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नीना — भाग 6

नीना — भाग 6

5.

पुलिस तो चुप हो कर बैठ गई पर एक व्यक्ति को इस से संतोष नहीं हुआ। आखिर वह कौन सा राज़ था जिस कारण कमल को एक ऐसा घर लेना पड़ा जिस को उस के सिवा कोई नहीं जानता था। आखिर उस घर में होता क्या था। साफ सुथरा रखने के लिये काम वाली बाई भी रखी थी। उस की पगार भी नियमपूर्वक मिल रही थी जिस का मतलब था कि वह उस घर में आता जाता रहता था। पर कोई पड़ौसी उसे न देख पाता था न वह किसी से बात करता था। नशे वाली कोई वस्तु नहीं मिली थी यद्यपि पुलिस ने पूरा घर छान मारा था।

तो फिर राज़ क्या था और ऐसा राज़ जिस के कारण उसे मौत का शिकार होना पड़ा। कोई तो हो गा जो इस राज़ को जानता हो गा। उस का पता कैसे लगाया जाये। कमरे की हालत से पता चलता था कि तलाशी ली गई थी। शायद पुलिस का निर्णय सही हो कि लूट का मामला था परन्तु शक तो फिर भी रह गया।

आखिर कमल की बीवी ने फैसला किया कि किसी जासूस को मामले की तह तक जाने को कहा जाये। इस के लिये उन्हों ने चुना लाल साहब को। नाम तो उस का खैराती लाल था पर मशहूर वह लाल साहब के नाम से ही था।

लाल साहब कभी पुलिय महकमे में थे। सब इंस्पैक्टर के पर पर भर्ती हुये थे। पर उन में काबलियत थी और वह मुजरिम को पकड़ने में महारत का सबूत दे रहा था। विभाग ने उस की इस विशेषता को देखते हुये उसे सी आई डी में भेज दिया। वह दस साल तक उस में रहा पर यद्यपि उसे कई बार सराहा गया।? ईनाम भी दिया गया पर पदोन्नति नहीं दी गई। इस से परेशान हो कर उस ने तयागपत्र दे दिया ओर अपनी खुफिया एजैन्सी खोल ली। पुलिस विभाग अब भी उसे की मदद लेता था पर ग्राहक के तौर पर, मालिक के तौर पर नहीं। काम अच्छा हो तो प्रसिद्धि मिल ही जाता है। इस दिशा में उस का भी नाम हो गया। और इसी कारण कमल की बीवी ने भी उसे ही चुना।


6.

अखबारों से तो लाल साहब को केस के बारे में कुछ जानकारी थी। उसे पता था कि पुलिस कुछ खास कर नहीं पाई है। पर कमल की बीवी क्या चाहती है, यह उसे पता नहीं था। जब वह उस से मिला तो उस का पहला सवाल यही था।

कमल की बीवी को दो तीन बातों पर समझ नहीं आ रही थी। समय बीत जाने से पति के मरने का जो गम था वह अब कम हो गया था और जीवन सामान्य था। उस की अपनी मसरूफित थी और वह उस में रत थी। पर उस के प्रश्न सीधे थे -

1. मकान सुमित के नाम था। यह सुमित कौन था।

2. मकान सुमित का था तो कमल वहॉं क्या कर रहा था।

3. सुमित नाम के किसी व्यक्ति ने उस मकान पर अपना दावा पेश नहीं किया था। उस के बारे में बड़े समाचारपत्रों में विज्ञापन दिया गया पर किसी का कोई दावा नहीं आया।

4. पुलिस भी सुमित को डूॅंढ नहीं पाई थी। वास्तव में उस की कोई फोटो भी नहीं थी।

5. कत्ल के रोज़ एक से अधिक लोगों ने शराब पी थी। पर ग्लासों पर किसी के फिंगर प्रिण्ट नहीं थे। कमल के भी नहीं। तो और कौन था जिस ने शराब पी।

बस ऐसे ही विचार कमल की बीवी ने व्यक्त किये।

यह भी कहा कि इस में पैसे की कोई तंगी नहीं है। लाल साहब को उचित मुआवज़ा मिले गा। और समय की भी कोई सीमा नहीं है। बस पूरी बात पता चलना चाहिये।


7.

