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  • kewal sethi

नीना - 1

एक कहानी और।

कई साल पहले लिखी थी जब मोबाईल नहीं थे। स्मार्ट फोन नहीं थे। अब इण्टरनैट ने मौका दिया है बताने का।

इसी का लाभ उठाया जा रहा है।

नीना


केवल कृष्ण सेठी


नीना सुंदर सुडौल हंसमुख लड़की थी। अभी-अभी शास्त्र विषय के साथ बी ए किया था। उस के बाद सैक्रीटिएट ट्रेनिंग भी ले ली थी। नौकरी की तलाश में उसे ज़्यादा भटकना नहीं पड़ा था। उस की शिक्षा ने और उस से भी बढ़कर उस के रूप में उसे पी ए के पद पर नियुक्त करा दिया था। उस का बास उस के कार्य से विशेष रूप से प्रसन्न था। सब कुछ सुघड़, सुचारू रूप से वह कर रही थी। उस का बास उस से पूर्व काम करने वाली निजी सहायक से काफी परेशान था। कई बार वह उस की गलतियों के, उस के भुलक्कड़पन, उस के गलत व्यवहार के किस्से सुना चुका था। और मुकाबले में उस की प्रशंसा के पुल बॉंध चुका था। इतने कि कभी कभी नीना, जो कि प्रशंसा की उतनी ही दीवानी थी जितना कि उस की स्थिति में, उस की आयु में कोई भी होता, भी शर्म महसूस करती थी। क्या वाकई ही वह उतनी ही अच्छी थी।

यही नहीं, कि उस का बास ही उस की कार्यकुशलता से प्रभावित था। दफतर के अन्य लोग भी वैसे ही उसकी तारीफ करते थे, विशेषतः अशोक। अशोक अभी हाल में ही एम बी ए क रके प्रोबेशनरी अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ था। आकर्षक व्यक्तित्व, बातचीत में निपुण। उस की प्रशंसा बीना के मुख पर लाज की लालिमा लाये बिना न रहती थी। वह नीना के कार्य से, नीना से प्रभावित था और नीना उस से। दोनों अब कभी कभी दफतर के बाद साथ साथ भी जाने लगे थे। चाय पर, होटल में बैठ कर, एक दूसरे का हाल जानने लगे थे। दफतर के लोग उन की बढ़ती हुई घनिष्टता को चर्चा का विषय बनाने लगे थे। बड़ी अच्छी जोड़ी है यह अधिकतर लोगों का विचार था। फंस रही है - यह कुछ अन्य जो अपने को समझदार समझते थे, सोच रहे थे। उन की नजर में अशोक ज़रूरत से ज्यादा होशियार, चुस्त व चालाक था। शायद यह उन के रकाबत की बात थी या उन की जलन की।

नीना, लैटर लेना लाल एंड संस के प्रबंध संचालक के नाम- माय डियर - तुम्हें नहीं कह रहा हूं - लिखो माय डियर सो एंड सो, प्लीज़ रैफर टू ........

ठीक, लिख लिया

यस सर

सॉरी, थोड़ा लंबा है और हां इसमें स्टेटमेंट भी साथ लगाना है। चड्ढा से लेकर टाईप कर लेना।

यस सर

सॉरी, थोड़ा समय लगे गा। साढ़े पा¡च बज जाए गे लेकिन क्या करूं, आज भेजना जरूरी है

कोई बात नही सर

तुम्हारी बस मिस हो जाएगी

कोई बात नहीं। मैं दूसरी ले लूं गी सर

ठीक है

लेकिन स्टेटमेंट वाकई ही लंबा था। 5;30 बजे तक भी पूरा नहीं हो पाया। अशोक पूछने भी आया कि कब चलना है लेकिन नीना इसे समाप्त करके ही जाने के मूड में थी। अशोक ने थोड़ी देर तक इंतजार किया और फिर चला गया। दफतर में केवल नीना तथा उस का बास रह गए।

6;30 बजे टाइपिंग समाप्त हुई। बास ने उसे देखा, परखा और सही पाया।

चलिये यह काम तो हो गया। उस ने इतमीनान की साॅंस लेते हुए कहा। फिर चैकीदार को आवाज देकर उसे कमरे बंद करने की हिदायत देते हुए वह नीचे आ गये।

देर हो रही है। अभी रश का समय है। चलो, मैं तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं। सड़क पर आते आते उस ने कहा।

