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परिक्षेत्रीय सम्मेलन

परिक्षेत्रीय सम्मेलन

10 अगस्त 2024

विषय - विकेन्द्रीकृत प्रशासन

स्थान - सम्मेलन कक्ष,

मध्य प्रदेश प्रशासन अकादमी


मुख्यालय, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान तथा प्रशासन एवं प्रबंधन अकादमी मध्य प्रदेश के सौजन्य से मध्य प्रदेश शाखा द्वारा परिक्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन 10 अगस्त 2024 को किया गया। अपनी तरह का संस्थान द्वारा अयाोजित यह पहला आयोजन था जिस में चार राज्यों ने भाग लिया। मध्य प्रदेश के अतिरिक्त उŸार प्रदेश, राजस्थान एवं छŸाीसगढ़ राज्यों के प्रतिनिधिगण ने इस में भाग लिया। मध्य प्रदेश प्रशासन एवं प्रबंधन अकादमी में प्रशिक्षणरत अधिकारी भी इस में शामिल रहे। राज्य शासन ने कुछ ज़िलों के उप ज़िलाध्यक्षों को भी सम्मेलन में भाग लेने के लिये नामित किया। मध्य प्रदेश शाखा के सदस्य तथा अन्य आमंत्रित महानुभाव भी उपस्थित रहे।

उŸार प्रदेश तथा छŸाीसगढ़ क्षेत्रीय शाखा के अध्यक्ष श्री रमनी एवं श्री सुयोग्य मिश्र के अतिरिक्त राजस्थान शाखा की प्रतिनिधि सुश्री ममता भाटिया, छŸाीसगढ़ शाखा की उपाध्यक्ष श्रीमती इन्दिरा मिश्र एवं सचिव श्री अनुप श्रीवास्तव के साथ साथ जबलपुर शाखा के सचिव श्री व्ही के दूबे, आगरा शाखा के सचिव श्री वी पी त्रिपाठी, कानपुर के डा. गिरीजेष लाल श्रीवास्तव, तथा इंदौर स्थानीय शाखा के श्री मनोज दूबे ने भी सम्मेलन की कार्रवाई भी भाग लिया। इस सम्मेलन में मंच संचालन कई आयोजनों में सफल संचालन के अनुभवी श्री एस के तिवारी द्वारा किया गया।

सम्मेलन का शुभारम्भ देवी सरस्वती को मालाअपर्ण तथा दीप प्रज्वलन द्वारा किया गया।

सम्मेलन का आयोजन तीन सत्र में किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता श्री केवल कृष्ण सेठी, अध्यक्ष मध्य प्रदेश शाखा द्वारा की गई। संस्थान के महानिदेशक श्री एस एन त्रिपाठी मुख्य अतिथि थे। उन के अतिरिक्त श्री जे एन कानसोटिया, महानिदेशक, मध्य प्रदेश प्रशासन अकादमी ने भी सभा को सम्बोधित किया। श्री रमेश मिश्रा, प्राध्यापक, लोक प्रशासन विभाग, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने सम्मेलन का बीज लेख प्रस्तुत किया। श्री सेठी द्वारा सभी आगुनतक वक्ताओं तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। श्री अमिताभ र॰जन, पंजीयक, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान नई दिल्ली द्वारा संस्थान का परिचय दिया गया। श्री एस एन त्रिपाठी एवं श्री जे एन कांसोटिया द्वारा सभा को सम्बोधित किया गया। श्री डी पी तिवारी, मानद सचिव मध्य प्रदेश क्षेत्रीय शाखा द्वारा आभार व्यक्त किया गया।

प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता श्री नरेन्द्र प्रसाद, उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेशा शाखा द्वारा की गई। श्री रमनी, अध्यक्ष, उŸार प्रदेश क्षेत्रीय शाखा भी मंच पर सहयोगी के रूप में आसीन थे। इस सत्र में मुख्य प्रस्तुति श्री सुयोग्य मिश्र द्वारा की गई। द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता श्री अशोक विजयवर्गीय, उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश शाखा द्वारा की गई एवं सहयोगी सुश्री इन्दिरा मिश्र रहीं। इस में मुख्य प्रस्तुति सुश्री अनीता देशपाण्डेय, प्राध्यापक, उत्कृष्ठ संस्थान, भोपाल द्वारा की गई।

