top of page
  • kewal sethi

मकान की तलाश

मकान की तलाश


रोटी कपड़ा ओर मकान

तीन चीज़ें ही हैं जीवन में महान

पहली दो तो पा लीं पर

भटकता रहा तीसरी के लिये

न जाने कितने दरवाज़े खटखटाये

किस किस से इल्तजा की

क्या क्या पापड़ बेले

पर मकान नहीं मिला


तंग आ कर खुदकशी की ठानी

पर उस में भी हुई यह नादानी

ज़हर खा कर मरने की सोची

ज़हर भी ले आया बाज़ार से

चूहों को मारने के नाम पे

खत भी लिख दिया ताकि

न हो पोस्ट मार्टम भी लाश पर

नजूमी से अच्छा दिन भी पूछ लिया

शुभ काम करने के लिये

यानि कि मरने के लिये

पर अंत समय ध्यान आया

मकान तो है नहीं मरूॅंगा कहाॅं

पार्क में बैठूॅंगा तो

पुलिस पकड़े गी

ज़हर खाने से ही पहले।

सह नहीं सकती वह

मुसीबत पड़े उस के गले।

होटल में जाऊँ गा तो

मुसीबत उन की हो गी

लहज़ा

ज़हर खा कर मरने का इरादा तरक किया


फिर सोचा शादी कर लूॅं

सुसर जो अपनी लड़की ब्याहें गे

उन्हीं के यहाॅं कुछ दिन कट जायें गे।

इश्तहार का जवाब दिया

उन से मिला

छूटते ही पहला सवाल उन्हों ने किया

आप का मकान कहाॅं है

जवाब ज़ाहिर था

और मैं तुरन्त ही उन के घर के बाहर था

लेकिन मैं ने हिम्मत नहीं हारी

एक बड़े मकान की खिड़की तोड़ डाली

अब बड़े घर में हूॅं

खाने पीने को भी मिल जाता है

यार दोस्त भी काफी हैं

तलाश में भटकना नहीं पड़ता

(भोपाल - 18.7.1972

यह कविता एक समाचार पर से लिखी गई थी। अपनी बेटी से शादी से इंकार पर से आशिक ने लड़की के पिता के मकान पर संगबारी की थी।)



1 view

Recent Posts

See All

अर्चित बत्रा मेरी दर्द भरी कहानी चन्द शब्दों में ही सिमट जाती है। सच कहता हूॅं, जब भी याद आती है, बहुत रुलाती है। जन्म मेरा हुआ इक बड़े से नगर मेे, एक सुखी परिवार था तबियत मेरी आश्काना थी, संगीत और कवि

तराना इण्डिया बंगलुरु के सुहाने मौसम में मिल कर संकल्प ठहराया है दूर हटो मोदी भाजपा वालो, हम ने इण्डिया नाम धराया है इण्डिया अब नाम हमारा, तुम्हारा अब यहॉं क्या काम है इण्डिया की गद्दी छोड़ो, इस लिये

विश्व अब एक ग्राम है हमारे एक दोस्त जब आये मिलने आज लगता था कि वह बहुत ही थे नाराज़ हाथ में लहरा रहे थे वह कोई अखबार बोले देखे तुम ने आज राहुल के विचार अमरीका में जा कर खोलता सारा भेद जिस थाली में खाये

bottom of page