top of page
kewal sethi

बैगुन का भुर्ता

बैगुन का भुर्ता


शर्मा और पत्नि दो माह से जुदा हो गये

एक दूसरे से बिछुड़ कर दूर दूर हो गये

शर्मा जी की हालत तो पूरी तरह टूट गई

खाने के लाले पड गये, चाय भी छूट गई

होटल से मंगाते टिफिन, जो आता सो खाते

कहॉं का पकवान, मुश्किल से रोटी चबाते

होटल का खाना कभी कभार ही रहता ठीक

हर रोज़ खाना पड़े तो हो जाती है तकलीफ

आखिर तंग आ कर सोचा घर पर ही बनायें

पर तरीका आता हो तो ही गृहस्थी जम पाये

कभी कच्ची, कभी जली, किस्मत में थी दाल

वैब साईट सब देख मारी पर कोई बनी न बात

खीर बनाने की सोची एक दिन चावल उबाले

दूध कम पड़ गया तो बाज़ार से ला कर डाले

जब खीर पक गई तो देख कर पतीला घबराये

बीस दिन तक खायें पर खत्म होने पर न आये।

कुछ खाई कुछ फैंकी, और कुछ नहीं था चारा

कसम खाई अब न बनाऊॅं गा कभी दौबारा

बिन पत्नि के शर्मा जी का हो गया बंटाधार

दो माह में ही निकल गई हवा, हुये लाचार

हम न कभी झुकें गे यह कह कर दी विदाई

समझौते की राह उन्हों ने कभी न अपनाई

पर अब पानी सिर से गुज़र गया तो पछताये

किस तरह रूठी पत्नि को वह अब मनायें

दुनिया की मुसीबतों का असल राज़ समझायें

सर पर पड़ते ओले, तब छतरी की याद आये

इक दिन उन के दिमाग में क्या आई बात

बैंगुन के भुरते का क्यों ने लें आज स्वाद

वैब पर से तरीका समझा, पहले बैगुन लो भून

पर भूनने का तरीका क्या, इस पर था नैट मौन

दिमाग लगाया बहुत कैसे यह बै्रगुन भूना जाये

माईक्रोवेव को बदल समझ उसे उबाल लाये

प्याज भी काट लिया, कटे टमाटर भी सजाये

कड़ाही में तेल भी डाला, गैस भी दी जलाये

पर कितना भूनना है, यह वह समझ न पाये

वैब में भूनना लिखा है, इतना ही थे बतलाये

जब कुछ नहीं सूझा तो पत्नि को फोन लगाये

नाराज़ पत्नि ने फोन उठाया, कड़वे बोल सुनाये

क्या मुसीबत पड़ गई जो आज किया है मुझे याद

बेवक्त का फोन क्यों, कुछ तो किया तुम ने बवाल

पति ने कहा ऐसा कुछ भी नहीं, बस इतना बता दो

प्याज़ को कब तलक भूनना है बस यह समझा दो

भुर्ता बनाने का सेाचा है इस कारण मुझे याद आया

तुम्हारे बनाये भुर्ते का स्वाद ही मुझे फोन तक लाया

लगे हाथ यह भी बता दो, कितना डालूॅं गर्म मसाला

सुन कर थी पत्नि हॅंसी, सारा माहौल ही बदल डाला

बोली बुझा दो गैस को और करो थोड़ा सा इंतज़ार

आ कर वहीं कर देती हूॅं मैं तुम्हारा यह भुर्ता तैयार

डरो मत रोटी भी मैं साथ में ही लेती आऊॅं गी

वहीं बैठ कुछ तुम खाना, कुछ मैं भी खाऊॅं गी

कहें कक्कू कवि बस यहीं तक थी मेरी जानकारी

आगे का कुछ पता हो तो बतलाना, हूॅं गा आभारी


12 views

Recent Posts

See All

नेकी कर दरिया में डाल

नेकी कर दरिया में डाल यह कहानी कई स्तर से गुज़र कर आप के पास आ रही है। एक पुराना खेल था कि एक व्यक्ति एक बात किसी के कान में कहता। वह...

हमला

हमला रविवार का दिन था। और दिसम्बर का महीना। दिलेरी आराम से उठे और चाय पी। कुछ सुस्ताये। उस के बाद नहाने का प्रोग्राम बना। पानी पतीले में...

भागम भाग

भागम भाग - पिता जी, मैं अपने प्रेमी के साथ भाग रही हूॅं। - गुड, वकत भी बचे गा और पैसा भी कुछ रुक कर - लेकिन जाओं गी कैस - ममी के साथ -...

Comments


bottom of page