top of page

नीना — 3

  • kewal sethi
  • Sep 5, 2024
  • 5 min read

नीना — 3

(गतांक से आगे)

7

कमल खुश था। उस ने अपने प्रोप्राईटर को 40 मिनट में ही निपटा लिया था। सिर्फ सवा 6 बजे थे। इंतजार कर रही होगी, उसे यकीन था। शायद न भी हो। कोई बात तो हुई नहीं। कोई इशारा भी नहीं। उस ने आँख मार पर पता क्यों नहीं कर लिया। पर नहीं, जल्दी मैं सब गड़बड़ हो सकता है। देख लेते हैं। है तो अच्छा है नहीं तो कौन से जिंदगी खत्म हो गई है। अगर वह हुई तो अगला घंटा डेढ़ घंटा कितने मज़े का बीते गा। वह घर से कोई बहाना बना कर आई हो गी। जाने की कोई जल्दी नहीं हो गी। सपने सुनहरे होंगे उस के, कितनी बार वह हो गी उस की। एक बार दो बार पर ज्यादा नहीं। क्या एक बार के बाद उसे बताए कि यह पहली बार थी। कल कुछ नहीं हुआ था। सिर्फ कपड़े इधर-उधर किए गए थे। कैसे चौंके गी, क्या कहे गी वह। सोच कर उस का मन खिल उठा। क्या बढ़िया दिल्लगी रहे गी। आज वह मुस्कुरा कर कहे गी कल भी क्या जरुरत थी गोली की। तुम मुझ से कहते तो सही।

फ्लैट के सामने पहुंचकर उस ने घंटी बजाई पर कोई जवाब नहीं। शायद शरमा रही है। कल की बात और थी पर आज तो होशो हवास में हो गी । मिलन की बेला में शर्म आ ही जाती है। कितना खुश नसीब है वह। दौबारा घंटी की पर जवाब नदारद। हौले से उस ने चाबी लगा कर घुमाई और अंदर दाखिल हो गया।


8.

सामने दो व्यक्ति सोफे पर बैठे शराब पी रहे थे।

कौन? कौन हो तुम?

डरो नहीं, तुम्हारे दोस्त ही हैं बेटा

कैसे आये तुम यहाॅं पर

दरवाज़ा खोल कर

जानते नहीं, यह मेरा घर है। मेरी इजाज़त के बगैर यहाॅं आये कैसे

अरे अब क्या खड़े खड़े ही सवाल पूछते रहो गे कि आगे भी आओ गे।

तुम्हारे घर आये हैं, तुम्हीं से मिलने।

पर शायद तुम्हें किसी और का इंतज़ार था। आ गये हम।

काफी निराशा हुई हो गी न बेटा।

अब आ ही गये हैं तो इन की कुछ खातिर तवाजा तो की जाये। इन्हीं का घर है। इन को आराम तो मिलना चाहिये।

यह एब बातें नीना बैडरूम से सुन रही थी। उस ने करमा और लाला को बाहर ही छोड़ दिया था या उन्हों ने उस को अन्दर कर दिया था। वह स्वयं वहाॅं कर देखना चाहती थी कि क्या हो गा पर करमा नहीं माना। उसे लगा कि यह बात नीना के देखने लायक नहीं हो गी। आखिर फैसला यह हुआ कि वह बैडरूम के अन्दर से डायलाग सुने। बैड रूम तथा बैठक के बीच में खिड़की नहीं थी जिस से वह एक्शन देख सकती।

सिवाये पहले के वाक्य के कमल ने कुछ नहीं कहा था। करमा और लाला ही आपस में बात कर रहे थे। वह चाहती थी कि एक्शन शुरू हो। वह देखना चाहती थी पर देख नही पा रही थी। उसे मना कर दिया गया था। शायद बाहर से कुण्डी भी लगा दी गई थी। पर फिर भ्ज्ञी वह प्रसन्न थी।

कमल कुछ समझ नहीं पा रहा था। कम से कम बोल तो नहीं रहा था। फिर नीना को लगा कि कोई कुर्सी पलटी। फिर मारपीट होने लगी। कमल का क्या मुकाबला उन से। दोनों .- करमा और लाला - हृष्ट पुष्ट थे। नीना मन ही मन कमल के पिटने की कल्पना कर रही थी। प्रसन्न हो रही थी।

इसी बीच शीशा टूटने की आवाज़ आई। शायद किसी अल्मारी का शीशा टूटा। फिर कमल की आवाज़ आई।

तो वह दगाबाज़ लाई तुम को यहाॅं। पर तुम यह समझो कि मैं कल का छोकरा हूॅं तो यह तुम्हारी बेवकूफी है। अब आओ आगे।

यह कया? क्या कमल उन पर भारी पड़ रहा है। राम, उस का क्या हो गा। यह तो कमल उन को ललकार रहा है। वह तो समझ रही थी, दोनों मिल कर उस का कचूमर निकाल दें गे। क्या पासा गल्त पड़ गया। कमल ज़्यादा चालाक निकला। क्या उस के पास पिस्तौल ......। नीना सिहर उठी।

दरवाज़ा बाहर से बेद था। वह क्या कर सकती थी। खुला भी होता तो वह क्या कर सकती। मजबूर, बेबस। लाला और करमा को उस ने फंसा दिया। पर क्या वह अपनी रक्षा नहीं कर सकते।