सरस्वती मालाअर्पण के पश्चात श्री सेठी ने सभी आमंत्रित प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्हों ने कहा कि मुख्यालय द्वारा परिक्षेत्रीय सम्मेलनों का आयोजन एक स्वागत योग्य कदम है जिस से देश के विभिन्न भागों के सदस्यों को संस्थान से जुड़ने का अवसर मिले गा। उन्हों ने कहा कि वह अनुग्रहित हैं कि मध्य प्रदेश को प्रथम परिक्षेत्रीय सम्मेलन के लिये चुना गया। श्री त्रिपाठी के महानिदेशक बनने के पश्चात कई नये कार्यक्रम आरम्भ किये गये हैं जिन में यह सम्मेलन भी एक है। उन्हों ने उŸार प्रदेश, राजस्थान तथा छŸाीसगढ़ के प्रतिनिधिगण का भी स्वागत किया। उन्हों ने कहा कि इस से श्रोताओं को इन राज्यों में हो रही कार्रवाई का भी ज्ञान मिले गा। इस सम्मेलन की रूपरेखा तैयार करने में प्राध्यापक श्री रमेश मिश्रा तथा पंजीयक श्री र॰जन का सहयोग अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ। उन्हों ने कहा कि श्री एस के तिवारी एक मंजे हुये मंच संचालक हैं तथा उन्हों ने राष्ट्रपति, मुख्य मंत्री इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों के कार्यक्रम आयोजन में मंच संचालक की सफल भूमिका अदा की है। परन्तु सब से अधिक स्वागत श्रोताओं को किया जाना चाहिये क्योंकि कोई भी सभा बिना श्रोताओं के अधूरी ही रहे गी।

श्री सेठी ने मध्य प्रदेश शाखा का परिचय देते हुये कहा कि अनेक राज्यों में कार्यरत क्षेत्रीय शाखाओं में मध्य प्रदेश भी एक है तथा इसे सक्रिय शाखाओं की उच्च श्रेणी में रखा जा सकता है। हर महीने इस के सदस्यों की बैठक आयेाजित होती है जिस में प्रशासन से सम्बन्धित विषय पर चर्चा की जाती है। उन सदस्यों को, जो बैठक में नहीं आ पाते, मासिक पत्रिका के माध्यम सें बैठक की कार्रवाई से अवगत कराया जाता है। इस पत्रिका में अन्य प्रशासन सम्बन्धी लेख भी रहते हैं। वर्षान्त में पत्रिका में प्रकाशित लेख के आधार पर एक पुस्तक का प्रकाशन भी किया जाता है। यह क्रम वर्ष 2010 से चल रहा है। आज के सम्मेलन में वर्ष 2023 की पुस्तक का विमोचन करने के लिये उन्हों ने महानिदेशक संस्थान से अनुरोध किया है। पत्रिका प्रकाशन के अतिरिक्त प्रति वर्ष निबन्ध प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है जिस में हमें आशातीत संख्या में निबन्ध प्राप्त होते हैं। एक वर्ष तो 1457 निबन्ध प्राप्त हुये। उन्हों ने पुनः सभी उपस्थित जन का स्वागत करते हुये अपनी बात समाप्त की।

