न्याय और अन्याय
बहुत समय की बात है, जहु चैपाटी पर कुछ लोग ऊॅंट पर सवारी कराते थे। बच्चे उस पर बैठते तथा उन्हें बीच का एक चक्र लगवा दिया जाता। किसी भले आदमी में उच्च न्यायालय में प्रार्थनापत्र लगा दिया कि यह तो ऊॅंटों पर सरासर जुल्म है। कहाॅं वे रेगिस्तान के रहने वाले, कहाॅं मुम्बई। उच्च न्यायालय ने उन की बात मान ली और जहु बीच पर ऊॅंटों की सवारी पर बंदिश लगा दी। उन का निर्णय था कि ऊॅंट रेत पर चलने के आदी है, यह तो सही है पर वह रेत राजस्थान की होती है। मुम्बई की रेत दूूसरी तरह की है। ऊॅंट इस प्रकार बच्चों की सवारी के काम में नहीं लिया जा सकता। यह ऊॅंटों पर अत्याचार है। इसे बन्द किया जाये।
मेरे मन में विचार आया कि बड़ा अच्छा हुआ कि ऊॅंटों को जहु चैपाटी पर भगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। पर और भी अच्छा होता यदि मुम्बई में तथा पुणे में घोड़ों को दौड़ाने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाता। आखिर उन का काम कोई इस प्रकार दौड़ने का तो नहीं रहता। जंगल बयाबान में रहते थे, अपनी मौज में रहते थे, जब चाहते थे भागते थे और साथ साथ भागते थे, एक दूसरे को हराने के लिये नहीं। अब जाकी उन्हें भगाता है।
पर इस का प्रतिबन्ध लगाने की कोई नहीं सोचता। क्येंकि वह अमीरों का शुगल है, गरीबों की रोटी रोज़ी नहीं। कितने ऊॅंटों वाले बेकार हों गे, इस से मतलब नहीं। जानवरों से हमददी् है, इन्सानों से नहीं। पर सब जानवरों से भी नहीं। गरीब आदमी के जानवरों से।
मेनका गाॅंधी बन्दरों को नचाने वालों को रोकना चाहती थीं क्यों उन के अनुसार बन्दर को सिखाने में उसे तंग किया जाता था। बिल्लियाॅं, कुत्ते के पालने पर, उन्हें अंग्रेज़ी में दी गई आज्ञा मानने पर कोई आपत्ति नहीं, भले ही उस में भी तंग करने की बात निहित हो।
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