नहीं सर, मैं चली जाऊंगी

अरे कौन रास्ते से ज्यादा बाहर है। आधा मील ही तो है। मुश्किल से दो चार मिनट लगें गे।

नतीजा यह हुआ कि कुछ समय बाद वह उस की कार में घर की तरफ जा रही थी


2

इधर उधर की बात करते हुए अचानक उसने कहा।

अरे मैं ने तुम्हें बताया था ना कि मेरी पत्नी तुमसे मिलने की बहुत इच्छुक है। कई बार तुम्हारी तारीफ कर चुका हूं ना। बड़ी मुश्किल से आजकल कोई अच्छा वर्कर मिलता है

जरुर मिलूंगी सर।

आज ही चला न। अभी रास्ते में ही है।

नहीं सर आज तो देर हो गई है। फिर आ जाऊंगी।

भई, हमें तो यह तुम्हारी आदत कभी नहीं लगी कि आज का काम कल पर डालो। ख्याल आ गया है। लगे हाथों इसे निपटा ही देना चाहिए। बस एक कप चाय। 10 मिनट ज्यादा ज्यादा। उस के बाद तो तुम जानो और वह।

बास में गाड़ी का रुख अपने घर की तरफ कर दिया था। वह अभी भी बातें किया जा रहा था। नीना तय न कर पा रही थी कि वह क्या करें। घर वाले उस के थोड़ा लेट आने की आदत से वाकिफ थे। इधर उधर किसी सहेली के यहां चली गई हो गी। कोई ऐसे इंतजार भी नहीं करता। अक्सर वह बाजार हो कर ही घर जाती थी। सामान खरीदने के लिए। फिर बास कह रहा है तो पाॅंच दस मिनट और सही। कुछ देर बैठ ले गी।

वह इसी उधेड़बुन में थी कि कार रुक गई। वे बास के मकान के पास आ गए थे। ऊॅंचा दस बारह मंज़िल का भवन था। पॉंचवें या छटे तल पर उस का अपार्टमेंट था। वह मुम्बई के उस इलाके में था जिसे पाश कहा जाता है। स्वचलित लिफ्ट पर वे ऊपर पहुंचे। एक अपार्टमेंट के सामने। । बास ने बैल बजाई। पर कोई उत्तर नहीं आया। थोड़ा इंतजार करने के बाद फिर बैल बजाई पर वही स्थिति।

लगता है कहीं चली गई हो गी आसपास। उस ने अपने जेब से चाभी निकालते हुए कहा। दरवाज़ा खोला।

आइए। गरीब खाने को नवाज़िये।

कमरा अच्छा सजा हुआ था। सोफा कुर्सी। खाने की मेज़, दो व्यक्तियों के लिए।

आइए बैठिए। क्या पियें गी आप। । बीयर? काफी गर्मी है या फिर कोल्ड ड्रिंक। या चाय?

कोल्ड ड्रिंक ही काफी रहेगी

माईण्ड मैं अगर मैं बीयर ले लूं ।

ओ नो।

थैंक्स

बास अन्दर रसोई में गया और थोड़ी देर में 1 मग में बियर और एक गिलास में थोड़ा कोल्ड ड्रिंक ले आया।

आई नहीं अभी तक। पता नहीं कहां चली गई है। फोन पर तो यही कहा था ठीक समय पहुंच जाएगी

इट इज़ ऑल राइट, कहते हुए नीना ने कोल्ड ड्रिंक उठा ली

कमल- बास - ने भी बीयर की चुस्की लेना शुरू की।

अचानक नीना को लगा उसका सर कुछ बोझिल सा हो रहा है। जैसे वह थक गई हो। उसे नींद आ रही हो।

अरे, यह मुझे क्या हो रहा है - वह घबराहट में बोली।

कुछ नहीं, कमल ने बियर पीते हुए कहा, सिर्फ नींद की गोली का असर।

क्या? हैरानी से बोली नीना।

हां, मुझे लग रहा था तुम थकी थकी सी हो। मैं ने थोड़ा आराम करने का इंतजाम कर दिया है। अन्दर बैडरूम की तरफ इशारा करते हुए उस ने कहा।