फिर एक बार बाहर संग्राम की आवाज़। काफी देर तक उलटा पलटी होती रही। शायद कुर्सी भी फैंकी गई। फिर थोड़ा सन्नाटा। तेज़ सांसों की आवाज़।

फिर। फिर एक चीख। और किसी के गिरने की आवाज़। कौन गिरा। क्या हुआ। उस ने दरवाज़ा पीटना शुरू किया। वह अब और सहन नहीं कर सकती थी। यह क्या हो रहा है। अब क्या हो गा।


9

दरवाज़ा खोल दिया गया। वह बाहर आई। करमा और लाला खड़े थे। अपने कपड़ों को और शायद अपने ज़ख्मों को सहलाते हुए। कमल ज़मीन पर पड़ा था। एक चाकू उस के सीने में गड़ा था।

मर गया साला, शायद - करमा ने कहा।

लाला ने कहा —

चलो अच्छा हुआ। हम भी मस्त हैं। इस के पास तो काफी माल है। कुछ पी लिया जाये।

मेरा दिल भी धक-धक कर रहा है। थोड़ा आराम मिले गा।

अल्मारी में से शराब निकाल कर वह दोनों पीने लगे।


नीना का अब क्या दायित्व था। कहां तो उस का ख्याल था कि कमल की पिटाई हो चुकने के बाद वह उस के मुंह पर थूके गी। और फिर चल दे गी अपना बदला पूरा कर के। पर अब?


घीरे से वह दरवाजे की तरफ बढ़ी पर लाला ने रास्ता रोक लिया।

ठहरो। जा रही हो। हमें इस मुसीबत में छोड़ कर कहाँ जा रही हो।

इतनी जल्दी ठीक नहीं - करमा ने कहा

लेकिन हमें यहाँ रुकना नहीं चाहिये - नीना ने कहा।

चिल्लाओ मत, जानते हो कैसी जगह हो तुम, कोई आ गया तो.

डरो मत, कोई नहीं आता यहाँ, यह इस का अड्डा था, इसी काम के लिए। अब कौन आए गा -

लाला रास्ता रोके हुए कह रहा था।

हमारी भी इच्छा हैं। यह जगह अच्छी है, रात अच्छी है, तुम अच्छी हो, मौका अच्छा है, सब अच्छा है, ।

मुझे जाने दो, मुझे जाना चाहिये।

जाना ही है यहां से सब को। क्या आगे, क्या पीछे। देखो यह साला जल्दी चला गया - करमा बोला।

तो तुम क्या चाहते हो, यहीं पड़े रहना।

करमा, बता इसे, हम क्या चाहते हैं।

नहीं नहीं, लाला, तुम ही कहो, तुम्हीं ही बताओ।

मैं बताऊँ, लड़की, हम वही चाहते हैं जो यह बदमाश चाहता था।


क्या - लगभग चीख पड़ी नीना

चिल्लाओ मत, जानते हो कैसी जगह हो तुम, कोई आ गया तो। हम तो किराये के आदमी हैं पर वजह हो तो तुम ही हो। चाभी भी थी तुम्हारे पास। सुनो, हम भी मर्द है। हमारी भी इच्छायें हैं। यह जगह अच्छी है, यह शराब अच्छी है, तुम अच्छी हो, मौका अच्छा है, बिस्तर अच्छा है। समझीं।

लाला, ज़बरदस्ती नहीं

ज़बादस्ती कौन साला करता है। हम तो इसे हालात के बारे में बता रहे हैं। फैसला तो इस को करना है।

हाँ फैसला तो इसे ही करना है पर एक ही फैसला। और जल्दी। समय नहीं है।

पर इतनी जल्दी भी नहीं - करमा ने कहा।

ठीक है। देख लड़की। आधे घंटे का समय देते हैं। हम जबरदस्ती नहीं किया करते पर दोनों चीजें तुम्हारे हाथ में है। या तो तुम हमारी बाहों में होगी या फिर पुलिस की। और वह तो जोर जबरदस्ती भी कर लेते हैं और कई कई। पर तुम नहीं मानी तो बस तुम्हें यहां बंद कर पुलिस को खबर कर दें गे।

और हां, चिल्लाई तो लोग खुद ही आ जाएंगे। हमारा काम भी आसान हो जाए गा।

यहाँ इस के साथ दम घुट रहा है। बाहर थोड़ा घूम आयें - करमा ने कहा।

ठीक है, आधे घंटे में आते हैं। सोच लो तुम्हें क्या कबूल है।

हम जबरदस्ती कभी नहीं करते।

उसे धकेल कर बाहर से दरवाज़ा बन्द कर दिया गया।

Recent Posts

See All
पहचान बनी रहे

पहचान बनी रहे राज अपने पड़ौसी प्रकाश के साथ बैठक में प्रतीक्षा कर रहा था। उन का प्रोग्राम पिक्चर देखने जाना था और राज की पत्नि तैयार हो...

 
 
 
खामोश

खामोश जब से उस की पत्नि की मृत्यु हई है, वह बिल्कुल चुप है। उस की ऑंखें कहीं दूर देखती है पर वह कुछ देख रही हैं या नहीं, वह नहीं जानता।...

 
 
 
 the grand mongol religious debate

the grand mongol religious debate held under the orders of mongke khan, grandson of chengis khan who now occupied the seat of great khan....

 
 
 

Comments


bottom of page