श्री अमिताभ र॰जन ने संस्थान का परिचय देते हुये कहा कि संस्थान की स्थापना श्री एप्पलबाई के प्रतिवेदन के पश्चात प्रधान मन्त्री श्री नेहरू के आशीरवाद से 1956 में की गई। इस का लक्ष्य प्रशासन में नवाचार को प्रोत्साहित करना था। इसी कारण राज्यों में अनेक शाखायें स्थापित की गईं। इस के अतिरिक्त उन नगरों में जहाँ पर सदस्यों की संख्या पर्याप्त थी, स्थाीय शाखायें भी स्थापित की गईं। उन्हों ने बताया कि छŸाीसगढ़ में 29वीं क्षेत्रीय शाखा का उदघाटन सितम्बर 2023 में किया गया तथा उन्हें आशा है कि श्री मिश्रा के सभापतित्व में यह एक सक्रिय शाखा रहे गी। उŸार प्रदेश तथा राजस्थान की क्षेत्रीय शाखायें भी सक्रिय शाखायें हैं। इस समय संस्थान को कई मन्त्रालयों ने अपने कार्य क्रमों के तथा प्रशिक्षण के लिये संस्थान को अधिकृत किया है। उन्हों ने बताया कि संस्थान के इस समय लगभग 12,000 सदस्य हैं। भारत के उपराष्ट्रपति इस के अध्यक्ष हैं तथा मन्त्री कार्मिक विभाग इस के सभापति। विभिन्न मन्त्रालयों के सचिव के अतिरिक्त शाखाओं के नामित अध्यक्ष भी इस की शासी परिषद के सदस्य हैं।

उन्हों ने बताया कि संस्थान द्वारा प्रशिक्षण के अनेेक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जिन में विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों सहित उन देशों के अधिकारी भी रहते हैं जहाँ अंग्रेज़ी समझी जाती है, जैसे नेपाल, बंगला देश इत्यादि। संस्थान द्वारा त्रैमासिक जरनल का प्रकाशन किया जाता हैं। हिन्दी में भी एक जरनल का प्रकाशन वर्ष में दो बार किया जाता है। इस के अतिरिक्त मासिक पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है। संस्थान में शोघ की कार्रवाई निरन्तर चलती है तथा इस के आधार पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित की जा रही है। संस्थान के पुस्तकालय में 2.28 लाख पुस्तकें हैं तथा सतत नई पुस्तकें शामिल की जा रही हैं। इस के अतिरिक्त सभी महत्वपूर्ण पत्रिकायें भी संस्थान में उपलब्ध रहती हैं जिन में विदेशों में प्रकाशित पत्रिकायें भी शामिल हैं। इन की संख्या 252 है।

प्राध्यापक श्री रमेश मिश्रा ने विषय का परिचय देते हुये कहा कि प्रशासकीय विकेन्द्रीकरण का विषय बबहुत पुराना है किन्तु फिर भी यह चिरनवीन है क्योंकि संदर्भ बदलते रहते हैं। उन्हों ने कहा कि गत वर्षों में प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण पर बहुत काम हुआ है। पूर्व में माई बाप बन कर सरकार चलाई जाती थी परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात इस का स्वरूप बदला तथा इसे जनता की हितकारी सरकार बनने को दायित्व सौंपा गया। मनोदशा बदलने मे ंसमय तो लगता ही है किन्तु आज की सरकार सेवा समर्पित सरकार है तथा इस दिषा में तन मन से कार्य कर रही है। उन्हों ने बताया कि विकेन्द्रीकरण का आरम्भ सर्वप्रथम रेलवे से हुआ। विभिन्न परिक्षेत्रों में संचालन के पूर्ण अधिकार दिये गये। परन्तु व्यापक रूप से प्रशासन के विकेन्द्रीकरण का आरम्भ 1992 में हुआ जब संविधान में संशोधन के द्वारा स्थानीय निकायों को संवैधानिक मान्यता दी गई। इस संशोधन के आधार पर ही राज्यों में विŸा आयोग स्थापित किये गये ताकि स्थानीय निकायों को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध हो सके। केन्द्रीय विŸा आयोग ने भी स्थानीय निकायों को सहायक अनुदान देने के लिये अपने सुझाव दिये जिन पर केन्द्रीय सरकार कार्य कर रही है। उन्हों ने कहा कि कई राज्यों में व्यवस्थित रूप से इन निकायों को सहायता की गई है। वास्तव में इन के लिये एक निष्ठापूर्वक पहल की जाना आवश्यक है ताकि यह निकाय अपने कर्तव्य निभा सकें। उन्हों ने कहा कि इन कर्तव्यों में विनियामक कार्य भी शामिल हैं तथा विकास कार्य भी।