लाल जी ने पहले पूरी जानकारी लेने के लिये तफतीश करने वाले अधिकारी से बात की। पुलिस का विचार था कि ऐसा लगता है कि कुछ व्यक्ति किसी खास चीज़ की तलाश में थे। इस कारण कमरे की तलाशी ले रहे थे। इस बीच कमल भी वहॉं पर आ गया। जब उस ने उन को चुनौती दी तो आपस में धक्का मुक्की हुई और इसी के बीच चाकू का वार किया गया। शायद उन का इरादा कत्ल का नहीं था, केवल लूटने का था। कमल की जेब में काफी पैसे थे पर वह वैसे ही रह गये। इसी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इरादा केवल किसी दस्तावेज़ को पाने के बारे में था। हो सकता है किसी ने इस के लिये किराये पर आदमी लिये हों। घर की एक चाबी काम वाली के पास थी। उस पर नज़र रखी गई लेकिन उस के चाल चलन में कोई कमी नहीं पाई गई। दूसरे घर वालों ने भी उसे ईमानदार और सीधी सादी बताया।

कमल का कोई विरोधी हो, यह पता नहीं चलता। घर के कागज़ तो कमल के लाकर में मिल गये थे। उस से भी कोई संकेत नहीं मिला सिवाये इस के कि मकान किसी सुमित के नाम पर था। उस की बीवी का बैंक अलग था और एक अकाउण्ट दोनों का सम्मिलित था पर इस में कोई खास बात नही थी। इस सब से कोई बात न बनते देख तफतीश को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया था।


8.

जब तक लाल साहब तक मामला आया तब तक कई महीने बीत चुके थे। मौके के निरीक्षण का कोई मतलब नहीं था। जो पुलिस ने रिकार्ड किया वही ही उपलब्ध जानकारी थी। इस सब में रहस्यमय व्यक्ति कमल ही था। उसी को केन्द्र बिन्दु मान कर लाल साहब ने विचार किया।

दफतर के सभी लोगों से पूछ ताछ हो चुकी थी और उस से कोई सुराग नहीं मिल पाया था। पर लाल साहब ने सोचा कि इस बारे में एक से सवाल जवाब नहीं हुये थे। उस ने उसी से आरम्भ किया। चौकीदार राम लाल की डयूटी दफतर बन्द होने के समय से दफतर खुलने तक होती थी। क्या उस ने कोई खास बात देखी। पता चला कि कमल किसी किसी दिन देर तक काम करते थे। बाकी सब लोग तो अपने समय से चले जाते थे पर स्टैनो रह जाती थी। उस दिन कमल साहब उसे अपनी कार में उस के घर तक छोड़ आते थे।

इस बात की ताईद कमरा बन्द करने वाले व्यक्ति ने भी की। उस की डयूटी सब के जाने के बाद दरवाज़े बन्द करने की थी। उस के बाद ही वह रात के चौकीदार को बता कर घर जाता था। यदि किसी दिन चौकीदार को आने में देर हो जाये तो वह उस का इंतज़ार करता था।

ज़ाहिर है कि अगली बातचीत स्टैनो से की जाये। स्टैनो नीना से बात करने पर उस ने पूर्व की बात दौहराई। अभी उसे अधिक समय नहीं हुआ था आये हुये। लेट बैठने के सम्बन्ध में उस ने बताया कि ऐसा एकाध बार हुआ था और कमल साहब ने उसे घर के पास छोड़ दिया था और वह अपने घर तक पैदल चली गई थी। जिस दिन कत्ल हुआ, उस दिन ऐसा नहीं हुआ था। वह समय से ही दफतर से निकली थी क्योकि कमल साहब प्रबंध संचालक के साथ बैठक में चले गये थे। अगले दिन वह अपने समय पर दफतर आई। कमल नहीं आया तो उसे कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि अक्सर ऐसा हो जाता था।

