top of page

नया वर्ष

  • kewal sethi
  • Jul 22, 2020
  • 1 min read

नया वर्ष


वैसे तो यह कविता वर्ष बानवे के लिये लिखी गई थी पर आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। देखिये।


हाँ साल बानवे भी चला गया

जाना ही था

कौन सदा रह पाया है

कौन सदा रह पाये गा

आने वाला इक रोज़ तो जाये गा

लेकिन उस के जाने पर यह खुशी का इज़हार क्यों

कर्फ्यू के साये में पटाखे छोड़ने पर इसरार क्यों

साल बानवे ने तो कुछ किया नहीं

उस ने किसी से कुछ लिया नहीं

न उस ने किसी की पीठ में छुरा घोंपा

न किसी का घर आग में झोंका

न किसी को दी उस ने सज़ा

न किसी को इनाम से नवाज़ा

हर शख्स अपने ही अम्माल से उठा

हर व्यक्ति अपने कर्मो का ही फल भोगता

वर्ष को कोई भी जि़म्मेदारी देना फ़ज़ूल है

अपने मन में झाँकना ही सच्चा असूल है


साल त्रियानवे की आमद पर देता हूँ यह दुआ

अपने आप से गुफ्तगू का मिले आप को मौका

वरना साल क्या सदियाँ जायें गी गुज़र

पहचान सके गा खुद को कोई बशर


(1.1.93)

Recent Posts

See All
दिल्ली की दलदल

दिल्ली की दलदल बहुत दिन से बेकरारी थी कब हो गे चुनाव दिल्ली में इंतज़ार लगाये बैठे थे सब दलों के नेता दिल्ली में कुछ दल इतने उतवाले थे चुन...

 
 
 
अदालती जॉंच

अदालती जॉंच आईयेे सुनिये एक वक्त की कहानी चिरनवीन है गो है यह काफी पुरानी किसी शहर में लोग सरकार से नारज़ हो गये वजह जो भी रही हो आमादा...

 
 
 
the agenda is clear as a day

just when i said rahul has matured, he made the statement "the fight is about whether a sikh is going to be allowed to wear his turban in...

 
 
 

Comments


bottom of page