registration of a newspaper involves lot of leg work. this was my experience which i am sharing in this poem.
पंजीयन समाचार पत्र का
केवल कृष्ण सेठी
15.09.02
अक्सर सोचते थे कि हम भी निकालें इक अखबार
क्या नाम रखें गे यह भी मन में कर चुके थे विचार
‘प्रतिध्वनि’ रखें गे या फिर ‘स्वतन्त्र विचार’
आया वह दिन भी जब करने चले सपना साकार
भर कर एक घोषणापत्र ए डी एम को दिया
जा कर स्वयं आर एन आई के यहॉं जमा किया
जमा कर दिया दफतर में और करने लगे इंतज़ार
दफतर जा कर पूछ आये एक दो बार
दो तीन माह बाद कर्लक ने खोला राज़
सारे नाम पहले ही हो चुके हें अलाट
लाये जा कर ए डी एम से फिर नया फार्म
सोचने लगे नये सिरे से क्या रखें नाम
दोस्तों ने नाम सुझाये दिया फार्म में उन्हें भर
फिर भी हम को सताता रहा यह डर
कहीं इस बार भी छूट न जाये अपनी गाड़ी
तीन महीने फिर ठहर जाये गी स्कीम हमारी
सोचा मुझे चाहिये नाम रखना कुछ ऐसा
एक अनूठा किसी ने सोचा न हो जैसा
आखिर क्या है अखबार निकालने का मकसद
हमारी कोई सुनता नहीं यह बात सताती अक्सर
भेजते हैं लेख लिख कर पर कहॉं छप पाते हैं
हमारे ख्यालों से अखबार वाले शायद घबराते थे
फिर भी सुनाने का सब को है हमारा प्रोग्राम
मेरी भी सुनो सुझा दिया अखबार का नाम
फिर से पर्चे पर ए डी एम के दस्खत ले लिये
और दिल्ली आर एन आई के दफतर में दिये
एकाध बार पूछ आये आवेदन पत्र का अंजाम
पर फाईल अभी बढ़ी नहीं यही था पैगाम
इधर कुछ दिन दिल्ली जाने का सबब नहीं आया
इक दिन स्वयं ही वहॉं से पत्र यह आया
पहले के नाम पहले ही हो गये हें दर्ज
पर ‘मेरी भी सुनो’ रख लो तो नहीं हर्ज
सोचा यही नाम था अपने नसीब में शायद
अगली कवायद के लिये करने लगे कवायद
फार्म बी भरना था, उसे ए डी एम को था देना
एक बार फिर दिल्ली दफतर में था उसे भेजना
साथ एक शपथपत्र भी दो यह आदेश था
पहला अंक भी संलग्न करो यह संदेश था
सब सामग्री को इकट्ठी कर हम दे आये
लगे देखने राह कब पंजीयन नम्बर आये
एकाध बार जा कर कर्लक से पूछ आये हाल
बस थोड़ी कसर है उत्तर मिलता हर बार
आप को पंजीयन नम्बर मिलने ही वाला है
चाबी मिल गई है बस खोलना ताला है
इक दिन कहा आप कल आ जाईये
अपना प्रमाणपत्र स्वयं ही ले जाईये
अगले दिल पहुॅंचे तो कर्लक नदारद था
साथियों ने बताया कागज़ तो तैयार था
सिर्फ अफसर के दस्खत ही लेना थे बाकी
हम निकले दफतर से तो मन में थी उदासी
हमारे साथ एक लड़का सा और आ गया
उस ने सरगोशी में हम से यह पूछा
सौदा कितने में तय हुआ था आपका
पहले ऐसे सवाल से पड़ा था न साबका
घबराये, बोले, पैसे की तो नहीं हुई थी बात
वैसे ही कहा था, हो जाये गा आपका काम
लड़का तो चला गया पर छोड़ गया विचार
क्या इसी लिये कर्लक था वहॉं से फरार
कैसे करे उस से जा कर रिशवत की बात
अपने सामने तो कभी आये नहीं ऐसे हालात
एक साथी अफसर को बतलाया हाल अपना
निवेदन किया आप ही निकालें कोई रास्ता
आई एण्ड बी में आप का बैचमेट मिल जाये
तो अपना काम चुटकियों में बन जाये
उस ने कहा यह तो कोई बड़ी बात नहीं है
बैचमेट नहीं पर अपना परिचित तो वहीं है
उस को तुरन्त उन्हों ने फोन मिलाया
पर किस्मत हमारी उसे सीट पर नहीं पाया
हम लौट आये भोपाल खाली हाथ
कह कर उन को फिर कभी कर लेना बात
याद कराने का उन्हें किया हम ने प्रयास
पर हमारे मित्र ने हमें डाली नहीं घास
बैठक में व्यस्त थीं या दौरे पर थीं सुनने को मिला
पी ए ने नम्बर लिखा पर उन का फोन नहीं मिला
एक दोस्त से हम ने ज़ाहिर की अपनी दास्तान
उस ने कहा हल तो है बहुत ही आसान
तुम भी अपने ज़माने में बड़े अफसर थे
लाभ उठाने के तुम्हारे कई अवसर थे
तब नहीं उठाया तो अब तो ऐसा करो
पुराने पद के नाम का इस्तेमाल करो
जंच गई बात, अगली बार जब हम दिल्ली गये