बात तो बात थी पर लाल साहब को लगा कि नीना के जवाब ऐसे दिेये गये थे जैसे वह इस के लिये तैयार हो। लाल साहब तो धीरे धीरे अपनी बात कहते थे पर नीना के जवाब सीधे और सटीक होते थे। उस में बात चीत जैसी भावना नहीं थी। शायद इस कारण कि पुलिस ने भी कई बार ऐसा पूछा हो गा और उस के जवाब रट गये हों गे। उन में सहजता नहीं थी। और न ही इस की उम्मीद की जा सकती थी। पुलिस की पूछ ताछ के बाद ऐसा ही होता था।

लाल जी को एक बात और पता चली। कमल के स्टैनों जल्दी जल्दी बदल जाते थे। नीना का आये हुये चार छह महीने से भी कम समय हुआ था। कत्ल के समय शायद दो चार महीने ही हुए हों। इस बीच शायद एकाध बार ही विलम्ब से बैठने की बात हो। यह रोज़मर्रा का किस्सा तो नहीं था। इस लिये यह बेहतर हो गा कि किसी पुरानी स्टैनों से भी बात की जाये कि उस का कमल के बारे में क्या विचार थे। पता करने पर डेढ़ साल के भीतर नीना को मिला कर तीन स्टैनो के होने का पता चला।

पहली स्टैनों जिस से लाल जी बात कर पाये चन्दा थी। गौर गम्भीर चन्दा। उस ने बताया कि वह चार महीने तक कमल के यहॉं पर स्टैनो थी।

- कैसे थे आप के वह बॉस।

- बस थे। अच्छे ही थे।

- काम बहुत ज़्यादा था क्या जो आप ने चार महीने में ही छोड़ दिया। कहीं दूसरी जगह मिल गई क्या।

- क्वालीफाईड हूॅं तो जगह तो मिल ही जानी थी।

- पर छोड़ने से पहले नहीें मिली।

- बातचीत तो चल रही थी।

- यानि आप खुश नहीं थीं और दूसरी जगह तलाश रही थीं।

- ऐसा ही समझ लीजिये।

- खुश क्यों नहीं थीं। क्या वेतन कम था। या फिर काम अधिक था।

- यही समझ लीजिये।

- कोई बॉस से अनबन हो गई हो।

- नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं था। पर आप यह सब क्यों पूछ रहे हैे।

- तुम्हें पता है कि कमल की हत्या कर दी गई है।

- हॉं, मैं ने अखबार में पढ़ा था। पर पुलिस ने मामला सम्भाल लिया है। कुछ तो पता लगाया ही हो गा।

- नहीं, वह पता नहीं लगा पाये और हाथ पैर धर कर बैठ गये।

- पर आप नहीं बैठे। आप की क्या भूमिका है इस में।

- मुझे उन की पत्नि ने सही वजह पता करने के लिये कार्य सौंपा है।

- और वह वजह आप मुझ से जानना चाहते हैं

- अगर पता हो तों

- मुझे कैसे पता हो सकता है।

- क्योंकि आप कमल को जानती थीं। उन के साथ काम किया है। वैसे सब लोग बताते हैं कि वह बहुत शरीफ आदमी थे।

- शरीफ! हों गे। सब कहते हैं तो हों गे ही।

- पर आप नहीं कहतीं।

- मेरे कहने न कहने से क्या हो गा। सब तो कहते हैं। अच्छा अब मुझे ज़रा जाना है। और कुछ पूछना हो तो ज़रूर आईये गा।

यह कहते हुये चंदा उठ गईं। लाल जी ने नोट किया कि चन्दा ने कमल को शरीफ नहीं कहा था। क्यों नहीं कहा था। उस को क्यों इस में हिचकचाहट थी।

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