दुलहन
नई नवेली दुलहन सुसराल में आई
पिया की दुलारी सब के मन को भाई
होशियार थी, समझदार थी, नेक थी
हज़ारों नहीं लाखों में वह एक थी
मानो केटरिंग की तो वह बी ए थी
डैकोरेटिंग की भी उस के पास डिग्री थी
सारे घर को वह लगी संवारने सजाने
पुरानी बातों को छोड़ नई चीज़ें लगी लाने
जेठ जी के कमरे में था जो गुलदस्ता
जिस से वह कई सालों से थे वाबस्ता
खिड़की के पास उन्हों ने उसे लगा रखा था
हर रोज़ बदलते पानी, सुन्दर सा बना रखा था
एक दिन बहु ने उठा कर कोने में दिया लगा
लिहाज़ कर कुछ न बोले कहें बहु से क्या
पर चुभती थी उन के दिल में सदा यह बात
जहाँ था अच्छा था जगह बदलने का था क्या राज़
एक दिन फिर उसे खिड़की के पास लगा दिया
बहुरानी ने पूरा घर चीखोंपुकार से हिला दिया
बोली मेंरा तो यहाँ पर होता नहीं अब गुज़र
मैं चली मायके आराम से रहे हर बशर
सुन कर उस की बातें कक्का भी रह गये हैरान
और पता नहीं क्यों चला गया वी पी की ओर ध्यान
देवी लाल ने भी बस अपना बंगला सजाया था
मनपसंद चीज़ को मनपसंद जगह पर लगाया था
इस में ज़रूरत कहाँ थी इतनी चीखोपुकार की
देना इस तरह मैके की धमकी बेकार थी
पर यह मानना पड़े गा कि असर हुआ पुरज़ोर
सब मनाने लगे बहु को अपना काम छोड़
नई बहु का मैके जाने में सब का नुकसान था
विदेशी बहु के हाथ का खाने का पूरा इमकान था
गरज़ सब ने मिल कर बहु को मना लिया
जैठ जी ने अपना गुलदस्ता पुनः हटा लिया
(नागपुर 1990 - बार बार वी पी सिंह प्रधान मंत्री त्यागपत्र देने की धमकी देते थे, उसी के संदर्भ में यह कविता लिखी गई। देवी लाल के बंगले को ले कर काफी शोरो गुल हुआ था। सम्भवतः हुआ यह था कि उन्हों ने अपने बंगले में भैंसे पाल ली थीं तथा बंगले को उस माफिक ढाल रहे थे।)
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