बहकी बहकी बात जीवन क्या है, छूटते ही भटनागर ने पूछा। ------जीवन एक निकृष्ठ प्राणी है जो मैट्रिक में तीन बार फेल हो चुका है। गल्ती से एक बार उसे बाज़ार से अण्डे लाने को कहा धा। बेवकूफ गाजर और मूली उठा लाया। बोला स्फैद लाल दोनों हैं। अब मैं क्या गाजर मूली का आमलेट बनाऊॅं गा। ------ अरे सिन्हा जी, मैं उस जीवन की बात नहीं कर रहा हूॅं जो गल्ती से तुम्हारा भॉंजा है। मैं तो उस जीवन की बात कर रहा हूॅं जो हम जी रहे हैं। - कलर्कों का जीना भी कोई जीना होता है। चक्की में पिसते रहने को तुम जीना कहते हो। क्या तुम्हारी अकल घास चरने गई है। या दफतर में मक्खियॉं कम हो गई हैं और तुम्हें उन को मारने से फुरसत मिल गई है जो तुम यह मरने जीने की बात करने लगे हो। - तुम तो बात को कहीं से कहीं ले जाते हो। अरे तुम्हें पता है कि इस बार हिन्दी पखवाड़े में कविता पाठ होना है। उस का विषय कुछ मूर्खों ने चुना है - जीवन क्या है। इस लिये ही तो तुम से पूछ रहा हूॅं कि जीवन क्या है। - ऐसा बोलो न। तो इस में बड़ी बात क्या है। तुम कह देना - जीवन बस एक फाईल है। इस का न रंग न स्टाईल है। - बस दो लाईन में हो गई कविता। तुम तो कविता को पैदा होते ही मारना चाहते हो। - क्या कहते हो। मोदी जी चिल्ला रहे हैं बेटी बचाओ, बेटी पढाओ। और तुम कविना को मारना चाहते हो। धिक्कार है तुम पर। - फिर बहक गये। कविता लड़की नहीं है, कविता कविता है। गीत। गीता मत समझना, गीत कहा है गीत। - गीत? तो तुम को कितनी लाईन चाहिये। छह, आठ, दस। - हॉं दस से काम चल जाये गा। - तो सुनो जीवन तो बस एक फाईल है। इस का न रंग न स्टाईल है। इस का आदि तो है अन्त नहीं। शब्द ही शब्द हैं, पर अर्थ नहीं। जब सरकार चाहती है सरकना। तो तब फाईल में बढ़ाती है पन्ना। जारी करती है लम्बा सा एहलान। बढ़ जाती है तब फाईल की शान। इसी से फाईल होती जाती मोटी। वही तो सफलता की है कसौटी। कलर्कों का काम है कागज़ सरकाना। सिन्हा व भटनागर का यही कारनामा। - वाह वाह - तो जाओ, सुना डालो इसे हिन्दी दिवस पर। सुनने वाले कलर्क हैं तो पाओ गे दाद। - और अफसर हुये तो। - समझों कि अगली इंक्रीमैण्ट से धो लो गे हाथ। - तुम ने तो एक शेर और रच दिया - अब अपना तो सही स्टाईल हैं मौसी। तो मैं रिश्ता पक्का समझूॅं। - हॉं, अमिताभ के चचा। -
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