दोष किस का
वह अपनी चाल से मोपैड पर दफतर जा रहा था। समय बहुत था और पहुॅंचने की जल्दी न थी। तभी उस ने महसूस किया कि एक लड़का साईकल पर बिल्कुल उस के साथ चल रहा है। उस ने अपनी गति थोड़ी बढ़ाई तो लड़का भी तेज़ी से पैडल मारने लगा। हो गा वह सत्रह अठारह साल का। लगा जैसे वह कोई मुकाबला कर रहा है। कौन आगे निकलता है।
उस ने गति थोड़ी बढ़ाई तो साइकल वाले ने भी वैसे ही किया। अब तो उसे यकीन हो गयाकि यह मुकाबला है, कौन आगे निकलता है। पर उस ने अपनी गति और बढ़ाई नहीं, उलटे थोड़ी कम कर दी। उस ने सोचा कि लड़का इतनी मेहनत कर रहा है। पिछड़ गया तो उसे बुरा लगे गा। उसे याद आया कि कक्षा में उस का एक प्रतिद्वन्दी था। हमेशा पढ़ाई में वह मुकाबला करता था पर वह आगे नहीं निकल पाता था और फिर और अधिक परिश्रम करता था। जब फाईनल परीक्षा हुई तो वह प्रतिद्वन्दी तीन नम्बर से आगे हो गया। उसे उस समय कितना कष्ट हुआ था जैसे कोई साम्राज्य खो दिया हो।
उस ने सोचा कि यह लड़का हार गया तो उसे भी दुख हो गा कि इतना परिश्रम कर के भी हार गया। वह चाहता तो एक्सलेटर को थोड़ा घुमाता और आगे निकल जाता पर उस ने ऐसा नहीं किया।
उसे याद आया। ईश्वर सब देवताओं को उन के कर्तव्य बॉंट रहा था। जब यम का नम्बर आया तो ईश्वर ने कहा - तुम्हारा काम लोगों के प्राण हरना है।।
यम गिड़गिड़ने लगा। उस ने कहा कि यह तो ज़्यादती है। सब को भले भले काम दिये। इन्द्र को वर्षा कराने का, अग्नि को तपाने का, वायु को सुखाने का। सब उन की प्रशंसा करें गे किन्तु सभी उस की बुराई। वही तो रंग में भंग डालता है। तब ईश्वर ने उसे बताया कि कोई उसे दोष नहीं दे गा। कोई बीमारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गा, कोई दुर्घटना के कारण तो कोई आयु अधिक हो जाने के कारण। उसे तो बस अपना काम करना है, दोष किसी और का ही हो गा।
जो लोग राजेन्द्र नगर से राम मनोहर लोहिया हस्पताल जाते हैं, उन्हें पता है कि शंकर रोड पर एक तीब्र चढ़ाई आती है। कई साईकल वाले तो उतर कर ही चलते हैं। जब वह चढ़ाई आई तो उस ने मोपैड की गति बढ़ा दी। साईकल पीछे छूट गया। पर उसे सन्तोष था। वह लड़का अपनी हिम्मत, अपने जोश, अपनी मेहनत को दोष नहीं दे गा। दोष दे गा चढ़ाई को।
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