श्री मिश्रा ने कहा कि मध्य प्रदेश देश में पहला राज्य था जिस ने नई व्यवस्था को स्वीकार किया तथा इस के पालन के लिये व्यापक कदम उठाये। ज़िलों को कई कार्यों क्रे लिये अधिकृत किया गया। इसी प्रकार उŸार प्रदेश तथा राजस्थान में भी सक्रिय रूप से कार्य विकेन्द्रीकृत किये गये हैं।

प्रश्न यह है कि विकेन्द्रीकरण को जन अन्दोलन का रूप कैसे दिया जा सकता है। संविधान की मंशा है कि गा्रम सभाओं तक नागरिक सक्रिय रूप से विकास के कार्य में जुड़ें। इन की नियमित बैठक् हों जिन में आगामी योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाये।

श्री मिश्रा ने कहा कि निकायों को सही अर्थों में सक्रिय करने के लिेये तीनों बातों की आवश्यकता हो गी - कर्तव्य, बजट तथा कार्यकर्ता। हर विभाग को ज़िले स्तर के कार्य के लिये दायित्व ज़िला पंचायत एवं नगरीय संस्थाओं को अधिकृत करना हो गा। परन्तु देखने में आया है कि कई राज्यों में इस दिशा में उतने प्रभावी कदम नहीं उठाये गये हैं जितने अपेक्षित हैं। इसी कारण कुछ स्थानीय निकायों की हालत नाज़ुक रहती है। कर्तव्य तो विकेन्द्रीकृत किये गये हैं किन्तु उसी के अनुपात में अधिकार भी विकेन्द्रीकृत किये जाना हों गे। इस के साथ ही अधिकारियों तथा कर्मचारियों का भी पुर्नविन्यास करना हो गा क्योंकि उन्हें सिरे से बदलना तो व्यवहारिक नहीं हो गा। उन्हें प्रशिक्षित कर अपने लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है। इस का दूसरा पहलू यह हैै कि पंचों को भी प्रशिक्षित करना होगा ताकि वह जान सकें कि उन के कर्तव्य क्या हैं तथा अधिकार क्या हैं। आम जनता को भी अपने कार्य में भागीदार बनाने के लिये प्रयास करना आवश्यक है जो पंचायत के माध्यम से सरलतापूर्वक हो सकता है।

विकेन्द्रीकरण का सब से महत्वपूर्ण अंश नये विचार जनित करने का है। स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप जो योजनायें बनें गी वह प्रगति की वास्तविक रूप रेखा तैयार करें गी। देखने में आया है कि कई पंचायतों से नये नये विचार आये हैं जिन को अन्य पंचायतों में भी अपनाया जा सकता है। वास्तविक प्रजातन्त्र तभी आ पाये गा जब विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जाये गी।

महानिदेशक संस्थान श्री एस एन त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि उन्हें प्रसन्नता है कि मध्य प्रदेश शाखा द्वारा इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस में अभी तक की सफलताओं के बारे में बताया जा सकता है जो भविष्य की योजनाओं के लिये आवश्यक है।

