top of page
  • kewal sethi

दिल आज फिर

दिल आज फिर


दिल आज फिर गमगीन है कोई नगमा गाईये

है तकाज़ा यह हाल का फिर कोई जाम उठाईये

मुद्दतें हुई हैं हम से बहारों को जुदा हुए

कब तक याद की लाशों को गले लगाईये

बुझ चुकी है आग सिर्फ राख है अब बाकी

क्यों मार मार कर फूंकें दिल अपना जलाईये

याद रह रह कर तड़पा जाती है गुज़रे दौर की

भूलता नहीं है वह ज़माना, चाहे कितना भुलाईये

अब शहरे खामोशां ही है हमारी किस्मत में

क्यों छेड़ कर कोर्इ साज़ इन्हें आज सताईये

बैठा हूं मैं तो तुम्हारे ही इंतज़ार में ए रकीब

अब आप ही आ कर दिल इन का बहलाईये

टूट जाता है दिल, पड़ती है जब भी चोट कोई

शीशों से नाज़ुक है यह, क्यों इन्हें आज़माईये

रुक गई है इक मोड़ पर आ के रफ़्तारे जि़ंदगी

अब आप ही इस को नई मंजि़ल दिखाईये

औरों का दिल क्या बहलाओ गे आज तुम कक्कू कवि

कर के कोशिश अपनी यह मन्हूसियत तो मिटाईये

(रेल गाड़ी - फरवरी 1986)


2 views

Recent Posts

See All

आज़ादी की तीसरी जंग (18 अप्रैल 2023) बूढे भारत में फिर से आई नई जवानी थी दूर फिरंगी को करने की सब ने ठानी थी। थे इस आज़ादी की लड़ाई में कई सिपहसलार सब की अपनी फौज थी, और अपनी सरकार अपने अपने इलाके थे, उन

याद भस्मासुर की मित्रवर पर सकट भारी, बना कुछ ऐसा योग जेल जाना पड़े] ऐसा लगाता था उन्हें संयोग कौन सफल राजनेता कब जेलों से डरता हैं हर जेल यात्रा से वह एक सीढ़ी चढ़ता है। लेकिन यह नया फैसला तो है बहुत अजी

लंगड़ का मरना (श्री लाल शुक्ल ने एक उपन्यास लिखा था -राग दरबारी। इस में एक पात्र था लंगड़। एक गरीब किसान जिस ने तहसील कार्यालय में नकल का आवेदन लगाया था। रिश्वत न देने के कारण नकल नहीं मिली, बस पेशियाँ

bottom of page