नीना — 2
(गतांक से आगे)
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नीना रात भर सो नहीं सकी. खास तौर पर आखरी बात उसे कचोटती रही. अशोक, अशोक तक यह खबर जाएगी. जाने और किस-किस तक पहुंच जाए गी. फिर उस का क्या होगा. बदनामी. घर भर की बदनामी. अब वह क्या करे। क्या वह शिकायत करें। किस से । कौन माने गा।. क्या वह अपनी रजामंदी से उस की कार में नहीं बैठी थी. क्या उस ने वहीं पर शोर मचाया था. कौन माने गा उस की बात. कल वह दफतर नहीं जाए गी, किसी भी कीमत पर नहीं जाए गी। पर बदनामी। पर बदला। कैसे ले गी वह बदला। उसे दफतर जाना ही हो गा।
सुबह उसे मोहल्ले के एक गुंडे का ध्यान आया. काफी बदमाश था वो। कई बार वह जेल जा चुका था। उस से बात तो कभी नहीं हुई थी पर उस के बारे में वह जानती थी। सारा मौहल्ला जानता था। नाम था करमा। पूरा नाम क्या था, क्या मालूम। हट्टा कट्टा। वह आवारागर्दी करता रहता था। मोहल्ले में उस के डर से कोई घुसता नहीं था। मौहल्ले का वह चेहता नहीं था पर सब जानते थे कि एक अर्थ में वह मोहल्ले का रक्षक है। आसपास के बदमाश इधर आ नहीं पाते थे। वैसे तो वह इलाका अच्छा नहीं था पर बुरा भी नहीं था। पर जैसे आज कल के शोहदों का चलन है आती-जाती लड़कियों पर आवाजें कसना, फिल्मी गीत गाना तो फैशन ही था लेकिन उन के मौहल्ले में ऐसा नहीं होता था। उस के द्वारा कभी किसी से ज्यादती नहीं की गई। शायद करमा अपने को उस गली की लड़कियों का मुहाफिज़ समझता था। कुछ हुआ और उस ने लड़ाई मौल ली। इसी कारण मोहल्ले में उस के प्रति एक अजीब सा भाव था। इज्जत तो नहीं थी पर क्या, शायद कृतज्ञता।
जो भी हो, नीना को उस का ध्यान आया। वह कमल से बदला ले सकता था। उसे इस बारे में बताया जा सकता है। पूरा बताना तो जरूरी नहीं है। कुछ भी कहा जा सकता है। क्या कहना चाहें गी वह कमल के बारे में। क्या करना चाहे गा वह कमल के साथ। करमा ही कुछ सोचे गा।
दफतर जाने के लिए वह जल्दी तैयार हो गई। आज दफ्तर में काम था, इस लिये। बहाना बना कर बीस पच्चीस मिनट पहले निकल आई। कैसे करे गी वह करमा से बात, आज तक तो की नहीं थी पर बात नाजुक थी। आज ही का मौका था। फिर न जाने क्या हो।
गली के नुक्कड़ पर करमा बैठा था। ऐसे ही खाली, रोज़ की तरह। एक बीड़ी सुलगाए हुए। बिखरे हुए बाल, गठा हुआ शरीर, बेपरवाही उस की रग रग से प्रगट थी। नीना ने गुजरते हुए अचानक नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए। करमा अवाक रह गया। वह यह क्या देख रहा है। पहले तो नीना ने कभी ऐसा नहीं किया था। वह रोज ही वहां बैठा रहता था, नीना रोज है वहाॅं से गुजरती रहती थी, पर नमस्ते तो कभी नहीं हुई। वह क्या करें। तभी नीना ने कहा - एक जरूरी बात करनी थी तुम से। बस स्टॉप तक चल सको गे मेरे साथ। करमा के मुॅंह से एक शब्द भी नहीं निकला। वह चुपचाप उठकर साथ चल दिया, धागे से बन्धा हुआ सा। यह सब बातें उस के लिए नई थीं और अनोखी। बस स्टॉप के पास जा कर नीना रुकी। नीना ने कहा - यहां भीड़ है, जरा आगे चलेंगे। और वह आगे चल दिए।