विकेन्द्रीकरण का विचार स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही विचाराधीन था परन्तु हर विचार को परिपक्व होने का अपना समय रहता है। भारत ने गत वर्षों में बहुत प्रगति की है। किसी समय इने गिने ग्रामों में ही विद्युत पहुँचती थी, आज लगभग अस्सी प्रतिशत गॉंवों में विद्युत का पदार्पण हो चुका है। लगभग हर ग्राम अब सड़क से जुड़ चुका है। यह अचानक ही नहीं हो गया बल्कि कई विद्वानों ने गहण विचार करने के पश्चात योजनायें बनाई जिन का परिणाम हम देख रहे हैं। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने भी इस विकास में अपनी भूमिका निभाई है। भारत को शिखर तक पहुॅचाने में ग्रामों की भूमिका सर्वोपरि है क्योंकि भारत गाँव में ही बसता है। इन की प्रगति ही भारत की प्रगति है। परन्तु ग्रामांे की प्रगति तभी हो सके गी जब हम विवादों से दूर रहें गे। समरसता ही प्रगति का आधार है। इसे छिन्न भिन्न किया जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता। विवादों से दूर रहेें गे तभी प्रगति हो गी।

उन्हों ने कहा कि हम 140 करोड़ हैं और इन में से कोई भी विकास के लाभ से वंचित नहीं रहना चाहिये। इस की ज़िम्मेदारी आई ए एस, पी सी एस सभी की है। इन के अतिरिक्त तीन करोड़ शासकीय सेवक तथा कार्यकर्ता हैं जिन को यह दायित्व सम्भालना है।

उन्हों ने कहा कि भारत के विकास का माडल सर्वांगीन, सम्पूर्ण तथा सर्वहितकारी है। इस में सभी भागीदार है। आई आई पी ए भी इस में अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है। सफलता का रहस्य दक्षता तथा तत्परता में ही है। हमें अपनी समस्याओं को किसी कालीन के नीचे छुपा कर नहीं रखना है बल्कि उन का डट कर मुकाबला करना है। किसी ऊॅंची अटारी में बैठ कर इन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है। नीचे के आधार तक काम करना है। दिल्ली से भोपाल से हर ग्राम तक पहुँचना है। यही विकेन्द्रीकरण है और यह हम सब की ज़िम्मेदारी है चाहे वे अधिकारी हों अथवा विधायक अथवा अन्य कार्यकर्ता। इस में हमारे अध्यापक भी शामिल हैं। कुलपति से ले कर छात्र तक सभी भागीदार है। विद्यार्थी को विद्या के अर्थी नहीं निकालना है, उस का सदुपयोग कर आगे बढ़ना हैै। अपनी मनोवृति बदलना हो गी। कैसे कर सकें गे के स्थान पर कर के दिखायें गे की शपथ लेना है। बहानाबाज़ी नहीं चले गी। कोई भी शुभ लक्ष्य अप्राप्य नहीं है। सुनने की प्रवृति का विकास करना हो गा तभी हम समझाने की शक्ति भी प्राप्त कर सकें गे। संगठन ही शक्ति है। किसी को यह नहीं सोचना है कि अमुक कार्य मेरा नहीं है, मेरे साथी का है। यदि ‘‘कर सकते हैं’’ की भावना हो गी तो कार्य सम्पन्न भी हो जाये गा।

उन्हों ने कहा कि एक ज़माना था जब सर्वोच्च सŸाा को कहना पड़ा कि रुपये में से केवल 15 पैसे ही हितधारी को मिलते हैं। आज वह बात नहीं है। कोई बचैलिया नहीं है। पैसा सीधा खाते में आ जाता है। यह आसान काम नहीं था। एक समय कहा गया था कि यदि बैंक को जनता तक पहुँचाना है तो 5000 अतिरिक्त बैंक शाखायें खोलना हों गी। इस में कई वर्ष लग जायें गे। नौ सौ करोड़ रुपये का व्यय हो गा। किन्तु जब लग कर निष्ठा से काम किया गया तो दो साल में बिना कोई शाखा खोले, बिना अतिरिक्त स्टाफ के 43 करेाड़ खाते खुल गये। जन धन योजना इस शताब्दि की सब से बड़ी सफलता है और यह कार्य उसी स्टाफ ने किया पर तकनालोजी के कारण हुआ। अभी इन की संख्या 53 करेाड़ हो चुकी है। इस तकनालोजी को ग्राम तक पहुँचाने का काम चल रहा है। निष्कर्ष स्पष्ट है कि लगे रहो तो कार्य हो गा।

