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दोस्त

kewal sethi

दोस्त

वह अपनी धुन में चला रहा था, कुछ गुणगुणाते हुये।

तभी एक लड़की , जो थोड़ा आगे चल रही थी, ने उसे सम्बोधित किया।

- आप मुझ से बात कर रहे थे।

- नहीं तो

- तो मेरा नाम आप ने क्यों लिया था

- क्या आप का नाम शॉंता है।

- हॉं

- तभी। मैं तो वह मन्त्र पढ़ रहा था। ओम शॉंताकारम भुजंगशयनम

- सारी। पर मैं ने सोचा। वैसे मैं आप को जानती हूूं।

- मुझे? कैसे?

- आप आर टी ओ आफिस में काम करते हो न।

- हॉं

- आप राकेश हैं न।

- हॉं

- मैं वहॉं एक बार आई थी वहॉं, अपने चाचा जी के साथ।

- अच्छा फिर?

- वह आप की बहुत तारीफ कर रहे थे। ?

- क्यों?

- कोई काम था उन का जो तुम ने बड़े सलीके से कर दिया। दूसरी जगह उठ कर गये, फार्म् लाये।

- अरे वाह!

- वह कहते कभी किसी ने इस तरह नहीं किया।

- चलिये एक आदमी तो खुश हो कर गया। नहीं तो लोग कोसते हुये ही निकलते हैं।

- मुझे भी एक काम है आर टी ओ आफिस में। लाईसेन्स बनवाना है।

- उस के लिये अठारह साल का होना ज़रूरी है।

- वह तो मैं दो साल पहले ही हो वुकी हूॅं।

- बड़ी जल्दी आप ने अपनी उम्र बता दी। भला ऐसे भी कोई करता है।

- नहीं बताना चाहिये थी। तो क्या कहती?

- बस अठारह की होने ववाली हूॅं।

- और आप मान जाते। फिर लाईसेन्स कैसे बनता।

- सवाल मेरा नहीं है। मानना तो कानून को है।

- तो मैं आफिस आ जाऊॅं।

- नहीं

— नहीं?

- आजकल लाईसेन्स आन लाईन बनता है। दफतर आना ज़रूरी नहीं हैं।

- पर मुझे कम्प्यूटर आता नहीं है। मेरे पास है भी नहीं।

- किसी कम्प्यूटर शाप पर जायें गे तो मिल जाये गा।

- पर उन को आता हो गा

- यह तो वहीं पता लगे गा। खैर एक तरीका है

- क्या?

- आप मेरा नाम जानती है, काम जानती है, मकान भी जानती हो गी। आप आ जाना, मैं करवा दूॅं गा।

- मैं कैसे आप के घर आ सकती हूॅं।

- क्यों? क्या दोस्त दोस्त के घर नहीं जा सकता।

- पर हम दोस्त कहॉं हैं। मैं तो आप को जानती भी नहीं।

- नहीं हैं तो अब बन जाते हैं। एक दूसरे को जान लेते हैं

- कैसे

- मेरा नाम राकेश है और तुम्हारा?

-शॉंता

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