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प्रेम विवाह

kewal sethi

प्रेम विवाह


मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था। उसे बताया कि यह जीवन सब संयोग की बात है।

जब मैं कालेज में पढ़ता था तो मुझे एक लड़की से प्रेम हो गया।

उस ने कहा कि इस में क्या विषेष बात है। मैं कालेज में था तो तीन लड़कियों से प्रेम करने लगा था।

- एक साथ?

- नहीं, बारी बारी से। एक मना कर देती थी तो दूसरी डूॅंढ लेता था।

- पर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। उस ने मना नहीं किया। वह भी मुझ से प्रेम करने लगी।

- बढ़िया। पर इस में संयोग कहॉं से आ गया। लड़के लड़की का प्रेम तो होता ही है। पसंद आने की बात है। पर चलो आगे, क्या हुआ।

- हम दोनों ने एक साथ जीवन बिताने का वायदा किया। पर एक बात पर हमेशा झगड़ा होता था।

- चलिये प्रेम समाप्त। झगड़ा शुरू। शादी से पहले ही।

- सुनो तो! वैसा झगड़ा नहीं था जैसा तुम सोच रहे हो। हम सोचते थे एक प्यारा सा घर हो गा। फिर परिवार बढ़े गा। रौनक हो गी। अपना प्यारा सा बेटा हो गा। उसे मम्मी कहे गा तो दिल बाग बाग हो जाये गा।

- झगड़ा किस बात का? क्या उसे मम्मी षब्द से एतराज़ था। मामा कहलवाना चाहती थी क्या या कुछ और।

- नहीं, मम्मी शब्द से एतराज़ नहीं था पर वह कहती थी कि बेटी हो गी।

- डाक्टर से चैक करवा लेते।

- तुम बहुत जल्दी में हो क्या। अभी शादी तो हुई नहीं। अभी तो सपने थे।

- ठीक है अब मैं बिल्कुल नहीं बोलूॅं गा। तुम बात पूरी करो।

- हुआ यह कि उस के परिवार वाले राज़ी नहीं हुये। उन्हों ने उस की शादी कहीं और कर दी।

- और तुम्हारा दिल टूट गया। आत्म हत्या करने वाले थे पर कोई संयोग से मिल गया।

- नहीं, आत्म हत्या तो नालायक लोग करते हैं। मैं ने तो शादी कर ली।

- बात एक ही है। बीवी संयोग से ऐसी मिली कि आत्म हत्या बेहतर विकल्प लगने लगा।

- फिर गल्ती कर गये। हम आदर्श युग्ल थे। समय पा कर हमारा बेटा भी हुआ, बेटी भी। और दोनों लायक निकले।

- मैं संयोग की प्रतीक्षा कर रहा हूॅं। कहानी ज़रा लम्बी होती जा रही है।

- आ रहा हूॅं मुद्दे पर। बेटा कालेज में था तो उस का एक लड़की से प्रेम हो गया।

- जैसा बाप, वैसा बेटा। और वह लड़की भी उस से प्रेम करने लगी।

- अब बोले सही बात। दोनों ने विवाह करने की सोची।

- संयोग?

- मैं ने सेाचा कि अपना प्रेम विवाह नहीं हो पाया तो न सही। बेटे का तो होना चाहिये। मैं ने फौरन हॉॅं कर दी।

- और यह संयोग रहा कि लड़की के मॉं बाप ने मना कर दिया। इतिहास अपने को दौहराने लगा।

- यार, तुम बहुत जल्दी में हो। पहले पूरी बात तो सुनो।

- बात का सिरा हो तो सुनो ना। पर अब यहॉं तक सुन लिया है तो बाकी भी सुना दो।

- बेटे से उस लड़की से मिलाने को कहा ताकि उस के परिवार के बारे में कुछ जान तो सकूॅं।

- गुड

- अब आये गी संयोग की बात।

- देर आयद, दुरुस्त आयद

- उस लड़की की मॉं थी मेरी पुरानी प्रेमिका।

- सर्कल पूरा हो गया। बदला लिया क्या?

- अरे नहीं, उन को आपत्ति नहीं थी। पर मेरा दिल खुश हो गया। अपना सपना पूरा हो गया।

- कैसे?

- ध्यान दो, मैं ने कहा था कि अरमान था कि मेरा बेटा उस को मम्मी कहे। अब शादी हो जाये गी तो मेरा बेटा उसे मम्मी ही तो कहे गा।

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