उन्हों ने कहा कि यही लग्न है जिस के कारण स्वच्छता का विचार घर घर तक पहुँच गया है। 1947 से 2014 तक प्रयास से बीस प्रतिशत ग्रामों में शौचालय थे। इस के पश्चात पाँच सात वर्ष में 95 प्रतिशत ग्रामों तक शौचालय बन गये हैं। हर घर नल योजना में कितने ही घरों में पानी पहुँच चुका है। इन विकास कार्यक्रमों की गति कम नहीं होना है। हम ने वर्ष 2047 तक विकसित भारत का संकल्प लिया है और हमें इस के लिये हर स्तर पर परिश्रम करना हो गा। परिश्रम, दृढ़ संकल्प और निष्ठा ही हमारे औज़ार हैं। आई आई पी ए में सब से बड़ी बात यह है कि इस में सभी विषयों पर ख्ुाल कर विचार होता है। सभी प्रकार के व्यक्ति इस में भाग लेते हैं तथा सभी का ध्येय प्रशासन को अधिक चुस्त बनाना तथा देश को निर्माण की दिशा में ले जाना रहता है। प्रथम बात अपने में विश्वास की है परन्तु इस में यह भी ध्यान रखना है कि बहकाने वालों से सावधान रहना है। अपने कार्य पर ध्यान केन्द्रित कर ध्येय को स्पष्ट रूप से धारण कर कार्य किया जाये गा तो सफलता निश्चित है।

श्री जे एन कांसोटिया, महानिदेशक मध्य प्रदेश प्रशासन अकादमी ने सभा को सम्बाधित करते हुये कहा कि उन के वरिष्ठ ने अपने विचार व्यक्त प्रकट किये हैं जिन से वह पूरी तरह से सहमत हैं। लोक प्रशासन संस्थान के साथ मिल कर इस आयेाजन की भागीदारी उन के लिये सुखद अनुभूति है। हमारी अकादमी द्वारा उन्हीं आदर्शों को सामने रख कर कार्य किया जा रहा है जिस के बारे में बताया गया है। अपना कार्य करने में पूरी ईमानदारी बरतने की आवश्यकता है तभी देश आगे बढ़ सके गा। इस में संदेह नहीं है कि हमारे देश ने काफी प्रगति की है। आज हम विश्व की पाँचवीं क्रम की अर्थ व्यवस्था बन चुके हैं तथा सरकार का संकल्प है कि वर्ष 2047 तक इसे विकसित देश बनना है। इस के लिये सभी नागरिकों को प्रयास करना हो गा विशेषतया सरकारी कर्मचारियों को। आम जनता द्वारा सरकार की मौजूदगी सरकारी कर्मचारियों से ही महसूस की जाती है। एक तथ्य यह है कि आम तौर पर सरकारी कर्मचारी पर विश्वास जनता को नहीं हो पाता किन्तु दूसरी ओर सरकारी कर्मचारी अपने कार्य से उन को सुविधा पहुँचाते हैं, यह बात भी उन से छुपी नहीं रह जाती। परन्तु इस के लिये सरकारी कर्मचारी को अपने कार्य में दक्षता लाना हो गी। सतत प्रशिक्षण ही इस का तरीका है क्योंकि तकनालोजी में सदैव निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। अकादमी द्वारा प्रशिक्षण में इस पहलू को भी अपने ध्यान में रखा जाता है।

उन्हों ने कहा कि प्रशासन अकादमी द्वारा न केवल सरकारी कर्मचारियों का प्रशिक्षण किया जाता है बल्कि पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के सदस्यों के भी प्रषिक्षण षिविर आयोजित किये जाते हैं। इस में अनुभवी लोगों द्वारा उन को उन के कर्तव्य एवं अधिकारों के बारे में बताया जाता हैं। इन में महिला पंच भी शामिल रहते हैं तथा यह संतोष का विषय है कि इस प्रशिक्षण के कारण ही उन की भागीदारी से पंचायतों के निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हुई है।

