top of page

पाप और हमारे शत्रु

  • kewal sethi
  • Jul 12, 2020
  • 2 min read

पाप और हमारे शत्रु

मनुष्य के पाँच शत्रु माने गये हें। यह हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। इस के अतिरिक्त मद तथा मत्सर से भी मनुष्य को बचने के लिये कहा गया है। इन को मिला कर कुल सात शत्रु हो जाते हैं। इस के साथ ही सात पाप से बचने के लिय भी कहा गया है। ऋषि तृप्त आप्तया ने इन सात पाप के बारे में बताया है। वह हें - पानम (मदिरा पान), अक्षा: (जुआ खेलना), सित्रय: (पर स्त्रीगमन), मुगया, दण्ड: (किसी को सताना), पारुषयम (अत्याचार) तथा अन्यदूषनम (दूसरे के दोष देखना)। निरुक्त में यह सात पाप इस प्रकार बताये गये हैं - ज्ञतुयम (चोरी), तल्परोहणम (पर स्त्री गमन), ब्रह्महत्या, भ्रूण हत्या, सुरापानम, दुष्कृत कर्मणाम पुन: पुन: सेवा, पातके अनृतोधम (अपने पाप को छुपाना)। कहा गया है कि इन में से एक ही पाप जीवन को नष्ट करने के लिये काफी है। सातों ही हों तो कहना ही क्या है।

ऋगवेद में इन्द्र के प्रति प्रार्थना है जिस में सात दोषों के धारकों को दण्ड देने को कहा गया है। प्रार्थना इस प्रकार है। ''हे इन्द्र, आप उसे नष्ट कर दें जो चिडि़या की तरह कामरत रहता है। उसे नष्ट कर दें जो भेडि़ये की तरह क्रोधी है। उसे नष्ट कर दें जो गिद्ध की ताह लालची है। उसे नष्ट कर दें जो उल्लू की तरह मोहपाश में बंधा है। उसे नष्ट कर दें जो बाज़ की तरह अहंकार से भरा है। उसे नष्ट कर दें जो कुत्ते की तरह घृणा से भरा है। उसे नष्ट कर दें जो दैत्यों की तरह जड़वत हैं। यह तो स्पष्ट नहीं है कि क्या इन पक्षियों तथा जानवरों में वह दुर्गुण हें जो प्रार्थना में बताये गये हैं पर यह स्पष्ट है कि कामरत, क्रोधी, लालची, मोहबद्ध, अहंकारी, घृणायुक्त तथा जड़वत मनुष्य के सात समाप्त करने योग्य दुर्गुण माने गये हें।

विनोबा जी ने अपनी पुस्तक कुरआन सार में बताया है कि कुरआन के अनुसार अभक्त के लक्षण इस प्रकार हैं। - घमण्डी, अविश्वासी, भ्रान्तचित्त, वासनारत, खयानत करने वाला, प्रभुस्मरण रहित, झूटा।

वर्तमान युग में महात्मा गाँधी ने भी सात पापों के विरुद्ध सचेत किया है। यह हैं -

1. सिद्धाँत रहित राजनीति

2. श्रम रहित सम्पत्ति

3. ईमान रहित आनन्द

4. चरित्र रहित विद्या

5. नैतिकता रहित व्यापार

6. मानवता रहित विज्ञान

7. त्याग रहित पूजाप्रार्थना


सात का अंक क्यों महत्वपूर्ण है यह कहना कठिन है। शायद इस का ग्रहों से सम्बन्ध हो। आखिर सप्ताह में वार भी सात ही होते हैं। महासागर भी सात ही माने गये। महाद्वीप भी सात हैं। सरगम के सात सुर तो संसार का प्राण हैं। पर हम ने सात दोषों की बात अधिक की है।

Recent Posts

See All
the grand religious debate

the grand religious debate held under the orders of mongke khan, grandson of chengis khan who now occupied the seat of great khan. The...

 
 
 
why??

why?? indus valley civilisation is recognized as the oldest civilisation in the world. older than that of mesopotamia and egypt. yet they...

 
 
 

Comments


bottom of page