देखो, तुम्हें पता है तेरी नौकरी लग गई है
हां हां लगभग रुंधे गले से करमा ने कहा
हां, अच्छी जगह है, तनख्वाह भी अच्छी है, पर एक मुसीबत है। मेरा बॉस बहुत बदमाश है। परेशान कर दिया है मुझे। न जाने कैसे घूरता रहता है। यहां गली में तो तुम्हारे रहते हुए शांति रहती है पर दफ्तर में, उफ़।
साला, बदमाश - करमा ने दांत भींजते हुए कहा। उसे लगा उस के आरक्षित व्यक्तियों पर कोई बुरी नजर डाल रहा है। वह उसे कच्चा चबा जाए गा। सचमुच कमल अगर सामने होता तो उसकी गर्दन मरोड़ देता।
उसने फिर एक गहरी लगभग प्यार भरी नजर कर्मा पर डालते हुए कहा उस ने फिर एक गहरी लगभग प्यार भरी नजर करमा पर डालते हुए कहा - हां, वह बदमाश मुझ पर डोरे डालना चाहता है। डिक्टेशन देते हुए कल उस ने हाथ भी छू दिया। ‘केवल हाथ ही छू दिया’, सोच कर, नीना का गला भर आया फिर वह संभल कर बोली - कुछ भी कहता है वह, जैसे मैं कोई बाजारु औरत हूं।
ऐसा, देखता हूं उस को। साले को छठी का दूध याद ना करा दिया तो मेरा नाम नहीं
पर उसे पकड़ो गे कहां और लोग ना छुड़ा लें गे क्या
यह बात तो सच है। तुम ऐसा करो उसे किसी जगह बुला लो। फिर देखो
हां, यही सोच रही थी मैं, देखो मेरी एक सहेली है। आजकल बाहर गई है मां बाप के पास। उस का फ्लैट खाली है। चाभी मेरे पास है। तुम उस में चले आना। मैं कमल- वह मेरा बास है - बदमाश, लोफर, आवारा। उसे वहीं आने को कह दूं गी. एक चाबी भी उसे दे दूं गी ताकि मुझे साथ ना आना पड़े
यह ठीक है। पर अपण को जगह का पता नहीं है।
वो तो मैं तुम्हें साथ ले चलूॅं गी। पर तुम अकेले कर पाओ गे क्या। वह बदमाश पता नहीं क्या-क्या साथ रखता हो। किसी को साथ ले लो।
कोई बात नहीं। मैं लाला को साथ ले लूं गा। पर मैं तुम्हें कहां मिलूं।
मिलने की जगह तय हो गई और नीना दफतर की ओर बढ़ गई। करमा लाला की तलाश में निकल पड़ा
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दफ्तर में नीना को नाटक करना था। उस के मन में क्रोध का बवंडर था। पर चेहरे पर उसको सादगी रखना थी। जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो। उसी पहले के ढंग से डिक्टेशन लेना। बल्कि एक बार तो थोड़ा मुस्कुरा भी दी थी। कितना दर्द हुआ था उसे मुस्कुराने से।
पर कमल का मन खिल उठा। इतनी आसानी से लड़की पट जाएगी, उसे मालूम न था। उसे यकीन नहीं हो रहा था। बुझी बुझी तरह से काम करेगी, उस की अपेक्षा थी। शायद डयोढ़े वेतन ने बाज़ी मार ली थी। आगे की बात करने में समय लग जाएगा। चाभी देना तो सिर्फ छलावा था। उसे मालूम था कि चाबी देने से कभी कभी काम निकल पड़ता है। पर इतनी जल्दी, ऐसा नहीं। दो चार रोज़ बाद याद कराना पड़ता है कि चाबी उस के पास है। आज उस का इस्तेमाल करें नहीं तो ..........।
