नीना — भाग 7
9.
लाल साहब ने चंदा से पहले काम कर रही प्रभा के बारे में पता लगाया। वह सात आठ महीने कमल की स्टैनो रही थी। अब एक दूसरे कार्यालय में उसी पद पर थी।
उस के साथ बात चीत में लाल जी ने कत्ल से ही बात शुरू की।
उस ने बताया कि उसे कमल की बीवी ने कत्ल की गुत्थी सुलझाने का काम दिया है।
प्रभा ने इस पर आश्चर्य व्यक्त नहीं किया। बोली -
- हॉं, मुझे पता है कि पुलिस कातिल को पकड़ नहीं पाई। जो भी था, होशियार आदमी था।
- पर आप को इस कत्ल से हैरानी तो हुई हो गी।
- काहे की हैरानी। मेरा कोई ज़ाती मामला तो था नहीं। जो हुआ, अच्छा ही हुआ।
- यानि आप को अच्छा लगा।
- नहीं नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था। अच्छा हुआ कि मैं उस वक्त उन की स्टैनो नहीं थी।
- आप होती तो उस वक्त भी हो सकता था।
- क्यों नहीं?
- लगता है कि कत्ल से पहले काफी झगड़ा हुआ था। कमल क्या बहुत ताकत वाला था जो ऐसा हुआ।
- हॉं, था तो डील ढोल से अच्छा और चुस्त भी। एक से ज़्यादा आदमी होने चाहिये हमला करने वाले।
- पर उन्हें चाबी कहॉं से मिली हो गी जिस से वह घुस पाये।
- चाबी बनाने वाले तो कई मिल जाते हैं। किसी से बनवा ली हो गी।
- वैसे आप को कमल साहब कैसे लगे।
- मतलब?
- यानि काम में होशियार थे। काम कम अधिक होता रहता था पर उस से घबराते थे कि नहीं। उस के पास ज़्यादा काम होता तो आप को भी बैठना पड़ता था।
- वह सब तो होता ही है।
- और काम अधिक होने से आप ने वह जगह छोड़ दी।
- नहीं, दूसरी जगह मिल गई थी, इस कारण।
- आप कभी कमल की बीवी से मिली क्या।
- जी नहीं।
- पर उस ने उन के बारे में कभी बताया तो हो गा।
- हो सकता है पर मुझे कोई ऐसी बात याद नहीं है।
इस मुलाकात से एक बात सिद्ध हुई। स्टैनों कुछ समय बाद नौकरी छोड़ देती थीं। क्यों? प्रभा की पहली प्र्रतिक्रिया कत्ल की बात करने पर थी - अच्छा हुआ। इस का क्या अर्थ है। बाद में वह सम्भल गई पर पहली प्रतिक्रिया वैसी क्यों थी।
किसी भी स्टैनों ने बीवी को जानने से इंकार किया था। क्या वास्तव में कमल इस बारे में खामोश रहता था। पुलिस ने केवल कागज़ात की बात की थी। पर अभी तक कोई कागज़ की बात सामने नहीं आई थी। इस का मतलब है कि या तो कागज़ मिला नहीं था या अब किसी काम का नहीं था। काम के बारे में न तो उस के प्रबन्ध संचालक को कोई शिकायत थी न ही दफतर में काम करने वाले ने उस के बारे में कुछ बात की थी।
ले दे कर बात स्टैनो पर ही आती थी। वे जल्दी जल्दी क्यों बदलती थीं। उस ने देखा कि स्टैनों का तर्क था कि उन्हें दूसरे स्थान पर काम मिल गया। पर चंदा को कुछ समय बाद में मिला था। प्रभा को मिला तो जल्दी था पर काफी दूरी पर था। वेतन में भी खास फर्क नहीं था। फिर ऐसा क्यों होता था। वहीं कुछ राज़ था। इसी को केन्द्र बिन्दु मान कर आगे बढ़ना हो गा।
10
एक बार फिर उस ने अभी काम कर रही नीना के बारे में सोचना शुरू किया। उस के उत्तर स्पष्ट थे। वह शाम को अपने साथी कार्यकर्ता के साथ नाटक देखने गई थी। उस के बाद लोकल से घर आई थी। उस का साथी साथ था कि नहीं। अशोक का कहना था कि वह भी उसी लोकल में था पर पहले ही उतर गया था। उस ने बताया था कि उसे नीना के घर का पता भी ठीक से नहीं मालूम। नीना को उस के घर का पता नहीं। क्या यह पहली बर उस के साथ गई थी। उन्हों ने उस शाम को पास के होटल में चाय पी थी, यह होटल वालों ने भी कहा था। उस के बाद वे वहॉं से चले गये। समय का ध्यान किसी को भी नहीं था।
लाल जी ने एक बार फिर कामिनी से बात करने की सोची। शायद उस से नई बात पता चले। कामिनी तंग आ चुकी थी बात करते करते। पुलिस वाले पूछ ताछ करते रहे कई बार। थाने भी बुलाया। उस ने साफ इंकार कर दिया लाल जी से बात करने से। वह पहले ही पुलिस को सब बता चुकी थी। पर जब लाल जी ने कहा कि इस बार वह उसे बात करने के लिये पैसे भी दे गा तो वह तैयार हो गई।
