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kewal sethi

प्रसन्नता और आर्थिक प्रगति

प्रसन्नता और आर्थिक प्रगति


देखा जाये तो यह दोनों शब्द एक दूसरे के विरोधी है। पूरी आर्थिक प्रगति का आधार ही हमारी उदासी और दुख हैं। यदि हम जो हमारे पास हैं, उसी से प्रसन्न हैं तो हमें और कुछ क्यों चाहिये हो गा। हम फेयर और लवली क्रीम क्यों खरीदते हैं। इस कारण कि हम अपनी वर्तमान त्वचा से प्रसन्न नहीं हैं। हमें लगता है कि हम समय से पूर्व ही बूढ़े लगने जा रहे हैं। टैलीवीज़न हमें सदैव याद दिलाता रहता है कि हम किस प्रकार इस होनी इस अनहोनी को टाल सकते हैं।


हम किसी राजनीतिक दल के लिये मतदान करते हैं। क्यों? अलग अलग दल हमें इस बात का भरोसा दिलाते हैं कि हम प्रसन्न हो सकते हैं यदि वे सत्ता में हों पर वर्तमान सरकार में हम प्रसन्न नहीं रह सकते क्येांकि पैट्रोल की कीमत बढ़ रही है। वह बताते हैं कि हम प्रसन्न नहीं हैं कयोंकि वायदे के मुतरबिक हमारे खाते में पंद्रह लाख रुपये नहीं आ सके। वह यह नहीं कहते कि वे यह राशि ला दें गे क्योंकि उन का इरादा केवल यह बताने का है कि आप प्रसन्न नहीं है और हो भी नहीं सकते जब तक वर्तमान दल सत्ता में रहे गा। वे पाकिस्तान से डराते हैं, चीन से डराते हैं। साम्प्रदायिकता से डराते हैं। आप को अपने जीवन का आनन्द नहीं लेने देते।


हमें बीमा कम्पनियों के एजैंट डराते हैं कि हमारे बाद हमारी बीवी का क्या हो गा, बच्चों का क्या हो गा। वह कैसे जियें गे। वह यह नहीं कहते कि हम जल्द ही मरने वाले हैं पर उन की बातों का मतलब यही होता है। हम प्लास्टिक सर्जरी कराते हैं क्योंकि हमें बताया जाता है कि हम कितने भद्दे दिख रहे हैं। हम टी वी सीरियल देखते हैं क्योंकि हमें डर है कि कुछ छूट न जाये। यदि हम एक एपीसोड न देखें तो कहीं नायिका और नायक के साथ कोई दुर्घाटना न हो जाये। सब काम छोड़ कर उसे देखना पड़ता है। इसी प्रकार हम नया स्मार्ट फोन खरीदते ताकि कहीं पीछे न छूट जायें यद्यपि हमें अच्छी तरह से मालूम है कि नये माडल में कोई ऐसी बात नहीं है जो वर्तमान माडल में नहीं है। कैमरा 7.5 के स्थान पर 8.0 हो गया पर हम ने पिछली बार छह महीने पहले इस का उपयोग किया था और वह फोटो अभी भी हमारे कमरे कीं शोभा बढ़ा रही है और किसी ने इसे खराब नहीं कहा। पर हम नया फोन खरीदते हैं कि कहीं पीछे न रह जायें। अन्त में बात वहीं आ जाती है। उस की साड़ी मेरी साड़ी से स्फैद क्यों? उस की कार मेरी कार से बड़ी क्यों।


यह पीछे छूट जाने का डर हमें हर समय सताता रहता है। इस कारण हम प्रसन्न नहीं रह पाते। नई वस्तुओं के पीछे भागते रहते हैं। उस के लिये और अधिक कमाने के चक्कर में रहते हैं। उस में स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़े तो उस के लिये जिम जाते हैं और फिर उस के बारे में सब को बताते हैं जैसे यह भी एक उपलब्धि हो।


इस वातावरण में कोई व्यक्ति शाॅंत रहे तो वह अर्थ व्यवस्था के लिये बुरी खबर है। किसी तड़क भड़क वाली वस्तु की कामना न करे, किसी नये माडल की तलाश में न रहे तो वह अर्थव्यवस्था के लिये संकट की स्थिति है। यदि हर व्यक्ति यह निर्णय कर ले कि वह वही वस्तु खरीदे गा जिस की उसे आवश्यकता है, उतनी ही खरीदे गा जितनी उसे आवश्यकता है तो निर्माण करने वाली कम्पनियाॅं कहाॅं जायें गी।


यदि हम ग्रास डोमैस्टिक प्रोडक्ट की परवाह न कर केवल अपनी ग्रास डोमैस्टिक हैपीनैस की बात करें तो क्या हो गा। केवल मानव मूल्यों को धारित कर अपना अस्त व्यस्त जीवन जियें तो स्पष्टतः ही यह अर्थ व्यवस्था के लिये अच्छा समाचार नहीं हो गा। इस के विरुद्ध लामबन्दी हो गी। हर तरह से इसे निखिद बताया जाये गा। नाम व्यक्ति का लिया जाये गा पर सारा ध्यान उत्पादन पर हो गा जिसे कम नहीं होना चाहिये। वही प्रगति के नाम से जाना जाये गा। आप की प्रसन्नता कभी लक्ष्य नहीं रहती भले ही उस का ज़िकर बार बार किया जाये।


आशा है कि आप प्रसन्न रहना चाहें गे।



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