पुकार
कौन है जो आज सुने इस दुखी दिल की पुकार
तड़पता है यह देख कर हल्की हल्की सी फुहार
समय हुआ मिले उन से
तब से बस यह सुर लागी
कब हों गे दर्शन फिर उन के
कब हों गे हम इस के भागी
तुम दूर बहुत दूर जाने कैसे बैठी हो आज
सोच सोच मन मेरा विकल हो उ्रठता आज
तुम सुन्दर हो सुषमा हो फिर क्यों यह बैरी समाज
हम को रोके उस पथ से जिस पर चलते हम अविराम
कभी किसी से कुछ भी रहे नहीं हैं मांग
मांगा है केवल अपने जीने का अधिकार
फिर भी इस बेदर्द दुनिया में
हम पर बन्द हो गये सारे द्वार
कैसे कहूं तुम से कि मुझ को भूल जाओ तुम
कैसे कहूं इस अनंत संसार में हो जाओ गुम
खुद मेरा मुझ पर बस चले तो ही हे मीत
दे पाऊं गा तुम को कुछ करने की सीख
कभी रात में जब देखूं सितारे टिम टिम करते
कभी दिन में जब देखूं सुन्दर फूल खिलते
याद आता है मुझ को अपना खोया प्यार
शायद प्रतीक्षा में बैठी होगी अब भी अपने द्वार
कैसे इस को ईश्वरेच्छा कह कर मैं टाल जाऊं
कैसे इसे विधि की विडम्बना कह कर तुम्हें छल जाऊं
इतना निम्न होता यदि हमारे प्यार का यह बंधन
क्यों होता इस प्रकार से प्रथम हमारा मिलन
होशंगाबाद अगस्त 1964
(अन्तर्जातिय प्रेम पर)
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