भागम भाग
- पिता जी, मैं अपने प्रेमी के साथ भाग रही हूॅं।
- गुड, वकत भी बचे गा और पैसा भी
कुछ रुक कर
- लेकिन जाओं गी कैस
- ममी के साथ
- ममी छोड़ने जा रही है क्या
- नहीं, वह भी भाग रही है
- उसी प्रेमी के साथ
- नहीं, जैसे एक मयान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं, वैसे ही एक प्रेमी की दो
प्रंेमिकायें कैसे हो सकती है।
- तो वह अपने प्रेमी के साथ भाग रही है जो अलग है। पर मेरा सवाल तो रह ही गया। जाओं गी कैसे?
- ममी ने कुछ सोच रखा हो गा।
- ऐसा करो, मेरी कार ले जाओ।
- क्या आप भी साथ आ रहे हैं।
- नहीं। कार में चार ही बैठ सकते हैं।
- फिर बिना कार के आप क्या करों गे
- ओला, उबेर का ज़माना है। काम चल जाये गा।
- औला उबेर तो ठीक है पर घर का काम?
- कुछ दिन होटल में, फिर देखें गे। कुछ इंतज़ाम हो जाये गा।
- आप की प्रेमिका आ जाये गी क्या? कौन है?
- अरे तौबा, एक की फरमाईशों से ही दम खुश्क हो जाता है। दूसरी से राम बचायें।
- आप कहो तो कुछ दिन रुक सकते हैं।
- नहीं, नहीं।शुभ काम में देरी नहीं करते। कौन जाने कल क्या हो।
- क्या हो सकता है। हम तो कमिटिड हैं।
- कुछ भी हो सकता है। तुम्हारा प्रेमी ममी का प्रेमी हो जाये। ममी का प्रेमी तुम्हारा प्रेमी हो जाये। जो काम हो जाये, वही ठीक है। तुरन्त दान महा कल्याण।
- अच्छा तो मैं चलती हूॅं। ममी इंतज़ार कर रही हों गी।
- कहॉं?
- बाहर, और कहॉं, कार में।
- कौन सी कार?
- आप की, और किस की।
- पर चाभी तो तुम्हारे हाथ में है।
- दो चाभी होती हैं कार की।
- ओह!
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