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पुकार

  • kewal sethi
  • Jul 26, 2020
  • 1 min read

पुकार


कौन है जो आज सुने इस दुखी दिल की पुकार

तड़पता है यह देख कर हल्की हल्की सी फुहार

समय हुआ मिले उन से

तब से बस यह सुर लागी

कब हों गे दर्शन फिर उन के

कब हों गे हम इस के भागी

तुम दूर बहुत दूर जाने कैसे बैठी हो आज

सोच सोच मन मेरा विकल हो उ्रठता आज

तुम सुन्दर हो सुषमा हो फिर क्यों यह बैरी समाज

हम को रोके उस पथ से जिस पर चलते हम अविराम

कभी किसी से कुछ भी रहे नहीं हैं मांग

मांगा है केवल अपने जीने का अधिकार

फिर भी इस बेदर्द दुनिया में

हम पर बन्द हो गये सारे द्वार

कैसे कहूं तुम से कि मुझ को भूल जाओ तुम

कैसे कहूं इस अनंत संसार में हो जाओ गुम

खुद मेरा मुझ पर बस चले तो ही हे मीत

दे पाऊं गा तुम को कुछ करने की सीख

कभी रात में जब देखूं सितारे टिम टिम करते

कभी दिन में जब देखूं सुन्दर फूल खिलते

याद आता है मुझ को अपना खोया प्यार

शायद प्रतीक्षा में बैठी होगी अब भी अपने द्वार

कैसे इस को ईश्वरेच्छा कह कर मैं टाल जाऊं

कैसे इसे विधि की विडम्बना कह कर तुम्हें छल जाऊं

इतना निम्न होता यदि हमारे प्यार का यह बंधन

क्यों होता इस प्रकार से प्रथम हमारा मिलन


होशंगाबाद अगस्त 1964

(अन्तर्जातिय प्रेम पर)

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