यू, यू, कहां है तुम्हारी पत्नी।

मेरी पत्नी। वह यहां नहीं है। वह यहां आने वाली भी नहीं है। यह मेरा निजी कक्ष है। । उसे तो इस का पता भी नहीं है। मैं भी कभी कभी ही यहाॅं आता हूॅ। कोई तुम सा सुंदर शिकार फंसता है तो, कमल ने हंसते हुए कहा।

तो यह सब धोखा है, बेईमानी है, धोखेबाज, मक्कार

देखो यह सब बातें बेकार हैं। तुम थकी हो। सो रही हो। ऐसे में प्रतिरोध मुश्किल होता है। बस यही मेरी सफलता का राज है। आओ आराम करें।

कहते हुए उस के पास आ गया और उस की कमर में हाथ डाल दिया। नीना ने उठना चाहा पर उस में उठने की हिम्मत नहीं थी। चिल्लाई पर शायद आवाज ही नहीं निकल सकी।


3

जब उसे होश आया तो लगा काफी समय बीत चुका है। वह अंदर के रुम में बिस्तर पर पड़ी थी। उस के कपड़े अस्त व्यस्त थे। एक चादर उसके शरीर पर थी। सामने कमल एक आराम कुर्सी पर बैठा सिगरेट पी रहा था।

उस को जागते देख कर कमल ने मुस्कुराते हुए कहा

जाग गईं आप। मैं कब से इंतज़ार कर रहा था। उठो, फिर तुम्हें घर छोड़ आऊॅं। मैंने कपड़े पहनाये नहीं। सोचा नहा-धोकर फ्रेश हो कर जाना अच्छा रहता है

नीना खोई खोई आंखों से उसे देख रही थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था यह सब क्या हो गया। कमल की बातों से उसे अपनी स्थिति का ध्यान आया। यह क्या हो गया, अब मैं किस को मुॅंह दिखाऊंगी। वह सिसकने लगी। साथ ही वह कमल गालियां भी सुना रही थी। गालियाॅं जो उसे पता भी नहीं था कि उसे आती हैं।

लेकिन कमल मुस्कुराता रहा।

देखो, जो होना था हो चुका। यकीन करो मैं इस का नाजायज फायदा नहीं उठाऊंगा। यहां रहने का तो इरादा नहीं है तुम्हारा। कपड़े पहन लो। शायद शर्म आ रही हो। जरुरत तो नहीं है पर खैर, मैं बाहर बैठा हूं।

यू यु रास्कल

ठीक है, ठीक है। मैं बाहर हूं। पर जल्दी करो। घर वाले राह देखते होंगे। लगभग 8 बज रहे हैं।

कमल बाहर निकल गया। नीना ने आस पास पड़े हुए कपड़ों को देखा और बुझे मन से पहनने लगी। अब उस का मस्तिष्क काम करने लगा था। यहां से, जाना है, जल्दी जाना है। इस का बदला लेना है। बेईमान बास भी याद रखें, ऐसा बदला। इंतकाम। उसे इसी के लिए ज़िंदा रहना है

कपड़े पहने। चेहरा देखा। याद आया कि घर जाना है। घर पर यह बात बता भी नहीं सकती। चेहरे को कुछ संवारा बाहर निकली।

कमल खिल उठा। तुम तो पहले से भी सुंदर लग रही हो मेरी जान। मजा आ जाए गा दोनों को। ऐसा करना आज तो तुम्हें देर हो रही है। कल आ जाना इसी समय। मैं इंतजार करूंगा।

यू ब्लडी इडियट। बेईमान ........ नीना ने गालियों की बौछार लगा दी।

बस बस, ज्यादा नहीं। मैं दरवाजा खोल रहा हूं। कोई सुन लेगा तो सारी बात मिट्टी में मिल जाएगी। चुप चाप निकल जाएं गे। कोई देख भी नहीं पायेगा। हमारी बात यहीं तक रह जाए गी।

कमल ने नीना को उस के मकान के पास वाले नुक्कड़ पर छोड़ दिया। जाते हुए कहा -

कल मिलेंगे। 6 बजे वहीं। अगर मुझे देर हो जाए तो इंतजार करना। एक चाबी पर्स में डाल दी है। हां तुम्हारा वेतन तो बढ़ाना ही हो गा। इस महीने से ढयोड़ा। बाई बाई, कल 6 बजे। और नहीं तो अशोक तक यह खबर पहुंच जाएगी। समझी्।


(आगे भी जारी)

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