौहार हो यह फिर हो सालगिरह यही उन का दस्तूर था
इसी तरह अपनी शानो शौकत दिखलाना उन्हें मंज़ूर था
इस शाही जलूस के पीछे चलती था एक और जमात
आखिर जानवर है आगे, जाने क्या कर बैठें खुराफात
रास्ता बिल्कुल साफ रहे, यह उन पर था दारोमदार
आगे वाले पथ भष्ट करें पर वे रहते थे होशियार
कहें कक्कू कवि मत मेरी बात का तुम बुरा मनाओं
तुम तो चलते रहो राह अपनी पर, अपना फर्ज़ निभाओं
Комментарии