दोस्त
वह अपनी धुन में चला रहा था, कुछ गुणगुणाते हुये।
तभी एक लड़की , जो थोड़ा आगे चल रही थी, ने उसे सम्बोधित किया।
- आप मुझ से बात कर रहे थे।
- नहीं तो
- तो मेरा नाम आप ने क्यों लिया था
- क्या आप का नाम शॉंता है।
- हॉं
- तभी। मैं तो वह मन्त्र पढ़ रहा था। ओम शॉंताकारम भुजंगशयनम
- सारी। पर मैं ने सोचा। वैसे मैं आप को जानती हूूं।
- मुझे? कैसे?
- आप आर टी ओ आफिस में काम करते हो न।
- हॉं
- आप राकेश हैं न।
- हॉं
- मैं वहॉं एक बार आई थी वहॉं, अपने चाचा जी के साथ।
- अच्छा फिर?
- वह आप की बहुत तारीफ कर रहे थे। ?
- क्यों?
- कोई काम था उन का जो तुम ने बड़े सलीके से कर दिया। दूसरी जगह उठ कर गये, फार्म् लाये।
- अरे वाह!
- वह कहते कभी किसी ने इस तरह नहीं किया।
- चलिये एक आदमी तो खुश हो कर गया। नहीं तो लोग कोसते हुये ही निकलते हैं।
- मुझे भी एक काम है आर टी ओ आफिस में। लाईसेन्स बनवाना है।
- उस के लिये अठारह साल का होना ज़रूरी है।
- वह तो मैं दो साल पहले ही हो वुकी हूॅं।
- बड़ी जल्दी आप ने अपनी उम्र बता दी। भला ऐसे भी कोई करता है।
- नहीं बताना चाहिये थी। तो क्या कहती?
- बस अठारह की होने ववाली हूॅं।
- और आप मान जाते। फिर लाईसेन्स कैसे बनता।
- सवाल मेरा नहीं है। मानना तो कानून को है।
- तो मैं आफिस आ जाऊॅं।
- नहीं
— नहीं?
- आजकल लाईसेन्स आन लाईन बनता है। दफतर आना ज़रूरी नहीं हैं।
- पर मुझे कम्प्यूटर आता नहीं है। मेरे पास है भी नहीं।
- किसी कम्प्यूटर शाप पर जायें गे तो मिल जाये गा।
- पर उन को आता हो गा
- यह तो वहीं पता लगे गा। खैर एक तरीका है
- क्या?
- आप मेरा नाम जानती है, काम जानती है, मकान भी जानती हो गी। आप आ जाना, मैं करवा दूॅं गा।
- मैं कैसे आप के घर आ सकती हूॅं।
- क्यों? क्या दोस्त दोस्त के घर नहीं जा सकता।
- पर हम दोस्त कहॉं हैं। मैं तो आप को जानती भी नहीं।
- नहीं हैं तो अब बन जाते हैं। एक दूसरे को जान लेते हैं
- कैसे
- मेरा नाम राकेश है और तुम्हारा?
-शॉंता
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