लाल जी इधर उधर की बात करने के बाद मृद्दे पर आये।
उन्हों ने पूछा कि क्या कभी ऐसी कोई चीज़ उसे सफाई में मिली जिस की उम्मीद नहीं थी। शराब की बोतल, गिलास, नमकीन वगैरा तो मिलते ही थे पर इस के इलावा। पर कोई रुमाल, कोई कार्ड, कोई ऐसी वस्तु जो वहॉं नहीं होना चाहिये थी।
बहुत सोचने और कुरेदे जाने के बाद कामिनी ने बताया कि चार एक महीने पहले चूड़ियों के टुकड़े मिले थे। पर कब यह याद नही। पर काफी समय पहले की बात है। कत्ल के भी कई महीने पूर्व। उस से अधिक वह कुछ बता नहीं पाई। अपने पैसे ले कर वह कह गई कि फिर कुछ पूछना हो तो वह तैयार है। कामिनी को उम्मीद नहीं थी कि जानकारी देने पर भुगतान भी हो सकता है।
अब लाल जी को यकीन हो गया कि कोई औरत तो इस में शामिल है। और वह कौन हो सकती है, इस में पहला शक स्टैनो पर ही गया। क्या बीवी को अनजान रख कर किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध बनाये गये थे। पर वह भी रैगुलर नहीं, कभी कभी। ताकि किसी शक की गुंजाईश न हो। न बीवी को न आस पास के पड़ौसियों को।
पर कोई औरत प्रकरण में सामने नहीं आई थी। किसी ने मकान पर या अन्य किसी चीज़ पर अपना हक नहीं जताया था। अगर सामान्य सम्बन्ध होते तो उस के बदले में कुछ न कुछ तो दिया ही होता। या फिर किराये की औरत। कुछ दिनों के लिये। यह भी सम्भवना थी।
हो गा पर उस का कत्ल से क्या ताल्लुक। वह क्यों ऐसा काम करे गी। हॉं, यह हो सकता है कि आकर्षण समाप्त होने पर दूर करने का प्रयास किया हो और उस से उत्पन्न नाराज़ी में किराये पर आदमी लिये हों। चाबी भी उस के पास हो गी और प्रवेश भी आसानी से हो सके गा। उस के वहॉं पर होने की ज़रूरत भी नहीं हो गी। पर किराये पर आदमी लिया हो गा तो उस का भुगतान भी करना हो गा। किसी स्टैनों की यह हैसियत नहीं लगी कि वह इतनी राशि दे सके गी। यह काम सस्ते में तो कोई करे गा नहीं। आखिर जोखिम तो हैं ही। कोई बाहरी औरत भी हो सकती है।
इन्हीं विचारों में लाल जी खोये रहे।
उन्हों ने सोचा कि जिन बदमाशों से उन का वास्ता पड़ा है, उन्हीं से बात की जाये। चोरों में इस तरह की बात छुपती तो नहीं है। इधर उधर बात फैल ही जाती है। पुलिस को न बतायें पर जानते तो सभी बदमाश हैं।
11.
एकाध पुराने अपराधी ऐसे थे जिन की मदद लाल जी ने की थी ताकि असली मुजरिम पकड़ा जा सके। इस के बाद वे उस के सहयोगी बन जाते थे और अगर पूछा जाये तो वह मदद भी करते थे। पुलिस वाले भी इसी तरह से अपने मुखबिर बनाते हैं। अपने इलाके में जुर्म न हो पर दूसरे करें तो बता दें। लाल जी का भी वही तरीका था, बस उस का कोई खास इलाका नहीं था। सिर्फ मदद का वायदा था कि पुलिस परेशान न करे अगर कोई जुर्म पर उन पर शक हो।
तो उन्हों ने अपने सहयोगियो से यह बात की तथा कमल को फोटो भी उन्हें दिया कि इस के बारे में कोई जानकारी हो तो बतायें। कई दिन बल्कि महीने बीत गये पर कोई जानकारी नहीं मिल पाई। यह हैरानी की बात थी कयोंकि सामान्यतः बदमाषों में बात फैल जाती है। षायद इस कारण हो कि इस में लूट शामिल नहीं थीं। किसी के पास अचानक पैसा आ जाये या कोई कीमती वस्तु बेचने की हो तो पता चल ही जाता है। सब एक दूसरे पर नज़र रखते हैं। यहॉं शायद ऐसा नहीं था।
पर आखिर एक दिन एक व्यक्ति ने बताया कि वह किसी अन्य काम से नगर के एक फोटोग्राफर के पास गया था। संयोगवश उस के पास फोटो थी और वह उस ने फोटोग्राफर को दिखाई तो उस ने चेहरे की पहचान की हैं। उस ने बताया कि यह उस के पास फोटो डैव्हलप करने आता था। पर उस ने उस का नाम कमल न हो कर सुमित बताया था। सुमित के नाम पर लाल साहब को हैरानी हुई। मकान सुमित के नाम पर था। आखिर सुमित मिल गया जिस की इतनी तलाष की गई थी। कमल की फोटो से ही उस फोटोग्राफर ने सुमित का नाम लिया। अब गाड़ी आगे बढ़ सकती है। लाल साहब ने फोटोग्राफर से मिलने का निर्णय लिया।
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