top of page
  • kewal sethi

पूर्ण ब्रह्म

प्रार्थना


ओं पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यत।

ओ पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

ओं वह सब प्रकार से पूर्ण है। यह भी पूर्ण है तथा वह भी पूर्ण है। पूर्ण से ही पूर्ण उत्पन्न हुआ है। पूर्ण से पूर्ण को निकाल लेने पर भी पूर्ण ही शेष रहता है।

यह प्रार्थना ईशावास्योपनिषद के प्रारम्भ में दी गई है। आश्य यह है कि परब्रह्रा सभी स्थानों पर है। वह सब प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्रा का ही रूप है। इस कारण यह भी पूर्ण ही है। पर इस के अलग होने से भी उस की पूर्णता पर कोई अन्तर नहीं आता। वह फिर भी पूर्ण ही रहता है। वह एक नहीं इस प्रकार के कई ब्रह्राण्ड की रचना कर सकता है पर उस की पूर्णता फिर भी अखण्ड ही रहती है।

गणित में एक संख्या होती है इनिफनिटी - असीम - जिस की परिभाषा इस तरह की जाती है कि वह किसी भी अंक से बड़ी संख्या है। इस की विशेषता यह है कि इस का कोई परिमाण नहीं है जिस प्रकार ईश्वर अथवा ब्रह्रा का कोई परिमाण नहीं है। इस संख्या में और भी कई गुण हैं। उदाहरण के तौर पर हम जानते हैं कुल अंकेां की संख्या असीम है। परन्तु सम अंकों की संख्या भी असीम है। और विषम अंकों की भी। अब यदि सभी अंकों में से विषम अंकों को निकाल दें तो केवल सम अंक ही बचें गे। अर्थात असीम में से असीम निकाल दी जाये तो असीम ही शेष रह जाती है। अब यदि जो अंक बचें हैं अर्थात सम अंक उन में से तीन से विभाजित होने वाले अंक निकाल लिये जायें तो भी वही स्थिति रहे गी अर्थात एक बार फिर असीम में से असीम निकाल कर भी असीम ही बचे गी। यही प्रक्रिया कई बार दौहराई जा सकती है।

ऐसे ही तो मंत्र में कहा गया कि पूर्ण में से पूर्ण निकाल दिया जाये तो भी पूर्ण ही शेष रह जाता है। यह भी पूर्ण है और जो बच जाता है वह भी पूर्ण है। ब्रह्रा भी पूर्ण है तथा जीव भी पूर्ण है। और कितने ही जीव अलग हो जायें फिर भी ब्रह्रा पूर्ण ही रहता है। और फिर जब जीव फिर से ब्रह्रा में मिल जायें गे तो भी ब्रह्रा के परिमाण में घटबढ़ नहीं हो गी। जगत की रचना भी उसे से हुई है तथा चक्र पूरा होने पर यह फिर उस में ही विलीन हो जाये गा।

1 view

Recent Posts

See All

बौद्धिक वेश्या राजा राम मोहन राय को शिक्षा तथा समाज सुधारक के रूप में प्रचारित किया गया है। उन के नाम से राष्ट्रीय पुस्तकालय स्थापित किया गया है। परन्तु उन की वास्तविकता क्या थी, यह जानना उचित हो गा।

हम सब एक की सन्तान हैं मौलाना अरशद मदानी ने कहा कि ओम और अल्लाह एक ही है। इस बात के विरोध में जैन साधु और दूसरे सदन से उठकर चले गए। हिंदू संतों ने इस का विरोध किया है। मेरे विचार में विरोध की गुंजाइश

ईश्वर चंद विद्यासागर उन के नाम से तो बहुत समय से परिचित थे। किन्तु उन की विशेष उपलब्धि विधवा विवाह के बारे में ज्ञात थी। इस विषय पर उन्हों ने इतना प्रचार किया कि अन्ततः इस के लिये कानून बनानया गया। इस

bottom of page