दिलेरी - 2
दिलेरी की जाति की महफिल सजी हुई थी। आज का विषय था चंद्रचूड़ का नया निर्णय। एक ने कहा कि यह बताईये कि स्त्री ने तो यह नहीं कहा था कि वह परपुरुष के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये गी पर क्या यह सूत्र पुरुषों पर भी लागू होता है क्या। क्या हमें भी सम्बन्ध बनाने की अनुमति मिल गई है।
दूसरे ने कहा क्या कहते हो। क्या तुम गॉंधी जी को जानते हो। पहले ने कहा कि उन्हें भूलने कौन देता है। रोज़ तो उस के नाम पर बखेड़ा होता है। दूसरे ने कहा तो तुम्हें उन का प्रिय भजन भी पता हो गा। वैष्णव जन तो तैने कहिये। उस में कहा गया है ‘‘परस्त्री जाने मात रे’। बताओं कहीं पर ऐसा भजन है क्या कि ‘पर पुरुष माने बाप रे’। सारा साहित्य देख मारो, यह नहीं मिले गा। इस लिये लगता है कि जज महोदय को शादी की पूरी सात कस्मे याद हैं । उन में कहीं भी पर पुरुष के बारे में नहीं कहा गया है। अब पता नहीं कि यह फारमूला उन के घर पर भी चलता है कि नहीं। चलता ही हो गा तभी कानून की किताबें छान मारी हों गी।
दिलेरी कूद पड़ा। उस ने कहा कि भई मैं ने तो बीवी को कह दिया कि ब्वाय फ्रैण्ड डूॅंढ लो। पर चाल ही उलटी पड़ गई। मैं ने तो सिर्फ यह शर्त रखी थी कि जिस को भी ब्वायफ्रैण्ड बनाओ, पहले 200 लिट्टर वाले फ्रिज की मॉंग कर लेना। अपना 160 वाला तो अब बारह साल पुराना हो गया है। दहेज़ में मिला था। दो बार मरम्मत भी हो चुकी है। अब तो नया ही चाहिये। पर बीवी भी कमाल की चीज़ है। कहने लगी कि वह तो मैं कह दूॅं गी, कोई दिक्कत नहीं है। पर किसी को पकड़ने के लिये कुछ अपने को संवारना हो गा। साड़ी का कहती हूॅं तो झट से अगले वेतन कमीशन की बात कर देते हो। यह कमबख्त पे कमीशन भी कुम्भ मेेले की तरह है। बारह साल में आता है। ऐसा करो कि कहीं से जुगाड़ कर एक अच्छी सी साड़ी ले दो। बस तीन हज़ार की ही हो गी। उस दिन शीला बता रही थी। अब भई अपने पास तीन हज़ार होते तो हम इस ब्वायफ्रैण्ड के चक्कर में थोड़े ही पड़ते। सो हमारा प्रस्ताव बजट के अभाव में फेल हो गया।
फिर विषय पे कमीशन पर चला गया।
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