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kewal sethi

बसन्त ऋतु आ गई है

बसन्त ऋतु आ गई है


कलैण्डर देख कर मुझे पता चला कि

बसन्त ऋतु आ गई है

यूँ तो मुँह अंधेरे ही उठ कर

पकड़नी पड़ती है कोई लोकल

पत्थरों, लोहे, तारों से गुज़र कर

पहुँच जाता हूँ कारखाने में वक्त पर

जहाँ दिन को भी जला कर बत्ती काम करते हैंं

(यानि अपने पेट के लिये ईधन का इंतज़ाम करते हैं)

और शाम को गहराते हुए अंधेरे में

जब थका थका सा लौट आता हूँ

घरेलू तकाज़ों को किसी तरह

फुसला कर, धमका कर टाल जाता हूँ

यहाँ तक कि हफतावारी नागा आ जाता है

लम्बी फहरिस्त से झूझने में ही दिन निकल जाता है

किसे फुरसत है कि मौसम का पता लगाये

कौन जाने कब बहार आती है कब खजाँ जाये

बारिश का पता चल जाता है क्योंकि

कपड़ा छाते का जो बदलना पड़ता है

सर्दी का भी पता चलता है क्योंकि

पुरानी रज़ाई में पैवंद लगवाना पड़ता है

गर्मी याद दिला जाती है पसीना बहा कर

पर बसन्त का पता चलता है

सिफऱ् कलैण्डर पर निगाह कर

(12.1.79 - रेल गाड़ी में)

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