अकसर यह धमकी काम कर जाती थी। पर यह तो ज्यादा ही मॉडर्न निकली। क्या कुछ पिलाने की जरुरत भी थी। वह तो गधा है। सब को एक जैसा ही मानता है। पर इतनी सुंदर, इतनी जल्दी। मजा आ गया । उस का दिल शाम के ख्याल से बल्लियों उछलने लगा। पर अरे। उसे तो मिलने जाना था प्रोपराइटर से। वह बहाना बना ले। आज की सुनहरी शाम। लेकिन नहीं, यह मुलाकात बहुत ज़रूरी थी। वह इसे पहले करा ले। नहीं, उस के लिए मुझे वजह बताना पड़ेगी। नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकता। पर वह हाॅ, हाॅं करता रहेगा, शीघ्र ही छूट जाएगा। कोई बहस नहीं, केवल सहमति।
कब शाम हो, कब हो मिलन की बेला। बेबस लड़की से क्या होता है। मजा तो जब है जब वह आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई। अरे वाह, यह मारा तीर उस ने।
अशेक को उस ने गर्व भरी नजर से देखा जो कि नीना से बात कर रहा था। हा, यह तो बात ही करता रह जाए गा। और वह।
नीना अशोक से बात तो कर रही थी पर उस का मन उस में ना था। उसे भी जल्दी थी। कब काम खत्म हो। 5 बजें और वह चलें। 5 बजे जाने से क्या होगा उस ने तो 5ः45 का समय दे रखा था।
अचानक उस ने सुना - अशोक कह रहा थ, यहां तो तुम व्यस्त ही रहती हो। दफतर के बाद सामने के रेस्टोरेंट में चाय पिएं गे, तभी बात हो पाएगी।
हाॅं, हाॅं 5 बजे चलें गे - उस ने कहा। सोचा, आधा घंटा चाय और उस के बाद।
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आज कुछ उदास क्यों हो
मैं, उदास क्यों होने वाली लगी मैं
यह तो मैं नहीं जानता। आज सारा दिन तुम्हारे चेहरे से उदासी झलकती रही। कोशिश तो बहुत की तुम ने, लेकिन नामुमकिन है हालते दिल अशोक से छुपाना।
गलतफहमी हो गई है तुम्हें। उदास नहीं हॅूं मैं
यूँ ही सही, परमात्मा करे, तुम कभी उदास ना हो
थैंक्स
वैसे कहो तो मैं तुम को तुम्हारी उदासी की वजह भी बता दूँ
क्या?
बाॅस - श्री कमल
ओ, नानसेन्स
जिस तरह से तुम उस की तरफ देख रही थी आज, उस से ज़ाहिर है
अशोक, तुम्हें क्या हो गया है
साॅरी, पर कल उस ने कुछ बदतमीजी की
यू शट अप
एंड हैव टी, ओ के
चाय आ गई थी। नीना उस का घूँट गले से उतार नहीं पाई। क्या अशोक को सब पता चल गया है। उस के चेहरे से सब कुछ ज़ाहिर था। क्या अशोक का कोई दूसरा सोर्स है। या यह सिर्फ उस की कल्पना में उड़ान है। अशोक उसे यह सब क्यों बता रहा है। क्या चेतावनी के तौर पर। या कोई अन्य कारण है। क्या उसे शक है और उस से वह उगलवाना चाहता है। आखिर वह अशोक के बारे में क्या जानती है। कौन है, कैसा है। बदमाश है या शरीफ। भेड़ है या भेड़ की खाल में छुपा हुआ भेड़िया।
मैं ना कहता था, तुम खोई खोई सी हो।
ओह। सारी, मैं कुछ सोच रही थी।
इस उम्र में कुछ सोचने का मतलब बहुत नाजुक होता है।
तुम तो गधे हो।
या फिर बहुत भयानक - जैसे उस ने सुना ही नहीं।
नीना चौंक गई। क्या। यह आदमी तो कुछ ज्यादा ही होशियार है
अच्छा, थैंक्स फार दी टी। जरा जाना है एक सहेली से मिलने।
ओ के, बाय।
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