- kewal sethi
बरसात
बरसात
इस साल भी बरसात आई
बरसात
यानि कि बाढ़
हर साल की तरह फिर आई
पर यूॅं लगता है
इस साल कलेजा काढ़ आई
काॅंप उठे गाॅंव गाॅंव
आई आई
कौन
अरे वही
साव लाख मन की जिस की एक ग्राही
काली माई
बरसात
हरियाली, खुशहाली,
नहीं महा सत्यानाशी
चारों ओर मचा है हाहाकार
गुसैल थपेड़े लिये हुए बाढ़
कोदों धान सो गए कफन ओढ़ कर
खोे गया भाग्य हमें छोड़ कर
उपेक्षित
अभावग्रस्त क्षेत्र
प्रतीक्षा में
किसी भागीरथी के
किसी महारथी के
जो कर सके नियन्त्रण इन पर
जाने कब हो गा इस का उद्धार
( भोपाल - अगस्त 1971। पृष्ठ भूमि लिखने की आवश्यकता तो नहीं है।)