श्री कांसोटिया ने कहा कि उन के विचार में विकेन्द्रीकरण से ही सामाजिक न्याय तथा आर्थिक न्याय की ओर बढ़ा जा सके गा। इन के आधार पर ही देश भी प्रगति के पथ पर बढ़े गा। सब को साथ ले कर चलने में ही देष की प्रगति अर्थपूर्ण हो सकती है। कार्य में सब की भागीदारी रहनी चाहिये तथा उस के फलस्वरूप होने वाली प्रगति में भी सब का ही हिस्सा रहना चाहिये।

उन्हों ने आष्वस्त किया कि लोक प्रषासन संस्थान की क्षेत्रीय षाखा को अकादमी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहे गा।


विमोचन

इस अवसर पर मध्य प्रदेेष क्षेत्रीय षाखा द्वारा प्रकाषित पुस्तक ‘‘प्रषासक प्रषासिका 2023’’ का विमोचन भी महानिदेषक, भारतीय लोक प्रषासन संस्थान एवं महा निदेषक मध्य प्रदेष प्रषासन अकादमी द्वारा किया गया।


श्री डी पी तिवारी ने अपने आभार प्रदर्षन में कहा कि श्री त्रिपाठी की विद्वता उन के औजस्वी भाषण में उभर कर सामने आई है जिस से हम सब को प्रोत्साहन मिला है कि हम देष के लिये यथा षक्ति अपना योगदान दें। उन्हों ने कहा कि श्री त्रिपाठी ने अपने महानिदेषक के कार्यकाल में संस्थान की कायापलट कर दी है। उस से ही पता चलता है कि उन्हों ने अपने मूल सेवा राज्य ओडिसा में कितना व्यापक परिवर्तन किया हो गा। उन के विचार, उन का व्यक्तव्य हमारा मार्ग दर्षन करते रहें गे।

श्री तिवारी ने कहा कि अकादमी के सभी अधिकारियों द्वारा विषेष कर महानिदेषक श्री कांसोटिया एवं निदेषक श्री मजीबुरहमान द्वारा सदैव हमारी सहायता की गई है तथा इस आयोजन की सफलता का श्रेय उन्हीं को ही जाता है।

श्री तिवारी द्वारा उŸार प्रदेष, छŸाीसगढ़ एवं राजस्थान से पधारे अतिथिगण को भी धन्यवाद दिया क्योंकि उन के आ जाने से ही आयोजन को वह ऊॅंचाई मिल सकी है जो हम ने देखी है। उन्हों ने जबलपुर एवं इन्दौर से आये अथितिगण को उन की उपस्थिति के लिये धन्यवाद दिया।

श्री रमेष मिश्रा ने अपने प्रस्तुतिकरण द्वारा इस अधिवेषन के विषय पर प्रकाष डाला जिस के आधार पर हम तकनीकी सत्र में इस विषय पर गम्भीर चर्चा कर सकें गे। उन के द्वारा जो बिन्दु उठाये गये हैं, उन में सभी महत्वपूर्ण हैं तथा उन पर विचार विमर्ष कर शासकीय अधिकारियों को अवगत कराया जाये गा।

श्री तिवारी ने कहा कि मध्य प्रदेष ने विषय की महता देखते हुये एवं शाखा को प्रात्ेसाहित करने के लिये उप ज़िलाध्यक्षों को भी इस अधिवेषन में भाग लेने के लिये नामित किया जिस के लिये वह धन्यवाद के पात्र हैं।

उन्हों ने श्रोताओं के प्रति भी आभार व्यक्त किया जिन्हों ने उपस्थित हो कर सम्मेलन की शोभा बढ़ाई।

अन्त में श्री तिवारी ने श्री एस के तिवारी को मंच का सफल संचालन करने के लिये धन्यवाद दिया और आषा व्यक्त की कि भविष्य में भी उन के सहयोग प्राप्त होता रह गा।

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