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पदोन्नति

  • kewal sethi
  • Apr 30, 2024
  • 4 min read

पदोन्नति


‘‘तो गीते, कब तक आयेे गा तुमहारी प्रमोशन का आदेश’-- कलैक्टर ने अपने नाज़िर से कहा।

- कैसा प्रमोशन सर

- क्यों? क्या कमेटी आई नहीं।

- कमेटी तो आई थी और बैठक भी हुई। पर........

- पर क्या।

- उन्हों ने मुझे प्रमोशन के लायक नहीं समझा।

- यह कैसे हो सकता है। मैं ने तुम्हारा रिकार्ड देखा है। दस साल से आउटस्टैड्रिग मिल रहा है।

- सर, यह तो आप लोगों की मेहरबानी है।

- क्या कमेटी वापस चली गई।

- नहीं सर, रैस्ट हाउस में हैं। कल सुबह जायें गे।

कलैक्टर ने फोन उठाया। दूसरी ओर से स्टैनों ने उठाया।

- जैन, वह प्रमोशन कमेटी आई थी न। रैस्ट हाउस में है। उन्हें मैसेज भेजो कि कलैक्टर मिलना चाहते हैं।

- जी सर, उधर से स्टैनो ने कहा।

बीस पच्चीस मिनट बाद शर्मा उप सचिव, जो भोपाल से आये थे, सामने थे। अभिवादन किया।

- आईये शर्मा जी, बैठिये। कैसी रही आप की यात्रा, आप का स्टे और आप की मीटिंग।

- सब मेहरबानी है। सब ठीक रहा।

- सुना है आप ने गीते को पसन्द नहीं किया है। उस का रिकार्ड तो बढ़िया है। कहॉं कसर रह गई।

- सर, बात यह है कि रिकार्ड तो ठीक है पर हम ने देखा कि वह एक ही पोस्ट पर कई साल से काम कर रहा है।

- पर काम तो आउटस्टैडिंग है।

- जी, वह तो है, पर सहायक अधीक्षक का काम तो सभी कलर्कों का काम देखना होता है। और श्री गीते को केवल एक ही स्थान का अनुभव है।

- तो उस में गीते का क्या कसूर है। काम बढ़िया था, इस लिये किसी ने हटाया नहीं। चपड़ासियों पर उस का कण्ट्रोल अच्छा है। कलैक्ट्रेट का सब सामान साफ सुथरा है। हर तरह से संतोषजनक है।

- वह बात तो अपनी जगह है पर नियमों के अनुसार तो उसे चार छह जगह का अनुभव होना ज़रूरी है।

- किस ने बना दिये ऐसे नियम। आदमी होशियार हो तो किसी का काम भी जॉंच सकता है। अब मैं क्या दस दफतरों में घूम कर आई ए एस में आया हूॅ। पर काम तो कर ही रहा हूॅं।

- सर, वह बात अलग है। आप की ट्रेनिंग होती है। अलग अलग जगह पर रहते हैं। और फिर मदद करने वाला स्टाफ भी रहता है।

- और गीते की ट्रेनिंग नहीं हुई। अब कर देते है। इस में क्या दिक्कत है। कब है आप की अगली बैठक।

- छह महीने में सर।

- ठीक है, सब सीट पर एक एक महीना उसे लगा देता हूॅ। हरफन मौला हो जाये गा।

- सर, एक महीने से काम नहीं चले गा। छह आठ महीने में तो काम का पता चलता है।

- और उस में चार सल लग जायें गे। उस बीच में कई सहायक अध्यीक्षक बन जायें गे और वह पिछड़ जाये गा।

- सर, नियम तो नियम हैं।

- वह तो मैं जब सचिवालय में आऊॅं गा, तब देख लूॅं गा। यह उलटे नियम तो नहीं चलें गे।

- सर

बैठक तो समाप्त हो गई पर कलैक्टर को चैन नहीं पड़ा। इतना अच्छा कार्यकर्ता और एक मूर्खता भरे नियम के कारण प्रमोशन से वंचित रह जाये, बात जमी नहीं।

दूसरे दिन अधीक्षक को बुलाया। बोले

- चौधरी जी, यह बताईये कि गीते के साथ जो बेइंसाफी हुई है, उस का क्या करें। बिना उस के किसी कसूर के उसे बाहर रखा जा रहा है।

- सर, मेरे ख्याल में सचिव को लिखा जाये।

- अरे, वह भी नियमों का हवाला दें गे। मुसीबत की जड़ तो वहीं है।

- नहीं सर, वह चाहें तो नियमों को शिथिल भी कर सकते हैं।

- मेरा तजरबा तो यह नहीं कहता। मैं ने अर्ज़ी दी थी कि नियमो को शिथिल करते हुसे मुझे मकान बनाने के लिये ऋण दिया जाये। नियम दस साल की सर्विस कहते है और मेरे आठ साल ही हुये थे। जानते हो क्या जवाब आया, एक महीने बाद।

- सर

- नियमों के अनुसार दस साल सेवा होना आवश्यक है इस लिये आवेदन अस्वीकार किया जाता है। अरे भाई, नियम तो मुझे भी पता था, इसी लिये तो छूट चाही थी। किसी ने शायद पढ़ा ही नहीं। यहॉ भी वही बात हो गी। चार महीने बाद जवाब आये गा - नियम इजाज़त नहीं देते।

- लिख तो सकते ही हैं। भोपाल जायें तो बात भी कर लीजिये गा।

- ठीक है, वैसा पत्र बना लाईये।

अधीक्षक को विदा किया। पता था कि वह ज़्यादा मदद नहीं करे गा। वह भी अपनी आदत, अपने नियमों, अपने अनुभव से बंधा हुआ है। सरकारी काम में मदद करना मना है, सिर्फ नियम ही सर्वापरि हैं। पर कलैक्टर ने हिम्मत नहीं हारी। एक राय देने वाला और था - जैन, उन का स्टैनो। था तो वह अधीक्षक के मुकाबले बहुत कम उम्र का पर था ज़हीन और उस से बढ़ कर सोचने वाला। कलैक्टर उस से बहुत प्रभावित था।

- जैन, एक प्राब्लम है। गीते को प्रमोशन देना है और कमेटी ने मना कर दिया है। अब क्या रास्ता है।

- सर, मैं कल सोच कर बताऊॅं।

- कल क्या, दो चार दिन लगा लो। इतनी जल्दी नहीं है।

पर जैन तो तीसरे रोज़ ही आ गया।

- सर, मैं ने सोचा है कि उसे किसी बराबर वाली पोस्ट पर नियुक्त कर दें।

- ऐसी कोई पोस्ट है ज़िले में और कहॉं है।

- सर, बराबर वाली पोस्ट तो चार पॉंच हैं पर खाली एक ही है। स्माल सेविंग सुपरवाईज़र।

- हैडक्वाट्रर से किसी का नियुक्ति तो नहीं हुई है।

- अभी उन्हों ने विज्ञापन निकाला है। काफी समय लगे गा। गीते भी अर्जी दे सकता है। सिफारिश आप कर ही दें गे।

- ठीक है, नियुक्ति आदेश बना लाओ।

और गीते की नियुक्ति उस पद पर हो गई। उस ने दो रोज़ बाद चार्ज भी ले लिया।


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