पत्रकारिता के लक्ष्य
आज अपने हृदय में नई नई आशाओं को धारण करके और अपने उद्देश्यों पर पूर्ण विश्वास रख कर 'प्रताप' कर्म क्षेत्र में आता है. समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परम उद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा बहुत जरूरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति को समझते हैं. उन्नति से हमारा अभिप्राय देश की कृषि, व्यापार, विद्या, कला, वैभव, मान, बल, सदाचार और सच्चरित्रता की वृद्धि से है. भारत को इस उन्नतावस्था तक पहुॅंचाने के लिए असंख्य उद्योगें, कार्यों और क्रियाओं की आवश्यकता है।
इन में से मुख्यत: राष्ट्रीय एकता; सुव्यवस्थित, सार्वजनिक शिक्षा का प्रसार; प्रजा का हित और भला करने वाली सुप्रबन्ध और सुशासन की शुद्ध नीति का राज कार्य में प्रयोग; सामाजिक कुरीतियों का निवारण तथा आत्म अवलम्बन और आत्म अनुशासन में दृढ़ निष्टा है. हम इन्हीं सिद्धांतों और साधनों को अपनी लेखनी का लक्ष्य बनाएंगे. हम अपनी प्राचीन सभ्यता और जाति गौरव की प्रशंसा करने में किसी से पीछे ना रहेंगे, और अपने पूजनीय पुरुषों के साहित्य, दर्शन, विज्ञान और धर्म भाव का यश सदैव गायें गे. किन्तु अपनी जातीय निर्बलता और समाजिक कुसंस्कारों तथा दोषों को प्रकट करने में हम कभी बनावटी जोश या मसलहते वक्त से काम न लेंगे, क्योंकि हमारा विश्वास है कि मिथ्या अभिमान जातियों के नाश का कारण होता है —
9 नवम्बर 1913 को गणेश शंकर विद्यार्थी क्षरा समाचारपत्र 'प्रताप' के पहले अंक में प्रकाशित नीति व्यक्तव्य का अंश
(पत्रिका गांधीमार्ग जुलाई अगस्त 2018 से साभार)
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