सीधे आई एण्ड बी के संयुक्त सचिव से मिले
बात सुनी उन्हों ने हमारी घ्यान दे कर
लगाया उन्हों ने फोन रजिस्ट्रार के दफतर
पर था अभी हमारी किस्मत में इंतज़ार
पंजीयक महोदय कहीं और थे विराजमान
जे एस ने कहा कोई बात नहीं मैं पूछ लूॅं गा
आप मुझे फोन करें मैं आप को खबर दूॅंगा
जब फोन हम ने अगले रोज़ लगाया
उन्हों ने हम को हाल यह बतलाया
आप से बी फार्म गल्त गया है भरा
इसी लिये तो सारा मामला है अटका
पत्र भेज दिया है आप को भोपाल
फिर भी मैं भिजवा दूॅं गा फैक्स तत्काल
लौट कर आये तो दूसरे दिन फैक्स आया
और सप्ताह भर बाद मूल पत्र भी पाया
फिर से ए डी एम का चक्कर लगाया
नया बी फार्म भर कर दिल्ली भिजवाया
सोचते रहे मौका मिले तो दिल्ली जायें
हाल चाल अपनी फाईल का जान जायें
पर हुआ नहीं कुछ महीनों तक ऐसा इत्तफाक
फाईल का क्या हुआ कुछ पाया नहीं पैगाम
आखिर जब दिल्ली हम जा पाये
फौरन पता अपने प्रकरण का लगाये
बतलाया दो माह पहले हो गया आपका काम
फाईल भी दिखा दी बता दिया क्रमॉंक
प्रमाणपत्र भिजवा दिया है भोपाल, वहीं जाईये
डाक घर से इस के बारे में पता लगाईये
आकर पता लगाये तो सही में आया था पत्र
पर लौटा दिया उन्हों ने देख कर बन्द दफतर
दिल्ली जाने का अब नहीं था कोई सिलसिला
लाचार हो कर की हम ने एक दोस्त से इल्तजा
किसी बाबू को आर एन आई के दफतर भिजवा दें
हमारे खोए हुए प्रमाणपत्र का पता लगवा दें
पुरानी कहावत में है जीवन का फलसफा
किसी को समय से पहले कुछ नहीं मिलता
पंजीयक महोदय हमारे मित्र के निकले बैच मेट
गाड़ी हमारी चल पड़ी चाहे थी वह लेट
पंजीयक ने सलाह दी जो गया है खो
उस को पाने की चिन्ता अब छोड़ो
पिछला पत्र नहीं मिला दो ऐसा शपथपत्र
बना दें गे तुम को हम एक नया प्रमाणपत्र
सो नोटरी के पास जा कर शपथपत्र बनवाया
उसी दिन दिल्ली जाना पड़ा ऐसा संयोग आया
जा कर मिले पंजीयक से चाय का कप पाया
प्रमाणपत्र भी मिल गया और मन हरषाया
पंजीयन नम्बर को अपने पत्र पर छपवाया
यूॅं हम ने अखबार का पंजीयन कराया
पर समाप्त नहीं हुई अपनी यह कहानी
कुछ और भी बात आप को है सुनानी
इस पंजीयन के पीछे थी यह जस्तजू
कम टिकट लगानी पड़े यह थी आरज़ू
उस के लिये पंजीयन लेना था ज़रूरी
तत्पश्चात ही डाक घर से मिलना था मंज़ूरी
सो हम ने अब डाकघर से फार्म मंगवाया
ज़रूरी है फिर से ए डी एम की मोहर यह पाया
फिर शरू हुआ दस्खत पाने का अभियान
कभी राष्ट्रपति आये कभी मोर्चा निकालें किसान
ए डी एम को तो पाना मुहाल था
खुद उन का काम के मारे बुरा हाल था
ए डी एम भी थे वह, साथ में थे निगम आयुक्त
उन का बदल डूॅंढने में सरकार कर रही थी मशक्कत
पर उसे कोई भी तो अफसर जंच नहीं पाता था
और इधर हमारा समय निकलता जाता था
एक दिन हम फार्म ही उनके दफतर छोड़ आये
रीडर ने ही उन के दस्खत उस पर करवाये
ले आये फिर अगले दिन उसे जा कर
दे आये जा कर महाडाकपाल के दफतर
जो जो मॉंगा था वह वह अभिलेख दे दिया
पर चार दिन बाद उन्हों ने खुलासा किया
एक कागज़ अभी भी रह गया है बाकी
बी फार्म की भी तो दे दें कोई कापी
वह भी जमा करा दिया और देखने लगे राह
एक दोस्त ने इस में बड़ा साथ दिया
वह भी हर चक्कर में थे हमारे साथ
दर असल उन्हीं के बस की थी यह बात
उन का दफतर में पहले की जान पहचान थी
क्यों न हो कभी उन की बेटी वहीं तैनात थी
अधिक दिन देखनी नहीं पड़ी हम को राह
वह दिन भी आया जब हम ने पंजीयनपत्र पाया
वैतरनी पार कर ली जैसे सब कुछ पा लिया
लगा जैसे हमें धरती पर स्वर्ग का आनन्द मिला
इस तरह तय हुआ हमारा यह सफर
लग गये इस में पूरे आठ माह पर
इंतज़ार करने वाले भी पाते हैं सब्र का फल
कहें कक्कू कवि यह कविता समझाती हर पल
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