बरसात
इस साल भी बरसात आई
बरसात
यानि कि बाढ़
हर साल की तरह फिर आई
पर यूॅं लगता है
इस साल कलेजा काढ़ आई
काॅंप उठे गाॅंव गाॅंव
आई आई
कौन
अरे वही
साव लाख मन की जिस की एक ग्राही
काली माई
बरसात
हरियाली, खुशहाली,
नहीं महा सत्यानाशी
चारों ओर मचा है हाहाकार
गुसैल थपेड़े लिये हुए बाढ़
कोदों धान सो गए कफन ओढ़ कर
खोे गया भाग्य हमें छोड़ कर
उपेक्षित
अभावग्रस्त क्षेत्र
प्रतीक्षा में
किसी भागीरथी के
किसी महारथी के
जो कर सके नियन्त्रण इन पर
जाने कब हो गा इस का उद्धार
( भोपाल - अगस्त 1971। पृष्ठ भूमि लिखने की आवश्यकता तो नहीं है।)
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