top of page
  • kewal sethi

धारा १०९

धारा १०९


अजनबी शहर के अजनबी रास्ते

तन्हाईयों पर मेरी मुस्कराते रहे

मैं बहुत देर तक यूंही चलता रहा

तुम बहुत देर तक याद आते रहे


आखिर थक कर मैं लौट चला

तुम फिर भी मुझे बुलाते रहे

ख्यालों में तेरे मैं खोया हुआ न देख सका

दो पुलिस के सिपाही मुझे बुलाते रहे

पकड़ कर ले गये थाने, रात भर बिठाया

मजिस्ट्रेट के सामने सुबह पेश करवाया

था गवाह न वहां कोई भी बेजुज़ खुदा

पुलिस ने दो गवाह बना ही लिये

झूटे पाये गए मेरे वह सारे ब्यान

जो कभी मुझ से बुलवाये ही न गए

लुकता छिपता मैं पाया गया कह कर

एक सौ नौ का चालान कर ही दिया

और एस डी एम भी न कर सका कुछ

हवालात मुझे उस ने भिजवा ही दिया

चार माह तक मुकद्दमा वह चलता रहा

पुलिस कोई गवाह ला ही न सकी

था बहुत कमज़ोर दिल मैं इंसान

मुझे यह चीज़ रास आ न सकी

थक गया मैं बहुत ही देख कर

पुलिस वालों की इतनी परेशानी

मान लिया मैं ने अपना वह गुनाह

जो मैं ने क्भी किया ही न था

चार माह जेल में काट ही चुका था

मिली मुझे एक माह की और सज़ा

पांच माह के लिये तेरा हिजर

दामन पर मेरे दाग लगा ही गया

और फिर पहुॅंच गया इक नये शहर

तुम याद मुझ को आती ही रहीं

पर मैं घूम सका न उन नये रास्तों पर

पुलिस हर चौक पर नज़र आती रही

(कटनी - अप्रैल 1967

एक मशहूर कविता की लय को आधार मान कर यह प्रशासनिक कविता लिखी गई। )

1 view

Recent Posts

See All

महापर्व

महापर्व दोस्त बाले आज का दिन सुहाना है बड़ा स्कून है आज न अखबार में गाली न नफरत का मज़मून है। लाउड स्पीकर की ककर्ष ध्वनि भी आज मौन है।...

पश्चाताप

पश्चाताप चाह नहीं घूस लेने की पर कोई दे जाये तो क्या करूॅं बताओं घर आई लक्ष्मी का निरादर भी किस तरह करूॅं नहीं है मन में मेरे खोट...

प्रजातन्त्र की यात्रा

प्रजातन्त्र की यात्रा यात्रा ही है नाम जीवन का हर जन के साथ है चलना विराम कहॉं है जीवन में हर क्षण नई स्थिति में बदलना प्रजातन्त्र भी...

Kommentare


bottom of page